तुरंत समृद्धि, प्रसिद्धि देने वाली इस साधना को सुंदरियां न करें तो ही अच्छा है

सावधानी योग्य साधनायें….2
कुछ साल पहले हमने एक साधिका के अधिक आग्रह पर यह साधना कराई। सभ्य घर की लड़की विपरीत संगत में क्लब, सिगरेट, शराब, ड्रग्स आदि व्यसनों की शिकार हो गई थी। जीवन लगातार बिगड़ रहा था। इस कारण हमने साधना का आग्रह स्वीकारा। मन में भाई बहन जैसी धारणा के साथ साधना सम्पन्न कराई। परिणाम तुरंत मिले। नशा छूट गया। व्यक्तित्व में उत्तरोत्तर निखार आया। भले बुरे की पहचान हुई। आर्थिक उन्नति हुई। धन का आकर्षण ऐसा हुआ। कहा जाता है पैसा तब तक कमाएं जब तक मंहगी चीजें भी सस्ती न लगने लगे। ऐसी ही उपलब्धि साधिका को मिली। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ी। साधिका की विदेश यात्रायें शुरू हुईं।
~फिर भी मेरा आग्रह है कि सुंदरियां इस साधना से दूर ही रहें। यहां मै तुरन्त फल देने वाली इन साधनाओं का सरल व सटीक विकल्प बता रहा हूँ। उसे अपनाएं।

…. एनर्जी गुरु राकेश आचार्या की साधना अनुभूतियां।

सभी अपनों को राम राम। 
पता नही क्यों सुंदरियों में आजकल इस साधना का क्रेज बहुत बढ़ गया है। अभिनय, कला और एयर होस्टेस के काम से जुड़ी लड़कियां इस तरफ बहुत आकर्षित हो रही हैं। शायद यू ट्यूब व अन्य सोशल मीडिया में देखकर।
मगर हमारी सलाह है कि इसे न करना ही सुरक्षित है।
यह हिडेन कैमरों का युग है। किसी भी विपरीत स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
इससे पहले हमने ऐसे विषयों पर कभी चर्चा नहीं की। किंतु इन साधनाओं का लोगों में क्रेज सा आ गया है। तमाम साधक अक्सर ही इन साधना पद्धतियों की जानकारी चाहने लगे हैं। साथ ही इन्हें कराये जाने का आग्रह भी करते हैं।
हम इन्हें नही कराते। विशुद्ध तांत्रिक साधना होने के कारण यह हमारा विषय नही है। जिनका जिक्र हमने ऊपर किया वह हमारे लिये अपवाद है। उससे पहले या बाद में हमने किसी को ऐसी साधना नही कराई।
यह योनि साधना है। इसकी पूजा पद्धति विस्तार से सुनने के बाद बड़े से बड़े धार्मिक व पूजा पाठी भी विचलित हो जाते हैं।
सन 2002 में जब पहली बार किसी ने मुझे इसकी जानकारी दी तो मेरा दिमाग उड़ सा गया था। मन मानने को तैयार ही नही था। बार बार सवाल उठ रहा था कि धर्म में ऐसी पूजा/साधना को किसने जगह दी।
यह तो पाप जैसा है।
अगर बताने वाले ने तंत्र के प्रमाणित ग्रंथ में इस विधान को मुझे पढ़ाया न होता तो मै इसे पूजा पाठ के नाम पर किसी पाखंडी द्वारा गढ़ा अय्यासी का तरीका ही मानता। किंतु यह शास्त्रों की उत्कृष्ट साधनाओं में से है।
तकरीबन 2 महीने मन खराब रहा। तंत्र विज्ञान के एक सिद्ध विद्वान ने जब साधना का विज्ञान समझाया तब मन स्थिर हुआ।
दरअसल यह पूजा विधि देखने, सुनने में ओरल सेक्स जैसी प्रतीत होती है। सिर्फ अध्यात्म के उच्च विद्वान ही समझ सकते हैं कि इसमें कुंडली जागरण के लिये शरीर और आध्यत्म विज्ञान का संयुक्त प्रयोग होता है।
इसी कारण शास्त्रों में ऐसी साधनायें अत्यंत गोपनीय रखी गईं हैं। मगर सोशल मीडिया के युग में कुछ भी गोपनीय नहीं रहा। मुझसे इनकी जानकारी चाहने वाले लगभग सभी लोगों ने बताया कि उन्होंने इसके बारे में यूट्यूब पर देखा।
इनमें 2 साधनायें इन दिनों युवा साधकों में क्रेज की तरह फैल रही हैं। एक पुरुष साधकों के लिये लिंग साधना। दूसरी महिला साधकों के लिये योनि साधना।
कुछ लोगों ने इनकी जानकारी अनुवादित शास्त्रों से ले ली। और सोशल मीडिया पर डाल दी। उसे देखकर दूसरे लोग तेजी से प्रभावित हो रहे हैं।
इसमें कोई संदेह नही कि संयम से की जाये तो ये साधनायें समृद्धि और प्रसिद्धि तुरंत देती हैं। मगर इनके खतरे बहुत हैं। इसमें साधिका और मार्गदर्शक का खुद पर 100% कंट्रोल जरूरी होता है। कंट्रोल बिगड़ा तो न सिर्फ अधोगति हुई बल्कि कुंडली भटककर साधिका का जीवन बर्बाद कर सकती है।
उच्च साधकों ने हर युग में इन साधनाओं का लाभ उठाया है। विद्वान बताते हैं कि ऋषि, मुनि, साधक यहां तक कि देवता भी इन साधनाओं का प्रयोग करते रहे हैं। वे उच्च स्तर के संयमित साधक होते हैं।

