सुनसान के साधक…5

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सुनसान के साधक…5
मन्त्र शक्ति से जान ले लेने वाले साधक

सभी अपनों को राम राम
हिमालय की शिवालिक पर्वत माला।
मणिकूट पहाड़ के घने जंगल।
मेरी साधना का 17 वां दिन।
खतरनाक साधक से मुलाकात।
उनके द्वारा मन्त्र शक्ति से प्राण घातक हमला।
वे सिद्ध तांत्रिक थे।
अपनी सिद्धि के परीक्षण में तंत्र शक्ति का प्रयोग कर अकारण ही जीवों पर प्राणघातक प्रहार कर दिया करते थे। उनके हमले में मृत्यु न भी हो तो भी प्राणी मरणासन्न स्थिति तक पहुंच जाते थे।
समय रहते खुद को न बचाता तो शायद मेरा भी वही हाल होता जो उनके पास पड़े सर्प का हुआ।
जिस पत्थर शिला पर वे बैठे थे उसके समीप एक सांप पड़ा दिखा। उसके मुंह से हल्का खून बहा  था। वह मृत्यु से संघर्ष कर रहा था। धीरे धीरे हिल रही पूँछ बता रही थी कि प्राण अभी बाकी हैं।
मेरे कुछ पूछने से पहले ही वे बोल पड़े तुमसे पहले मैने इसे ही मारा था। पता नही तुम कैसे बच गए।
उनकी बात सुनकर मै सतर्क हुआ।
यह तो साइको किलर की तरह का व्यवहार था।
मैने पूछना चाहा इस बेजुबान की जान क्यों ली। मुझ पर तंत्र का हमला क्यों किया।
किंतु पूछ न सका।
क्योंकि पूछने से पहले ही उनका जवाब आ गया। बोले इस पर मैने अपने मन्त्र का परीक्षण किया। और तुम पर भी। पता नही तुम कैसे बच गए।
यानि कि वे मन पढ़ रहे थे।
जो मेरे मन में था वह उन्हें पता चल रहा था।
तो क्या वे टेलीपैथी कर रहे हैं?
मन में सवाल उठा।
परंतु वह टेलीपैथी न थी। टेलीपैथी में मस्तिष्क की तरंगों को अपने साथ जोड़कर उन पर एक तरह का कब्जा कर लिया जाता है। मेरा मस्तिष्क बिलकुल फ्री था, वहां कब्जे या बल प्रयोग के कोई लक्षण न थे। वे मेरे दिमाग को छेड़े बिना मन को पढ़ रहे थे।
कैसे?
मेरे पूछने से पहले एक बार फिर उनका जवाब आ गया।
बोले ये मेरी सिद्धी है।
फिर पास बैठने का इशारा किया।
मै खड़ी साधना में था। सो नही बैठा। उनसे बातचीत के कारण मन्त्र जप रुक गया था।
मेरी पीठ पर पिट्ठू बैग लटका था। उसमें जरूरत की कई चीजें पड़ी थीं।
बैग की तरफ इशारा करके बोले थोड़े बादाम दो मुझे।
बैग में क्या है यह भी उन्हें पता चल गया था। बादाम देने के बाद बोले थोड़े मुंगफली के दाने भी दो। बैग में मूंगफली के दाने हैं यह भी उन्हें मालूम हो गया।
मैने मूंगफली के दाने देने की बजाय बैग ही उनके सामने रख दिया। बैग में क्या क्या है, बिना देखे उन्हें पता चल ही गया होगा। सोचा उन्हें मांगकर न लेना पड़े, इसलिये बैग सामने रख दिया।
उन्होंने पूरे अधिकार के साथ बैग को खोला।
उसमें जो था सब बारी बारी से खा गए। बादाम, मूंगफली, अखरोट, बंदरो के लिये रखे भुने चने, गाय के लिए रखे बिस्किट, मेरे लिये रखे 2 केले और एक बोतल पानी।
सब खत्म।
जब सब खत्म हो गया तब  मेरी तरफ मुड़े। वरना खाते समय तो जैसे मै वहां था ही नही।
इलायची दो। मेरी जीन्स की जेब की तरफ इशारा करके बोले।
मैने उस समय जीन्स और टी शर्ट पहन रखी थी। जंगलों में मुझे यह पोशाक अधिक सुविधाजनक और सुरक्षित लगती है। जीन्स की पिछली जेब में इलायची और लौंग के कुछ दाने पड़े थे।
अपनी सिद्ध शक्ति से उन्होंने वे भी देख लिए।
इलायची के साथ मैने लौंग भी उन्हें दे दी। सोचा मांगने से पहले दे दूं। मगर उन्होंने लौंग नही खाई। न ही मुझे वापस की। इलायची के सारे दाने मुंह में रख लिए। लौंग झाड़ियों में फेंक दीं।
