शिवप्रिया की शिव सिद्धी…6

WhatsApp Image 2020-02-24 at 5.32.06 PM
शिवप्रिया की शिव सिद्धी…6
ब्रह्मांड सुंदरी के दर्शन

[दूर पहाड़ी पर शिव पार्वती थे. शिव सुंदर, तो पार्वती ब्रह्मांड सुंदरी के रूप में थीं. अनजाने ही शिव की अनदेखी हो गई. क्योंकि ब्रह्मांड सुंदरी की सुंदरता ने सम्मोहित कर लिया था. आंखें उन्ही पर टिक गईं. शिवप्रिया ने इतना सुंदर कभी किसी को नही देखा. शायद उनसे खूबसूरत ब्रह्मांड में कोई होगा ही नहीं. सुंदरता ने शिवप्रिया को इस कदर सम्मोहित किया कि उनकी आंखें पास बैठे शिवजी को देखने को तैयार ही न थीं. दिमाग शून्यता की तरफ चला गया. दिल में सुंदरतम् मां के लिये प्यार और अपनापन उमड़ने लगा]

सभी अपनों को राम राम
गहन साधना के बीच शिवप्रिया की सूक्ष्म चेतना की यात्रा जारी है. उच्च साधक प्रेरणा ले सकें इसके लिये हम उनका साधना वृतांत शेयर करते चल रहे हैं.
इस बीच साधकों द्वारा कुछ सवाल पूछे गये हैं. हम एक का जवाब देते हुए आगे बढ़ेंगे. सवाल में पूछा गया है अलौकिक साधना के बीच देवों की जगह दानवों की दुनिया मिलने का क्या मतलब है?
बताते चलें कि गतांक के वृतांत में तीसरे दिन की साधना थी. सूक्ष्म यात्रा के समय एक जगह दो आकर्षक दरवाजे दिखे. जिन्हें देखकर मार्गदर्शक शिवदूत रुक गये. परंतु दरवाजों के आकर्षण में शिवप्रिया अपने मार्गदर्शक को छोड़कर उधर भागती चली गईं. सुनहरी चावी उठा ली. उससे दरवाजे खोले तो वहां भयभीत करने वाली स्थितियां मिलीं. एक दरवाजे के भीतर दैत्याकार जीव थे. जिन्होंने शिवप्रिया पर हमला किया. शिवदूत द्वारा उन्हें बचाया गया.
सवाल का जवाब- यह संकेत है साधनाओं के बीच होने वाली चूक या मनमानेपन के दुष्परिणामों का. वहां मार्ग दर्शक शिवदूत ने सुनहरी जाली को पार नही किया. उसके पहले ही रुक गये. मतलब कि आगे नही जाना था. मगर शिवप्रिया की चेतना ने उतावलेपन वाला मनमाना निर्णय लिया. मार्गदर्शक का हाथ छोड़ दिया. खुद ही जाकर तिलस्मी चावी ले ली. दरवाजे खोल दिये. वे दानवों के दरवाजे थे.
सबब यह कि साधना में मार्गदर्शक की अनदेखी बिल्कुल नही होनी चाहिये. कई बार साधक अपने मार्गदर्शक द्वारा तय पायदानों से आगे निकल जाने की जल्दबाजी करते हैं. कुछ पड़ाव बिना अनुमति पार कर लेते हैं. यह खतरनाक है. चमत्कारिक दिखने वाले पड़ाव खतरनाक भी हो सकते हैं. साधना नियमों में मनमानापन घातक ही होता है. कई साधक साधना नियमों को अपनी सुविधानुसार तोड़ मरोड़ लेते हैं. यह विनाशकारी सिद्ध हो सकता है. यहां तक कि दानवों तक पहुंचा सकता है. जीवन भी नष्ट कर सकता है. यही कारण है कि उच्च साधनायें करने वाले कुछ साधक क्षमतावान होने के बावजूद दुर्गति को प्राप्त हो जाते हैं.
अब गतांक से आगे…
चौथा दिन. आठ घंटे की साधना के दौरान कुछ भी अनुभूति नही हुई. सब कुछ ब्लैंक. काला घना अंधेरा.
बताता चलूं कि अधिकांश साधकों को यह स्थिति बहुत विचलित करती है. उन्हें लगता है कि कुछ चूक हो गई. एक दिन पहले तक साधना की अनूभूतियां अलौकिक थीं. फिर अचानक जैसे सब खत्म.
शिवप्रिया को भी विचलन हुआ. अपने अदृश्य मार्गदर्शक का इंतजार करती रहीं. मगर कोई नही आया.
एेसी स्थित में सक्षम मार्गदर्शन अनिवार्य होता है. अन्यथा साधक उसी जगह अटक जाता है.