देखने में आता है कि विद्वान इन साधनाओं का योनि तन्त्रम आदि शास्त्रों में वर्णित विधान तो विस्तार से बताते हैं। किंतु कोई इसका विज्ञान नही बताता। जिसके कारण ऐसी साधनाओं की आलोचना करने वालों की संख्या बहुत अधिक है। तमाम लोग इन्हें वासना पूर्ति के लिये रचा गया पाखंड करार देते हैं।

किंतु इन सबके बीच बड़ी सच्चाई यह भी है कि वासना की भावना से मुक्त रहकर इन साधनाओं को सम्पन्न किया जाए तो परिणाम सकारात्मक ही मिलते हैं।
अब हम आपको इनके तुरंत फलित होने का विज्ञान बताते हैं। यहां हमने लिंग साधना, योनि साधना का ही नाम लिया है। मगर ऐसी और भी अनेकों साधनायें हैं। सबका विज्ञान एक ही है। 
अगर बात योनि साधना की करें तो इसके लिये साधिका को योनि पूजा की सारी जानकारी विस्तार से देनी होती है। यदि उसमें रंच मात्र भी झिझक दिखे तो उसे यह साधना बिल्कुल नहीं करानी चाहिये। ठीक से समझ लेने पर साधिका की लिखित सहमति लेनी अनिवार्य है। साथ ही उसके अभिभावक की सहमति अनिवार्य रूप से लेनी होती है।
अब इन साधनाओं के तुरंत फलित होने का विज्ञान जानते हैं। इन साधनाओं से कुंडली उसी समय जाग्रत होकर ऊपर उठने लगती है। ऊपर ऊठती कुंडली समृद्धि, प्रसिद्धि, सम्मान, सफलता, आकर्षण उत्पन्न करती है, यह तो सभी जानते हैं।  
हमारे सूक्ष्म शरीर आभामंडल में प्रमुख सात चक्रों के अलावा भी कई ऊर्जा चक्र होते हैं। उनमें एक पैरेनियम चक्र है। इसे कुंडली चक्र भी कहते हैं। यह दोनो पैरों के मध्य मल-मूत्र द्वार के बीच होता है।
यही कुंडली की बेसिक पोजीशन है।
स्थूल शरीर में जहां कमर, कूल्हों की हड्डियां जुड़ती हैं, वहां नीचे की तरफ एक प्लेटनुमा हड्डी होती है। उसमें बीच में हड्डी का एक विशेष जोड़ दिखता है। नर कंकाल में इसे देखा जा सकता है।
शरीर के भीतर स्थित प्लेनुमा हड्डी के इसी हिस्से पर एक सुखी सी नस पड़ी होती है। जो शरीर के भीतर होते हुए भी शरीर से जुड़ी नही होती। कहीं जुड़ी न होने के बावजूद यह सड़ती नही। क्योंकि इसमें अपनी विशेष जीवन शक्तियां होती हैं।
यही कुंडली का भौतिक रूप है। 
उसी के ऊपर रीढ़ के सहारे मस्तिष्क से आने वाली इड़ा, पिंगला, शुष्मना नाड़ियां खुलती हैं।
भोजन मिलने पर लेटी पड़ी कुंडली सक्तिय होकर 90 डिग्री पर खड़ी हो जाती है। इस स्थिति को कुंडली जागरण कहते हैं। भोजन की तलाश में यह शुष्मना नाड़ी में प्रवेश कर ऊपर उठने लगती है। मूलाधार आदि चक्रों का भेदन करती ऊपर बढ़ती जाती है। इसे कुंडली का आरोहण कहा जाता है।
आरोहित कुंडली की ऊर्जायें ब्रह्मांड निर्माण करने वाली एनर्जी का उपयोग करती हैं। जिससे व्यक्ति को सब कुछ देने में सक्षम होती हैं।
कुंडली का भोजन है मस्तिष्क में बनने वाला ठंडा गर्म दृव्य। जो ईडा, पिंगला नाड़ियों के द्वारा बहता हुआ नीचे आकर कुंडली पर टपकता है।