अब मेरे पास खाने पीने की कोई चीज नही बची थी।
अंत में उन्होंने बैग की बन्द जेब में हाथ डाला। उसमें कुछ बेलपत्र थे। शिवार्चन के बाद मन्दिर के पंडित जी ने आज ज्यादा बेलपत्र दे दिए थे। मन्दिर से निकलकर रोज की तरह मैने 7 बेलपत्र खा लिए।
इन दिनों वही मेरा नास्ता था।
बाकी बचे 6 बेलपत्र बैग में रख लिए। सोचा था फलाहार से पहले खा लूंगा।
उन्होंने बेलपत्र बैग से निकालकर मुझे पकड़ा दिए।
बोले तुम भी तो कुछ खाओ।
मेरे मन में हंसी निकल गयी। बेलपत्र खाने के लिये ऐसे दिए जैसे मेरी बड़ी जोरदार मेहमान नवाजी कर रहे हों।
मैने बेलपत्र खा लिए।
बेलपत्र खाकर ऊपर से पानी पी लिया करता था। मगर अभी तो सारा पानी वही पी गए।
मेरे मन में क्या चल रहा है, उन्हें पता ही था।
खाली बोतल लेकर तेजी से एक तरफ चले गए। पहाड़ों पर उनकी तेजी हैरान करने वाली थी। जैसे समतल में चल रहे हों।
वापस आने में लगभग 2 मिनट लगे।
बोतल में पानी भर लाये थे।
मुझे देकर बोले पी लो।
तंत्र का क्रूर परीक्षण करने के बाद भी उनमें संतो वाली उदारता विद्यमान थी।
इस बीच पास पड़ा सांप मर चुका था।
मेरा ध्यान उस तरफ गया। सोचा उनकी किलर सोच पर तर्क करूँ, उन्हें गलत ठहराऊं।
मगर मेरे पूछने से पहले उन्होंने ही सवाल कर दिया।
बोले पहले तुम बताओ मेरे हमले से बचे कैसे? इस शक्ति से कोई नही बचता।
आप तो मन की बात जान लेते हैं, तो यह भी पता कर लीजिये। चुनौती न लगे ऐसे भाव में मैने उनसे कहा।
नही जान पा रहा हूँ न। वे बोले ऐसी शक्ति जिसने मेरे प्रहार को बेकार कर दिया, ऐसी शक्ति जिसे मै जान भी नही पा रहा। वह है क्या?
अगर उन्हें सनकी तांत्रिक कहें तो भी उनके भीतर सिद्धों वाले सद्गुण मौजूद थे। संतो वाली निश्छलता थी।
सो बता दिया कि खुद को बचाने के लिये मैने मां प्रत्यंगिरा की ऊर्जाओं का उपयोग किया था।
मेरी बात सुनकर वे थोड़ा विचलित हुए।
बोले मुझे प्रत्यंगिरा शक्ति और उसके प्रयोग के बारे में विस्तार से बताओ।
मैने बताया।
सुनकर खुश भी हुए और व्याकुल भी।
पूरी बात सुनने के बाद बोले इससे तो हमला करने वाले की ही जान जा सकती है।
हां, अगर पूरा प्रयोग किया जाए तो।
तो तुमने मुझ पर पूरा प्रयोग क्यों नही किया? उन्होंने पूछा।
क्योंकि मैंने अपने गुरु भगवान शिव के समक्ष संकल्प लिया है कि साधना शक्ति से किसी को नुकसान नही पहुंचाऊंगा।
यह तो बेवकूफी है। यह बात कहते समय वे थोड़ा तैश में आ गए। बोले आत्मरक्षा का अधिकार तो सबको मिला है। तुम्हें मेरे विरुद्ध इसका प्रयोग करना चाहिये था।
मै कुछ नही बोला।
कुछ देर खामोशी रही।
फिर मैंने कहा आप तंत्र परीक्षण के लिये जीवों पर जिस तरह जानलेवा प्रहार करते हैं वह मुझे बहुत  अनुचित प्रतीत होता है।
कुछ अनुचित नही है। ये वे जीव हैं जो श्रापित जीवन जी रहे हैं, मै शरीर से मुक्त करके उन्हें श्राप मुक्त करता जा रहा हूँ। खुद सोचो कीड़े मकोड़े सांप बिच्छू जीव जंतु का जीवन कौन जीना चाहता होगा।
तो मुझे आपने कौन सा जंतु समझा था, मैने पूछा।
तुम अपने अगले जीवन की तैयारी कर रहे हो, तो सोचा तुम्हारा काम आसान कर दूं, तुम्हें बंधनो से  मुक्त कर दूं। उनका जवाब था। मतलब उन्हें मेरे जीवन की योजना भी पता थी।
और यह कैसे पता चला कि मेरी तैयारी पूरी हो गयी है?
