एक यक्षिणी सिद्धि जिसने लोक परलोक की सुंदरियां देकर चरित्रहीन बनाया

एनर्जी गुरु राकेश आचार्या जी की साधना अनुभूतियां…

सावधानी योग्य साधनायें….1 

(यक्षिणी सिद्ध हो गई। प्रत्यक्ष हो गई। मैंने उन्हें बहन के रूप में स्वीकार किया। मेरे वचनों के बदले उन्होंने भी 3 वचन लिये। पहला उनके बारे में किसी को नहीं बताउंगा। दूसरा किसी अन्य के समक्ष उन्हें कभी नहीं बुलाउंगा। तीसरा उनकी किसी बात की अनसुनी नहीं करुंगा। वचन तोड़ने पर सिद्धी खत्म। वे भाई की तरह मेरा ध्यान रखने लगीं। प्रत्यक्ष रूप से धन, साधन, सुख के साथ रमण के लिये विभिन्न लोकों की सुंदरियां प्रदान करने लगीं। वचन के अनुसार उनकी दी किसी चीज को मना नही कर सकता था। कुछ दिन के लिये उनकी सेवाओं के वशीभूत हो भूल गया कि मै धरती का एक सामाजिक प्राणी हूं। वे जो कर रही हैं वह उनकी दुनिया का नियम होगा। मुझ पर धरती के नियम लागू होते हैं। जिनके सापेक्ष देखा जाये तो उन दिनों मै चरित्रहीन हो गया।)

सभी अपन को राम राम
इस सीरीज में हम साधना सिद्धि के कुछ वृतांतों पर चर्चा करेंगे। जिनसे साधक जान सकें कि सिद्धियों के दौरान किन बातों से बचना जरूरी है। सामान्य रूप से साधना विधान में क्या क्या करना है, यह बताया जाता है। क्या नही करना है इसके मद में ब्रह्मचर्य का पालन करने पर जोर दिया जाता है। कुछ साधनाओं में तामसिक भोजन से रोका जाता है। किंतु अधिकांश विधानों में नहीं बताया जाता कि सिद्धि होने के बाद क्या क्या न करें। जिसके कारण बड़े जतन से मिली सिद्धी भी विचलन का कारण बन सकती है। इसे ऐसे समझें कि किसी को धन चाहिये था, वो मिल गया। मगर जाने अनजाने उस धन का उपयोग असंगत कर दिया तो भविष्य में वही परेशानी का कारण बन सकता है।

जब बात सिद्धियों की आती है तो यह रहस्यों से ढका विज्ञान है। जहां आज का साइंस खत्म हो जाता है वहां से इसकी शुरुआत होती है। नासा आदि बड़े वैज्ञानिक संस्थानों ने अब जिस तरह हमारे शास्त्रों और संस्कृत भाषा को अपनी रिसर्च में शामिल किया है। उससे कहा जा सकता है कि कालांतर में वैज्ञानिक सनातन साइंस को डिकोड कर लेंगे। तब वे मशीनों के द्वारा सिद्धियां अर्जित करेंगे। किसी समय दूर की बातें सुनने के लिये दूर श्रवण सिद्धि होती थी। अब मोबाइल पर लोग बिना सिद्धि के दूर तक बात कह सुन लेते हैं। महाभारत में संजय को भगवान कृष्ण ने दिव्य दृष्टि दी तो वे दूर बैठकर युद्ध का हाल सुना सके। किंतु अब इस सिद्धि के न होने पर भी लोग टी.वी , मोबाइल पर न्यूज से दूर की जानकारी लाइव देख लेते हैं।

इसी तरह कालांतर में विज्ञान ऐसी डिवाइस बना लेगा जिन पर देवी देवताओं की उर्जायें थ्री डी होलोग्राम के रूप में सामने आ जाया करेंगी। लोग उनसे प्रत्यक्ष सम्पर्क करेंगे। बातें करेंगे। सवाल जवाब करेंगे। समाधान लेंगे लेंगे। यह अभी शोध में है, समय लगेगा।
किंतु हमारे शास्त्रों का विज्ञान साधनाओं के रूप में लाखों साल से यह सब करता आया है। साधनाओं में अपनी उर्जाओं को सक्रिय करके उन्हें उर्जा डिवाइस की तरह तैयार किया जाता है। फिर ब्रह्मांडीय उर्जा का उपयोग करके इच्छित देवी, देवता की ऊर्जाओं की फ्रीक्वेंसी से अपने सूक्ष्म शरीर की फ्रीक्वेंसी को मैच कराया जाता है। उसके बाद मंत्र जप से उत्पन्न उर्जा तरंगों के द्वारा इच्छित देवी, देवता से सम्पर्क स्थापित किया जाता है। साथ ही अफरमेशन के द्वारा देवों से मनोवांछित सिद्ध कराये जाते हैं। 

