हिमालयन रहस्यः टाइम ट्रेवलिंग साधना-2

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कुम्भ के ब्लैक होल से समय यात्राः डुबकी लगाते विलुप्त होकर दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं हजारों साधक

सभी अपनों को राम राम।
मृत्युंजय योग सूक्ष्म हिमालय साधना के बीच कुछ सक्षम साधकों को टाइम ट्रेवलिंग साधना कराने की तैयारी में है। जिसमें साधक सूक्ष्म शरीर से समय यात्रा करके भूत-भविष्य की दुनिया में पहुंचते हैं। उनकी सूक्ष्म चेतना उच्च आयामों में प्रवेश करके वहां के लोगों, ऋषियों, देवों से सम्पर्क करती है। अध्यात्म विज्ञान समय यात्रा में युगों से दक्ष रहा है। आधुनिक विज्ञान के हाथ अभी इसमें तंग हैं।
समय यात्रा साधना करने से पहले इस विज्ञान को ठीक से समझ लेना अनिवार्य होता है। अन्यथा समय यात्री दूसरी दुनिया में अटक कर रह जाते हैं। आधुनिक विज्ञान के जो वैज्ञानिक समय यात्रा की सम्भावना को मानते हैं। वे मुख्यतः 4 सम्भावनाओं पर काम कर रहे हैं। एक ब्लैक होल से, दूसरा वार्म होल से, तीसरा मल्टिवर्स ब्रह्मांड से, चौथा प्रकाश की गति हासिल करके।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा समय यात्रा के लिये आध्यत्म विज्ञान इन चारों विधियों का उपयोग युगों से करता आ रहा है। अध्यात्म विज्ञान में टाइम ट्रेवलिंग के लिये इनके अलावा भी कई तरीके मौजूद हैं।
सबसे पहले हम ब्लैक होल सिद्धांत पर बात करेंगे। ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण बहुत ज्यादा होता है। वे किसी भी चीज को अपने भीतर खींच लेते हैं। शक्तिशाली ब्लैक होलों द्वारा तमाम ग्रहों को खींचकर खा जाने का क्रम चलता रहता है। यहां तक कि प्रकाश को भी अपने भीतर खींचकर अंधेरे में बदल देते हैं। हमारे ब्र्ह्मांड में दो अत्यधिक शक्तिशाली ब्लैक होल मौजूद हैं। ज्योतिष विज्ञान ने उनका पता लगाया और उन्हें राहु केतु का नाम दिया है। उनकी एक निश्चित परिधि में जब सूर्य या चंद्रमा आते हैं तो इन शक्तिशाली ब्लैक होल द्वारा उनका प्रकाश खींचकर अपने भीतर समा लिया जाता है। जिससे कुछ देर के लिये अंधकार की स्थिति बनती है। ज्योतिष विज्ञान ने इसे ग्रहण का नाम दिया है। आधुनिक विज्ञानी फिलहाल इस घटना को धरती पर चंद्रमा की परछाई पड़ने की बात कहते हैं। क्योंकि उन्हें राहु केतु ब्लैकहोल की जानकारी नही। भविष्य में वे इन ब्लैकहोल को ढ़ूंढ़ लेंगे। तब वे ज्योतिष के सिद्धांत से सहमत हो जाएंगे।
अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण ब्लैकहोल समय की गति को भी खा जाते हैं। विक्षान मानता है कि इस कारण ब्लैक होलों के पास समय की गति बहुत कम होती है। एेसे में ब्लैकहोल के पास जाकर धीमी गति से चल रहे समय की यात्रा आसानी से की जा सकती है। किंतु इसमें विज्ञान के सामने समस्या यह है कि ब्लैक होल सभी चीजों को दूर से ही अपने भीतर खींच लेते हैं। तो उनके पास जायें कैसे।
किंतु अध्यात्म विज्ञान समय यात्रा के लिये ब्लैक होल का उपयोग युगों से करता आया है। इसका एक समक्ष उदाहरण है कुम्भ मेला। कुम्भ के समय एक निश्चित समय पर निश्चित क्षेत्र में जलीय ब्लैकहोल का निर्माण होता है। जिनमें समाकर हर बार हजारों साधक समय यात्रा पर निकल जाते हैं।
इसके प्रमाण के लिये कुम्भ स्नान वाले नदी कुंड के आस पास कैमरे लगा दिये जायें। स्नान करने आने वाले साधु संतों को कैमरे में रिकार्ड किया जाये। कुम्भ के अंत में स्नान करने आने और स्नान करके वापस लौटने वालों की गिनती की जाये। तो पाएंगे स्नान करके लौटने वालों की गिनती कम हो गई। हजारों लोग स्नान करके वापस लौटे ही नही। नदी में उनकी लाशें भी नही मिलीं। तो वे गए कहां।
दरअसल वे सब समय यात्रा पर निकल गये।
पुराने समय में कई राजाओं ने कुम्भ स्नान के लिये आने जाने वालों की गिनती कराई। हर बार हजारों लोग गायब मिले। न वे मिले न उनकी लाशें।
अब कुम्भ के ब्लैक होल का विज्ञान समझते हैं।
