सुनसान के साधक…10

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अपने तप की ऊष्मा से जमीन गर्म कर देने वाले साधक

सभी अपनों को राम राम
आने वाले चन्द्र ग्रहण में मन्त्र सिद्धि की तैयारी के सिलसिले में आज सुबह गंगा किनारे पहुंचा। 3 दिन बाद बरसात रुकी। मगर नसों तक का खून जमा देने वाली ठंड जारी थी। हिमालय को छूकर आती सर्द हवाओं ने मानो फिजा में बर्फ घोल दी हो। जिस्म का जो हिस्सा हवा की जद में आता, कुछ ही पल में ऐसे सुन्न हो जाता जैसे जमकर निर्जीव हो गया हो।
ये हाले हरिद्वार है।
(जो साधक कल के चन्द्र ग्रहण में साधना सिद्धि के इच्छुक हैं, उन्हें मैं कल मन्त्र व विधान बताऊंगा)
साधना के लिये मै कुटिया से पैदल ही निकला। जहां साधना करनी थी वहां दो नदियों का मिलान है। सिद्धियों के लिये ऐसी जगहें खास होती हैं। कुटिया से वह स्थल 2 किलोमीटर से अधिक है।
अभी अंधेरा था। राह देखने के लिये टार्च साथ ले जानी पड़ी। कुछ जगह खुले में लोग सोते दिखे। किसी के लिये महल किसी के लिये खुला आसमान, ऊपर वाले की व्यवस्था के रहस्य को टटोलने की कोशिश करता आगे बढ़ता रहा।
तकरीबन 40 मिनट लगे मंजिल तक पहुंचने में।
बर्दास्त की सीमा लांघ गयी ठंड ने भक्तों का टाइम टेबल बदल डाला था। जहां इस समय तक गंगा जी के घाट भर जाया करते थे, वहां सिर्फ दो साधु स्नान करते दिखे।
मुझे उससे भी आधा किलोमीटर आगे जाना था। वहां बालू वाला रास्ता कच्चा था।
जूते गंगा जी के घाट पर उतार दिए। नंगे पैर बालू पर पड़े तो लगा मानो बर्फ पर चल रहा हूँ। रात काफी नीचे तक उतरा तापमान बालू को बर्फ सा बना गया था।
साधना स्थल पर पहुंचा। वहां एक साधक पहले से ही साधनारत थे। गजब की बर्दास्त थी उनकी। कड़ाके की ठंड में भी सिर्फ एक धोती ओढ़ रखी थी। सफेद धोती कमर के नीचे लपेटी थी। उसी के बचे हिस्से से खुद को ढक रखा था।
कुछ क्षण मैने उन्हें देखा। वे अविचल थे। गहन ध्यान में लगे।
मैने कपड़े उतारे और गंगा जी में डुबकी लगाने लगा। 5-7 डुबकी में ही रुक जाना पड़ा। पानी बहुत ठंडा था। भीगा बदन नियंत्रण से बाहर होने लगा। जैसे निर्जीव होकर धारा के भाव में गिर जाएंगे। ज्यादा देर नही नहाया गया। पानी से बाहर आ गया।
असली ठंड तो पानी के बाहर आकर लगी। बदन सुखाना मुश्किल हो रहा था।
वहां पहले से मौजूद साधक को मेरी हालत का अहसास हो गया था। अपने चेहरे से धोती हटाकर अपने पास आने का इशारा किया। मैने उनकी तरह ध्यान दिए बिना खुद को गर्म कपड़ों में ठीक से पैक किया।
उसके बाद साधना में बैठने के लिये उपयुक्त स्थान तलासने लगा। एक बार फिर उन्होंने अपने पास आने का इशारा किया। मै उधर चला गया। सोचा शायद वे मुझे ठंड से बचाने के लिये अपनी धोती की ओट में आने को कहने वाले हैं। मैने उनसे ज्यादा गर्म कपड़े पहन रखे थे। सो उनकी मदद लेने का कोई इरादा न था।
गर्म कपड़ों के बावजूद नीचे बर्फ सी ठंडी बालू पर आसन लगाना कठिन लग रहा था। ऐसे में ध्यान लगाना तो दूर बालू पर सीधे बैठे रह पाना भी मुश्किल लग रहा था।
उन्होंने अपने पास आसन लगाने का इशारा किया। मै उनके पास गया तो वहां बालू गर्म मिली। सोचा उनके काफी देर से बैठे होने के कारण बालू का तापमान बढ़ गया होगा।
उसी बीच उन्होंने अपने और पास आकर बैठने का इशारा किया। मै उनकी तरफ थोड़ा और खिसक गया। वहां बालू में गुनगुनाहट थी। तब मुझे पता चला कि वे अपने पास बैठने का इशारा क्यों कर रहे थे।
मेरे वहां बैठते ही बालू का तापमान धीरे धीरे और बढ़ा। कुछ ही देर में मेरा आसन गर्म महसूस होने लगा। इतना कि ठंड लगनी बन्द हो गयी।
मेरे पास आकर बैठने के बाद वे पुनः ध्यानमग्न हो गए।
मै समझ गया कि उनके तप की ऊष्मा में ठंडी बालू में गर्माहट भर देने की क्षमता है। उन्हें अपनी सिद्धियों की ऊर्जा को भौतिक ऊष्मा में बदलने का विज्ञान पता था। इसी कारण उन्होंने सामान्य कपड़ो में भी बेइंतहा सर्दी को अपने लिए सामान्य बना लिया।
मन ही मन उन्हें धन्यवाद देकर मैने अपना ध्यान लगा लिया। लगभग 3 घण्टे बाद जब मै ध्यान से उठा तब वे पास नही थे। मेरे अस पास बालू पर रेखा खिंची मिली। शायद अपनी साधना पूरी कर वे मुझे डिस्टर्व किये बिना चले गए। जाते जाते मेरे इर्द गिर्द सुरक्षा रेखा खींच गए। ताकि उनकी ऊष्मा की गर्माहट मुझे मिलती रहे।
यह विज्ञान से आगे का विज्ञान है।
मैने शिवगुरु, गंगा माता के साथ साधना पूरी कराने के लिये उन्हें भी धन्यवाद दिया।
शिव शरणं

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