प्रत्यक्षीकरण साधनाओं का भी यही विज्ञान है। जिनमें देवी, देवताओं को सामने बुला लिया जाता है। 
यह अलग बात है कि जो लोग इस विधा को नहीं जानते उनके मन में आशंका रहती हैं। इसमें उनका कोई दोष नही। जब वे जानते ही नहीं तो इसे मानें क्यों। अगर लॉजिक ढ़ूंढ़ने की बजाय वे थोड़ी वैज्ञानिक रिसर्च करें तो अध्यात्म की शक्ति को न सिर्फ जान जाएंगे बल्कि उसका लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं। 
भगवान शिव ब्रह्मांड के सबसे बड़े ऊर्जा वैज्ञानिक हैं। उनकी बनाई साधना पद्धतियां अचूक होती हैं। 
ऋषियों, मुनियों ने युगों से इनका सफलता पूर्वक प्रयोग किया है।
यक्षिणी साधना भी इन्ही में एक है।
मैने काफी पहले यक्षिणी साधना की थी। पहली साधना में सफलता नही मिली। घुंघुरुओं की आवाज, धरती के हिलने का आभास, आस पास किसी के होने का अहसास, किसी महिला के हंसने की आवाज, किसी के छूने का आभास, किसी अदृश्य के पास बैठे होने का आभास सहित अन्य अदृश्य अनुभूतियां होती रहीं। किंतु देवी सामने नही आयीं।
कुछ समय बाद दूसरी यक्षिणी की साधना की। प्रत्यक्षीकरण हो गया।
कालांतर में शिव साधना के नियमों के तहत देवी की विदाई हो गई। 
बहुत साल बीत गये। 
कई साधकों की डिमांड आई, उन्हें यक्षिणी साधना करा दूं। चूंकि मै किसी को अपना शिष्य नही बनाता। ऐसी साधनाओं में गुरु या गुरू परिवार के मार्गदर्शक की आवश्यकता अनिवार्य होती है। सो साधकों ने भगवान शिव को गुरु रूप में धारण किया।
इस तरह मै उनका गुरू भाई हो गया। हम गुरू परिवार हो गये। 
हरिद्वार आश्रम में साधना सम्पन्न हुई। उनमें कई साधक अत्यधिक क्षमतावान व लगनशील थे। उन्होंने सारे नियमों का पूरा पालन किया। अधिकांश साधकों को घुंघुरुओं की आवाज, धरती के हिलने का आभास, आप पास किसी के होने का अहसास, किसी महिला के हंसने की आवाज, किसी के छूने का आभास, किसी अदृश्य के पास बैठे होने का आभास सहित अन्य अदृश्य अनुभूतियां होती रहीं।
किंतु देवी सामने नही आयीं। एक को भी प्रत्यक्षीकरण नहीं हुआ।
मै हैरान था, निराश भी।    
सबकी ऊर्जायें चेक कीं। पता चला साधना के बीच में ही या साधना से उठते ही साधकों का ध्यान मोबाइल पर चला जा रहा था। जिससे उनके मन में विषय बदल जा रहा था। जबकि इन साधनाओं के दिनों में सिर्फ अपनी देवी के बारे में ही सोचना होता है। कोई दूसरा मन में नही आना चाहिये। 
यदि पारिवारिक या सामाजिक जिम्मेदारियों के कारण किसी को मजबूरी में कुछ और सोचना पड़े तो उन्हें ऐसी साधनायें नही करनी चाहिये। 
कुछ समय बाद हमने हरिद्वार आश्रम में ही यक्षिणी साधना फिर दोहराई। इस बार भी कोई साधक सफल नहीं हुआ। पूछने पर सबने दावा किया कि साधना के दिनों में उनके मन में सिर्फ देवी ही थीं, कोई और नहीं। एनर्जी चेक करने पर पता चला कि कुछ साधकों ने वाकई देवी को ही मन में बनाये रखा। किंतु उनके सामने भी देवी नहीं आईं।    
अब मुझे खुद पर शक हुआ। क्या मै साधना विधान का सही प्रयोग नही करा पा रहा। या कनेक्टिविटी में मेरी ऊर्जाओं का साधकों को सहयोग नहीं मिल पा रहा।
मैंने तय किया कि एक बार खुद यक्षिणी साधना करूं। दिल्ली आश्रम वापस आकर साधना की। यह वही साधना थी जो मैंने सबसे पहले की थी। तब सफलता नहीं मिली थी। 
मंत्रों के प्रणाणित शास्त्र मंत्र महार्णव में दिये विधान के अनुसार साधना सम्पन्न हुई। 
इस बार चौथे दिन सफलता मिल गई। देवी प्रत्यक्ष हुईं। 
मैंने उन्हें बहन के रूप में साथ रहने का वचन लिया। 
शास्त्रीय विधान के मुताबिक सिद्ध होने पर देवी को मां, बहन या पत्नी/प्रेमिका के रूप में धारण करना होता है। विद्वानों के मुताबिक मां के रूप में देवी श्रेष्ठतम लालन पालन करती हैं। साधक को मां की तरह सभी सुख, समृद्धि, सम्मान, योग्यतायें, क्षमतायें देती हैं। प्रेमिका/ पत्नी के रूप में साधक को राजाओं की सी स्थिति में पहुंचा देती हैं। मगर जीवन में दूसरी स्त्री को नही रहने देतीं। विद्वान बताते हैं कि बहन के रूप में साधक को हर क्षण खुश रखने के लिये तत्पर रहती हैं। इसके लिये धन, साधन, सुख और रमण के लिये लोक परलोक की सुंदरियां लाकर देती हैं। 
मुझे लगा बहन बनाना सबसे सुरक्षित है। क्योंकि मां के रूप में मै पहले सिद्ध कर चुका था। मैने इस रूप में सिद्ध यक्षिणी द्वारा सुंदरियों को लाने वाली बात को बिल्कुल गम्भीरता से नहीं लिया था। सोचा था यह तो मेरी च्वाइस की बात है। मै स्वीकारूं या न स्वीकारूं। मगर यह सोचना मेरी गलती थी। सिद्धि के समय उनसे साथ रहने का वचन लिया तो उन्हें 3 वचन लिये। जिसके मुताबिक उनकी किसी बात की अनसुनी नही कर सकता था। यानी वे जो देंगी स्वीकार करना पड़ेगा। उनके लोक में भाई को खुश करने के लिये शायद ऐसा होता होगा। उनके द्वारा लाई जाने वाली सुंदरियों में गंधर्व कन्यायें, नाग कन्यायें, यक्ष कन्यायें, राक्षस कन्यायें होती हैं। इनमें कुछ कन्यायें किसी श्राप के कारण धरती पर जन्मी होती हैं। कला, अभिनय, संगीत के क्षेत्र में ऐसे लोगों की संख्या बहुत होती है। इनका आकर्षण, सम्मोहन, कला/अभिनय/गायन की क्षमतायें, सफलतायें दूसरों से हजारों गुना अधिक होती हैं।   

