शिवप्रिया की शिव सिद्धि…4
दूसरी दुनिया का दरवाजा खुल गया
【उस दुनिया के रास्ते कठिन और खतरनाक थे। नए मार्गदर्शक शिवदूत ने अंत में शिवप्रिया को ले जाकर दानवों के दरवाजे पर छोड़ दिया। वहां वे बुरी तरह भयभीत हुईं। उनकी चेतना ने भारी खतरा महसूस किया】
सभी अपनों को राम राम।
शिवप्रिया की गहन साधना के बीच सूक्ष्म चेतना की यात्रा जारी है। उनके जरिये हम शिव गुरु की अपने शिष्यों के प्रति उदारता को समझ रहे हैं। साधनाओं में उनकी सहायता को जान रहे हैं। आराध्य के रूप में साधना करने वालों के प्रति भगवान शिव का रुख अलग होता है। गुरु के रूप में उनकी अनुमति से की जाने वाली शिव साधनाओं के परिणाम अलग होते हैं। तब वे स्वयं साधक को मदद पहुंचाते हैं।
इस बीच दो सवाल आये हैं।
किसी ने पूछा है क्या दो दिन की साधना से शिव के सामने पहुंचा जा सकता है?
दूसरा सवाल है दूसरे दिन की साधना में शिवप्रिया जी का जिनसे आमना सामना हुआ क्या वे शिव ही थे?
सवाल स्वाभाविक हैं इसलिये जवाबों के साथ आगे बढ़ेंगे।
पहला जवाब- शिवप्रिया को स्वप्न के साधु द्वारा जो साधना मन्त्र मिला। उसे वे पिछले 8 साल से नियमित जप रही थीं। मतलब यह कि दिखने में दो दिन की होने के बावजूद उनकी साधना 8 साल से अनवरत चली आ रही थी।
अब उन्होंने साधना को गहनता प्रदान की है। उनके द्वारा अपनाया जा रहा साधना विधान मुझे ज्ञात नही। अत्यंत गोपनीय है। इसलिये ज्ञात भी होता तो हम यहां उसकी चर्चा न कर पाते।
ऋषिकाल में इस साधना को उपमन्यु ऋषि ने सिद्ध किया था। परिणाम स्वरूप उन्हें शिव ज्ञान मिला। वे त्रिकालदर्शी बनें।
दूसरे सवाल का जवाब अध्यात्म के रहस्यों से भरा है। जो उच्च साधक भगवान शिव को सिद्ध करना चाहते हैं, उन्हें शिव की छवियों से होकर गुजरना होता है। अलग अलग डाइमेंशन में उनकी अलग अलग छवियां स्थित हैं। जो शिव समान ही प्रभावी हैं।
इसे ऐसे समझो जैसे दूर बैठा कोई व्यक्ति वीडियो कॉल के जरिये सामने प्रकट हो जाये। वह वीडियो पर आदेश निर्देश से लाभ पहुंचा सकता है। वहां से सकारात्मकता का संदेश भी पहुंचा सकता है। परंतु वीडियो छवि सामने होने के बावजूद वह है तो दूर ही।
शिव तक पहुंचने के लिये उनकी ऐसी ही अनेक छवियों से होकर गुजरना होता है।
अध्यात्म के विद्वान इन छवियों को शिव ही मानते हैं। क्योंकि शिव की छवियों में भी शिव समान परिणाम देने की सामर्थ्य होती है। उन तक पहुंचना भी आसान नही। उसके लिये भी थर्ड डाइमेंशन का भेदन करके उच्च आयामों में प्रवेश करना अनिवार्य होता है।
दूसरे दिन की गहन साधना में शिवप्रिया का सामना जिनसे हुआ वह ऐसी ही एक शिव छवि थी।
शिव गुरु अपने योग्य शिष्यों की राह आसान करते रहते हैं। इसी कारण शिवप्रिया को थर्ड डाइमेंशन के भेदन में शिवदूतों की सहायता उपलब्ध हुई।
तीसरे दिन की साधना के पहले 5 घण्टे सामान्य बीते। निर्विघ्नता से जप चलता रहा। उसके बाद जपे जा रहे मन्त्र की एनर्जी ने शिवप्रिया की उर्जा नाड़ियों में चक्रवात सा प्रवाह उत्पन्न किया। उर्जा के इस वेग ने आज उनकी सूक्ष्म चेतना को बिना बाहरी मदद के तीसरे आयाम से बाहर निकाल दिया।
आज सुबह से उनके अवचेतन में कुछ संकेत आ रहे थे। तीन वीडियो चित्र बन बिगड़ रहे थे। यह उनके लिये पूर्वाभास था। एक चित्र में दिव्य शिवलिंग था। जिससे एक लड़की लिपटी बैठी दिख रही थी। दूसरे चित्र में कोई उस लड़की का हाथ पकड़कर चलता जा रहा था। तीसरे चित्र में एक हाथ था। हाथ में त्रिशूल, रुद्राक्ष माला की उपस्थित और आसपास लहराती जटाएं वहां शिव के होने का संकेत दे रही थीं।