यह तो नही पता। वे बोले। मुझे तो सिर्फ इसी जन्म की बातें मालूम हो पाती हैं। वैसे एक बात कहूँ।
जी कहिये।
तुमने अपनी इच्छाएं मार लीं, यहां तक तो ठीक है। परंतु क्या तुम्हारी इस जीवन की सारी जिम्मेदारियां पूरी हो गईं। जो अगले जन्म की तैयारी में लग गए।
उनकी इस बात ने मुझे पुनर्विचार के लिये मजबूर किया।
कुछ देर चुप रहकर बोले मै तुम्हें तंत्र सिखाना चाहता हूं, जिससे तुम अपने शत्रुओं को आसानी से मार सको।
लेकिन मेरा तो कोई ऐसा शत्रु ही नही, जिसे मारने की आवश्यकता हो।
लेकिन इस तंत्र की आवश्यकता है तुम्हें। उन्होंने जोर देकर कहा मै किसी का ऋण अपने ऊपर शेष  नही रख सकता। तुमने मुझे प्रत्यंगिरा शक्ति का प्रयोग बताया। बदले में मै तुम्हें शत्रु मारण तंत्र सिखाऊंगा।
पता नही क्यों मैने अपनी सहमति दे दी।
कल मिलने की बात कहकर वे घने जंगल की तरफ़ चले गए।
मै लौट आया।
अगले दिन मै उधर नही गया। सोचा मन्त्र जप बाधित होता है सो इस सब चक्कर में नही पडूंगा। उधर जाऊंगा ही नही।
साधना के लिये दूसरी दिशा के पहाड़ों पर चढ़ा। तब हैरान हुआ जब उन्हें उस पहाड़ पर इंतजार करते पाया।
याद आया वे तो मन पढ़ लेते हैं।
देखते ही बोले मुझसे बचकर कहाँ जाओगे।
फिर अधिकार पूर्वक मेरी पीठ पर लटका बैग उतार लिया। उसमें जो कुछ था सब खा पी गए।
फिर बोले अब तुम्हें तंत्र सिखाऊंगा।
इसी तरह 5 दिन बीते।
हम अलग अलग स्थानों पर मिलते रहे।
उनके तंत्र का रहस्य जानकर अचंभित था मै।
बड़ी शक्ति।
अचूक शक्ति।
5 वें दिन वे बोले सब सीख गए, अब मुझ पर इसका परीक्षण करो।
मै सन्न रह गया।
यह तो ऐसी बात थी जैसे उन्होंने आत्महत्या की सोच ली हो।
उन्होंने मेरे मनोभाव पढ़ लिए। बोले तुम मेरे बताए तंत्र से मुझ पर हमला करो मै तुम्हारे बताए प्रत्यंगिरा विधान से खुद को बचाऊंगा।
पहले दिन से मै उनसे एक बात कहना चाह रहा था। आज रहा न गया कह दिया।
क्षमा करियेगा आप मानसिक बीमार हैं। आपको मरने मारने का नशा है।
वे मुझे घूरने लगे।
कुछ देर बाद बोले मै तो तुम्हारे भीतर शत्रुओं पर प्रहार करने की आदत डालना चाहता हूं।
उस दिन के बाद हम नही मिले।
आगे एक ऐसे साधक के बारे में बताऊंगा जिन्होंने मटका सिद्धि कर रखी थी। मिट्टी के मटके से निकालकर फल बांटते रहते थे,आश्चर्य यह कि चाहे जितने बांट डालें उनके मटके के फल खत्म ही नही होते।
क्रमशः
शिव शरणं!

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