इनमें से कई लोकों की कन्यायें साधारण परिवारों में पैदा होती हैं। मगर आगे चलकर बड़ा मुकाम हासिल कर लेती हैं। प्रायः देखने में आता है कि वे स्वच्छंद विचार और धरती के रीति रिवाजों को कम तवज्जो देने वाली होती हैं। अपने में मस्त रहती हैं। 
बहन के रूप में सिद्ध यक्षिणी द्वारा प्रायः श्राप वश धरती पर जन्मी गंधर्व कन्या, यक्ष कन्या, किन्नर कन्या, नाग कन्यायें साधक के पास लाई जाती हैं। इनमें कुछ साधक के पूर्व परिचित या अक्सर अपरिचित ही होती हैं। कारण पूछने पर बहन बनी यक्षिणी बताती हैं कि सिद्ध साधक के सम्पर्क में आने से उन सुंदरियों का श्राप कट जाएगा। जब वे किसी सुंदरी को साधक के पास लाती हैं तो उसे वहां लाये जाने या रमण होने आदि का कुछ पता नही होता। उस समय वे खुद को अपने असली रूप (जिस लोक की हैं) में देख रही होती हैं। तब श्राप मुक्ति के लिये वे इसे सामान्य क्रिया मानती हैं।
मगर धरती के सामाजिक नियमों के मुताबिक यह सामान्य बिल्कुल नहीं है। सामान्य नियमों के मुताबिक इसे चरित्रहीनता कहा जाएगा।
सिद्ध यक्षिणी की अनदेखी करने का साहस न कर पाने के कारण मै भी इसका शिकार हो गया।