लगभग पांच घण्टे मन्त्र जप के बाद शिवप्रिया की सूक्ष्म चेतना आंदोलित हुई। उसने धरती के आयाम अर्थात थर्ड डाइमेंशन का भेदन कर लिया।
गहरा अंधेरा छा गया। कुछ देर तक शून्यता की स्थिति रही। फिर धीरे धीरे दूसरी दुनिया में प्रवेश हुआ। वहां दिव्य शिवलिंग दिखा। शिवलिंग से लिपटकर बैठी साधिका पहचानी गयी।
वह शिवप्रिया ही थीं।
शिवलिंग की ऊर्जाएं उन्हें आनंदित कर रही थीं। सुध बुध खो गयी। कितना समय गुजरा। याद नही।
परिवेश में किसी अपरिचित का प्रवेश हुआ। शिवलिंग की दैवीय ऊर्जाओं में खोई शिवप्रिया का ध्यान उन पर न गया। सो वे उनका चेहरा देख न सकीं। मगर कोई अपना सा लगा। आगे की राह दिखाने के लिये शिव गुरु की तरफ से फिर शिवदूत की नियुक्ति हुई।
आगंतुक निःशब्द।
शिवप्रिया का हाथ थामा और पलटकर एक दिशा में चल पड़ा। पीछे चलती शिवप्रिया उनकी पीठ ही देख पा रही थीं।
राह में देव संगीत बजता रहा। पेड़ पौधे हरियाली उपवन फूल मिले। मगर वे धरती के न थे। उमंग से भरा पर्यावरण किसी और ही दुनिया का लगा। वहां हवा की छुवन भी अलग ही थी। रूमानी सुगंध साथ चलती रही।
रास्ते लगातार ऊंचे होते गए।
यात्रा ज्यादा लम्बी न थी। हर कदम पर आनंद, उत्साह बढ़ता रहा।
फिर आया ठहराव।
आगे विशाल और बलिष्ठ हाथ दिखा।
शिवप्रिया के अवचेतन की तीसरी तस्वीर साकार हो गयी। हाथ में लिपटे रुद्राक्ष। दैवीय बल का परिचय देता त्रिशूल। छवि शिव की ही थी। आज उनकी जटाएं हवा में लहरा रही थीं। शिवप्रिया की तरफ उनकी पीठ थी।
लगा जैसे प्रतीक्षा कर रहे थे।
पास पहुंचते ही शिवप्रिया की तरफ पलटे।
आज भी उनकी आंखों में हजारों सूर्य का तेज था। चेहरा आंखों से निकलती तेज रोशनी के पीछे छिपा था। मगर आज शिवप्रिया की आंखे पिछले दिन की अपेक्षा कुछ अभ्यस्त हो गयी थीं। चेहरा तो न देख सकीं। परन्तु हवा में लहराती जटाएं देखीं।
सुनसान में अप्रत्याशित प्रकाश के पीछे छिपी शक्ति से अनजाना डर आज भी लगा। रोंगटे आज भी खड़े हुए। सिर से पांव तक सिहरन आज भी दौड़ी। कंपकंपी आज भी लगी। पर आज रोना नही आया। आंखों से आंसू नही बहे।
यानी ईष्ट द्वारा भक्त को स्वीकारे जाने की प्रक्रिया आरम्भ हो गयी।
कुछ समय यूं ही बीता। फिर घना अंधेरा छा गया। यह एक और दुनिया (डाइमेंशन) बदलने का संकेत था।
अचानक शिवप्रिया ने खुद को एक नाव में बैठे महसूस किया। गहरा अंधेरा वहां भी था। मन्त्र चलता रहा। शिवप्रिया के मुंह से जैसे जैसे मन्त्र निकल रहे थे वैसे वैसे नाव के चारो तरफ सुनहरा प्रकाश फैलने लगा। साफ प्रतीत हो रहा था कि वहां मन्त्र की ऊर्जा से प्रकाश उत्पन्न हो रहा है।
(पिछली चर्चा में मैने बताया था कि हाई डाइमेंशन में मंत्रों की शक्ति को ईंधन के रूप में उपयोग का विज्ञान काम करता है।)
मन्त्र जप से उत्पन्न हुआ प्रकाश प्रमाणित कर गया कि साधक के लिये मन्त्र सिद्ध हो चुका है। साधनाओं की सफलता के संकेत इसी तरह से किसी न किसी रूप में सामने आते हैं।
डाइमेंशन बदला तो मार्गदर्शक भी बदल गया।
एक अन्य शख्स आया। शिवप्रिया का हाथ पकड़ा और एक बर्फीली गुफा में प्रवेश कर गया।
उस दुनिया के रास्ते बहुत कठिन और खतरनाक थे। नए मार्गदर्शक शिवदूत ने अंत में शिवप्रिया को ले जाकर दानवों के दरवाजे पर छोड़ दिया। वहां वे बुरी तरह भयभीत हुईं। घबराईं। उनकी चेतना ने भारी खतरा महसूस किया।
ऐसा क्यों किया गया? इसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
शिव शरणं।