जिस प्लेटनुमा हड्डी पर कुंडली पड़ी होती है उसके नीचे नसों का जाल है। काम उत्तेजना के समय उनमें कुछ नसों से वीर्य स्रंखलन होता है। स्रंखलित होने से पहले वीर्य इन नसों में भर जाता है। जिससे नसें फूलकर मोटी हो जाती हैं। जिससे प्लेटनुमा हड्डी का निचला हिस्सा फूली नसों के दबाव में तिरछा हो जाता है। उस पर पड़ी कुंडली हिल जाती है।
कुंडली में हुई इस क्षणिक हलचल से ही इतना आनंद उत्पन्न होता है। जिसको पाने के लिये जीव बार बार सेक्स करना चाहते हैं। यह क्रिया नर नारी दोनों में एक समान होती है।
जिन साधनाओं की हम यहां बात कर रहे हैं उनमें इसी क्षण का लाभ उठाया जाता है। नसों में भरे हुए वीर्य को स्रंखलित होने से रोक लिया जाता है। जिससे प्लेटनुमा हड्डी लगातार तिरछी बनी रहती है। उस पर पड़ी कुंडली भी तिरक्षी होकर एक तरफ से लगातार उठी रहती है। उसी समय कुछ विशेष क्रियायें करते हुए विशेष मंत्रों का जप किया जाता है।
मंत्र जप को मस्तिष्क मानसिक श्रम के रूप में डिकोड करता है। साधक/साधिका को उत्तेजित करने के लिये जो क्रियायें की गईं वे शारीरिक श्रम में आती हैं। मानसिक व शारीरिक श्रम से मस्तिष्क का दृव्य तेजी से बनता है। जो इडा और पिंगला नाड़ियों के द्वारा बहता हुआ कुंडली पर टपकने लगता है। कुंडली उसे ग्रहण कर सक्रिय हो जाती है। 90° पर सीधी खड़ी हो जाती है। शुष्मना नाड़ी में प्रवेश कर जाती है। मूलाधार चक्र को पार कर अन्य ऊर्जा चक्रों की तरफ बढ़ जाती है।
इस तरह ऊपर उठ रही कुंडली व्यक्ति के जीवन में सब कुछ उत्पन्न करने की क्षमता रखती है। 
इन सारी क्रियाओं में यदि साधिका या मार्गदर्शक का खुद पर से कंट्रोल बिगड़ा तो अनर्थकारी परिणाम आते हैं। एक्टिव हुई कुंडली अटक कर आभामंडल, ऊर्जा चक्रों या मस्तिष्क का सर्वनाश कर सकती है। ऐसे में साधक पागल हो जाते हैं। कई बार मृत्यु तक का खतरा होता है
अब आप समझ गए होंगे कि कुंडली जागरण के लिये मस्तिष्क में बनने वाला दृव्य अनिवार्य होता है। जोकि मानसिक और शारीरिक श्रम से उत्पन्न होता है। 
बिना कुंडली जाग्रत हुए कोई व्यक्ति प्रसिद्ध नही हो सकता। न ही समृद्धिशाली हो सकता है। जितने भी नेता, अभिनेता, अधिकारी, पदाधिकारी व अन्य लोग जो प्रसिद्ध हैं। जिनकी बातों/ कार्यों का लोगों पर प्रभाव पड़ता है। उन सबकी कुंडली जाग्रत है। जबकि उनमें से अधिकांश कुंडली के लिये कोई साधना नही करते। 
किंतु वे लोग मानसिक व शारीरिक श्रम लगातार करते हैं। जिससे उत्पन्न मस्तिष्क का तरल दृव्य कुंडली को प्राकृतिक रूप से जाग्रत कर देता है। 
साधक भी इसी प्राकृतिक नियम का लाभ उठायें।  
किसी भी लक्ष्य पर केंद्रित सकारात्मक विचार मानसिक श्रम उत्पन्न करते हैं। कार्यों को करने/कराने के लिये आना, जाना, दौरे करना, काम करना, योगा, व्यायाम, डांस, खेलकूद व सभी फिजिकल एक्टिविटी  शारीरिक श्रम हैं। कुंडली के लिये दोनो का एक साथ होना जरूरी है। सिर्फ मानसिक श्रम या सिर्फ शारीरिक श्रम से कुंडली जागरण नही होता।
शारीरिक श्रम करते हुए मंत्र जप करें या अपने लक्ष्य के बारे में निरंतर सोंचे। कुंडली जागरण सुनिश्चित होगा। यही सुरक्षित और सटीक तरीका है। 
शिव शरणं।