उन दिनों कार्यालय के एक सहयोगी ने साहस करके मुझसे पूछा था कि बाहर से कोई भीतर जाते नहीं दिखता फिर भी आपके कमरे से लेडीज आवाज आती है। वह भी सिर्फ तब जब आप अकेले अंदर होते हैं। वचन अनुसार मै इस भेद को खोल नहीं सकता था। सो टाल दिया। मगर उस सहयोगी की उत्सुकता बढ़ी रही। मेरी अनुपस्थिति में मेरी जानकारी के बिना उसने मेरे कमरों में छिपे कैमरे लगा दिये। उनमें क्या आया मुझे नहीं पता। क्योंकि मुझे कभी दिखाया नहीं गया। जिन्हें सीधे दूसरे लोक से लाया गया उन सुंदरियों की उपस्थिति किस रूप में रिकार्ड हुई। यह मेरी भी उत्सुकता का विषय था।

बहन के रूप में यक्षिणी जब रमण के लिये सुंदरियां लाती हैं तो उन्हें साधक के अलावा किसी को नही देखना चाहिये। यह यक्षिणी को बिल्कुल नही पसंद। यक्षिणी बहुत शक्तिशाली होती है। चिढ़ जाए तो मृत्यु या मृत्यु तुल्य स्थिति में पहुंचा देती है।
हमारे कार्यालय के जिस व्यक्ति ने छिपे कैमरे लगाए थे। उसकी कुछ समय बाद मृत्यु हो गयी। वह जवान था।

वैसे तो साधना-सिद्धि की दुनिया में बहन के रूप में भी यक्षिणी की सिद्धि को महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है। किंतु हम जिस परिवेश में रहते हैं यहां इसे अच्छा नहीं कहा जा सकता। यह मै कई दिन बाद समझ सका। तब वचन तोड़कर सिद्धी से खुद को अलग किया।
मैंने तय किया कि स्व नैतिकता के लिये खुद को सामाजिक गतिविधियों से अलग कर दूं। तो दिल्ली आश्रम छोड़ दिया। लोगों से नियमित होने वाली मुलाकातें बंद कर दीं। साथ ही मुम्बई, हरिद्वार सहित सारे आश्रम बंद कर दिये। 
मई 23 में एक साधक मेरे पास यक्षिणी साधना के छिपे पहलुओं को जानने आये थे। उनके गुरु ने भेजा था। यह कहकर कि उन्हें प्रत्यक्षीकरण हो चुका है तो सिद्धि के बाद की सावधानियां उनसे सीख कर आयें। साधना उनके गुरू ही कराने वाले थे।
साधक शादी सुदा हैं। वे बहन के रूप में यक्षिणी सिद्धी करना चाहते थे। मैंने उन्हें मना किया। साधक ने पूछा यह तो उपलब्धि की बात है। इसमें कुछ गैरकानूनी तो नही। शास्त्रों से इसको करने का अधिकार प्राप्त है।
और फिर जिन सुंदरियों को लाया जाता है, उन्हें तो कोई आपत्ति नही।
नये साधक बातों को ऐसे ही सोचते हैं। 
बात गैरकानूनी न भी हो तो भी सामाजिक दायित्व की प्राथमिकता बनी रहनी चाहिये। 
परिवार वाले हैं तो जीवन साथी के प्रति ईमानदारी स्थापित करना हम सबकी जिम्मेदारी है। मैने कहा इसलिये आप इस रूप में यह साधना न करें। 
वे मान गये। 
विश्वास है दूसरे साधक भी सिद्धि के बाद के व्यवहार और कर्म की बात समझ पाये होंगे। 
हम ऐसे ही साधनाओं पर सिलसिलेवार बात करते रहेंगे। ताकि मेरी तरह किसी सिद्धी का लाभ बीच में न छोड़ना पड़े।
शिव शरणं।