शिवप्रिया ने अगले दिन साधना ब्लैंक हो जाने की बात मुझे बताई. मैने उनकी एनर्जी चेक की. पाया कि सूक्ष्म यात्रा हुई थी. मगर किसी आयाम के ब्लैक होल में. जहां कुछ भी दिखाई नही देता. कोई भी अहसास नही होता. एेसे में मानसिक जोर लगाया जाये तो कई बार साधना की दिशा भटक जाती है.
शिवप्रिया को मैने बताया कि यह भी एक पड़ाव है. यह प्रमाण है कि साधना सही दिशा में जा रही है. जारी रखें.
जो साधक हैं वे जान लें कि एेसी स्थितियां कई बार आती हैं. दरअसल उस समय साधक की सूक्ष्म चेतना किसी दुनिया के ब्लैक होल के सम्पर्क में होती है. जहां प्रारब्ध की उर्जाओं की सफाई होती है. तब कोई अनुभूति नही होती. साधनाकाल में अंधेरा छाया रहता है. यह स्थिति दन, महीने सालों तक बनी रह सकती है. अधिकांश साधक इस स्थिति में व्याकुल हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि किसी गड़बड़ी के कारण साधना बिगड़ गई. एेसे में वे लोगों से गैरजरूरी सलाह लेने लगते हैं. जिससे साधना भटक जाती है.
मेरे बताने के बाद शिवप्रिया निश्चिंत हुईं.
उन्होंने पांचवे दिन की साधना पूरे उत्साह के साथ आरम्भ की.
कुछ घंटे मंत्र जप के बाद उनकी सूक्ष्म चेतना ने उच्च आयाम में प्रवेश किया. चारो तरफ सफेद प्रकाश था. उनके द्वारा जपा जा रहा मंत्र चारो तरफ लिखा नजर आने लगा. मानो उनके होठों से निकलकर मंत्र फिजा में छपता चला जा रहा है. हर तरफ हवा में लिखे मंत्र दिखने लगे. (बताता चलूं कि यह मंत्र सिद्ध हो जाने का प्रमाण होता है).
अलौकिक अनूभूति. बड़ा आनंद आ रहा था. कुछ देर बाद उन्हें लगा कि किसी ने उठने का इशारा किया है. पर कोई दिखा नही. फिर भी वे उठकर एक तरफ चल दीं. आगे एक गुफ में प्रवेश हुआ. जहां उन्हें अपनी साधना के मार्गदर्शक दिखे. जो पहले दिन से तीसरे दिन के मध्य तक उन्हें साधना पथ पर चलाते आये थे. उन्हें देखकर शिवप्रिया का मन अपनेपन से भर गया. दोनो गुफा के दूसरे छोर की तरफ बढ़ गये.
गुफा के बाहर कई रास्ते थे. शिवप्रिया एक की तरफ जाने को हुई तो मार्गदर्शक शिवदूत ने कहा रुको. इस शब्द के साथ दोनो के मध्य पहली वार्ता हुई. शिवप्रिया ने रुकने का कारण पूछा तो वे खमोश रहे. उंगली के इशारे से एक तरफ देखने को कहा.
उधर दूर एक ऊंची पहाड़ी थी। दृश्य बिल्कुल स्पष्ट।
वहां जो दिखा उसने शिवप्रिया को सम्मोहित कर लिया.
पहाड़ी पर शिव पार्वती थे. शिव को देखकर भी शिवप्रिया की निगाहों ने उन्हें अनदेखा कर दिया. क्योंकि उन्हें माता पार्वती की सुंदरता ने सम्मोहित कर लिया था. आंखें उन्हीं पर टिक गईं. वे ब्रह्मांड सुंदरी के रूप में थीं. शिवप्रिया ने इतना सुंदर कभी किसी को नही देखा था. सुंदरता से भी सुंदर. शायद उनसे खूबसूरत ब्रह्मांड में कोई होगा ही नहीं. उनकी सुंदरता ने शिवप्रिया को सम्मोहित कर लिया. आंखे पास बैठे शिवजी को देखने को तैयार ही न थीं. दिमाग शून्यता की तरफ चला गया. दिल में सुंदरतम् मां के लिये प्यार और अपनापन उमड़ने लगा.
कितना समय यूं ही गुजर गया, याद नही.
शिवदूत ने शिवप्रिया को आगे बढ़ने का इशारा किया.
आगे शिवप्रिया को एक देवी मिलीं. जो सौंदर्य औषधि तैयार कर रही थीं. जिसका उपयोग सभी देवियां करती हैं. देवी ने बताया कि इस सौंदर्य औषधि के उपयोग से ही देवियों की सुंदरता कभी खत्म नही होती. शिवप्रिया को उन्होंने वह औषधि बनाना सिखाया.
आगे हम उसकी जानकारी देंगे.
शिव शरणं।

Leave a comment