इससे पहले कुम्भ के पौराणिक महत्व को जानना भी जरूरी है। अमृत प्राप्त करने के लिये देव-दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। अमृत निकला। उसे पीने के लिये दोनो पक्षों में छीना छपटी मची। उसी बीच भगवान विष्णु के इशारे पर अमृत को राक्षसों से दूर ले जाने के लिये इंद्र के पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर आकाश में उड़ गये। राक्षस उनके पीछे पड़ गये। बचाने और पाने की आपा धापी में अमृत की कुछ बूंदे रास्ते में छलककर गिरती गईं। अमृत कलश अर्थात कुम्भ से जहां जहां अमृत बूदें गिरीं उन्हें विशेष पवित्र स्थानों का दर्जा दिया गया। लोगों को अमृत की सकारात्मकता का लाभ पहुंचाने के लिये वहां कुम्भ आयोजन का आरम्भ हुआ। एेसे 12 स्थान हैं। जिनमें से 8 देवलोक में और 4 धरती पर। भारत के प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन व त्र्यम्बकेश्वर (नासिक) में कुम्भ स्थल हैं। जहां कुम्भ स्नान करके लोग लोक परलोक सुधारते हैं।
अब हम कुम्भ के वैज्ञानिक पक्ष पर बात करते हैं। अमृत एक एेसा रसायन है जिसमें समय की गति को अत्यधिक कम कर देने की क्षमता होती है। उसे ग्रहण करने वालों के लिये समय की गति इतनी धीमी हो जाती है कि करोड़ों साल उनके लिये सेकेंड जैसे होते हैं। इस रासायन का दुरुपयोग न हो इसके लिये इसका प्राकृतिक संरक्षण समुद्री जलीय ब्लैक होल के रूप में होता है। समुद्र मंथन जलीय ब्लैक होल से चीजों को बाहर निकालने का तरीका था।
आगे बढ़ने से पहले चुम्बक और विजली का उदाहरण समझ लेते हैं। जहां चुम्बकीय क्षेत्र होता है वहां विध्युतीय क्षेत्र अपने आप उत्पन्न होता है और जहां बिजली का प्रवाह होता है वहां चुम्बकीय क्षेत्र अपने आप पैदा हो जाता है।
इसी तरह जलीय ब्लैकहोल में अमृत संरक्षित होता है और जहां अमृत होता है वहां उसकी संरक्षा के लिये जलीय ब्लैकहोल अपने आप उत्पन्न हो जाता है। यह विज्ञान देवों और ऋषियों को ज्ञात था। वे जानते थे कि जहां अमृत छलका है वहां नदियों के भीतर निश्चित स्थान पर जलीय ब्लैकहोल बनेगें। ये सूक्ष्म ब्लैकहोल होंगे। जो उग्र नही होते। उनकी तीब्रता विनाशकारी नही होती। इसलिये इनका लाभ उठाकर इनके जरिये समय यात्रा आसानी से की जा सकती है।
इसी उद्देश्य से कुम्भ आयोजन आरम्भ हुआ। जिसमें पहले सिर्फ वही लोग स्नान करते थे जो सक्षम साधक थे। जिन्हें समय यात्रा का महत्व पता था। जिन्हें जन्मों से अधूरी साधनायें पूरी करने के लिये समय यात्रा करके एक काल से दूसरे काल में जाने की जरूरत होती थी।
सूक्ष्म ब्लैकहोल में प्रवेश करके समय यात्रा का लाभ उठाने के लिये अदृश्य रूप से देवता भी कुम्भ कुंड में स्नान करते हैं। उनके बाद ऋषि और संत कुम्भ स्नान करते हैं। जहां देवताओं, सिद्ध ऋषियों, मुनियों की उपस्थिति हो वहां की उर्जाओं में सकारात्मकता काफी बढ़ जाती है। जिसका लाभ उठाने के लिये राजा और प्रजा भी कुम्भ स्नान करने लगे।
कुम्भ की इस वैज्ञानिक धारणा को प्रमाणित करने के लिये एक ही सवाल काफी है। यदि सिर्फ अमृत बूंद गिरने से ही धरती के यह चारों स्थान पुण्यकारी या मोक्षकारी हो गए हैं तो उनके लाभ के लिये कुम्भ के इंतजार की जरूरत क्यों। वहां तो रोज ही कुम्भ मेला लगना चाहिये। मगर एेसा नही है।
दरअसल सुरक्षा के लिये अमृत रसायन का स्थान सदैव बदलता रहता है। यह प्राकृतिक व्यवस्था है। अमृत के साथ उसकी सुरक्षा में उत्पन्न जलीय ब्लैकहोल भी स्थान बदलते हैं। एक परिधि में घुमते हुए वे एक निश्चत समय पर वहां पुनः पहुंचते हैं जहां अमृत छलका। यही वह समय है जिसे कुम्भ के नाम से परिभाषित किया गया। कुम्भ समय का सटीक पता लगाने के लिये ज्योतिष विज्ञान ने बाजी मारी। क्योंकि ज्योतिष में ब्रह्मांड की गणना के सटीक सूत्र हैं। ज्योतिष में जिस तरह कब कौन सा ग्रह कहां होगा यह पता लगा लिया जाता है उसी तरह कुम्भ का जलीय ब्लैक होल कब उत्पन्न होगा यह जान लिया जाता है।
जब कभी आधुनिक विज्ञान ज्योतिष के सूत्रों का उपयोग करेगा तब उसके लिये लोगों को देवलोक तक पहुंचाना भी सम्भव हो जाएगा।
आगे हम वार्म होल से टाइम ट्रेवलिंग की वैज्ञानिक सम्भवनाओं पर बात करेंगे। साथ ही जानेंगे किस तरह इस सिद्धांत को अपनाकर साधक समय यात्रा करते हैं। हम भी इसी का उपयोग करेंगे।
क्रमशः।
शिव शरणं।।