यक्षिणी साधकों के लिये गुरु जी का संदेश…

किस वृक्ष में निवास करती है कौन सी यक्षिणी

यक्षिणी साधना: अपना स्तर तय करके बताएं
सभी अपनों को राम राम।
इस बार हम जितने चाहते थे लगभग उतने ही साधक यक्षिणी साधना के लिये चयनित हुए हैं।
इस कारण अबकी मै सभी साधकों पर व्यक्तिगत रूप से निगरानी रख सकुंगा।
इनमें आप भी हैं।इस बार हम धैर्य और लगन के साथ यक्षिणी साधना के वास्तविक स्वरूप को अपनाएंगे।
इन्हें जान लें और बताएं कि किस स्तर की साधना करना चाहते हैं।

1. जीवन उत्थान के लिये
यह सबसे सरल और ज्यादातर साधकों द्वारा अपनाया जाने वाला विधान है।
इसमें देवी का साक्षात्कार नही होता। किंतु वे साधक के जीवन में आकर सुख, समृद्धि, प्रतिष्ठा और आत्म उन्नति प्रदान करती हैं।
इस स्वरूप में प्रायः 3 से 9 दिन के बीच की साधना सम्पन्न की जाती है।

2. साक्षात्कार अर्थात प्रगटीकरण की साधना।
यह सरल बिल्कुल नही होती। इसे उच्च साधना क्षमता वाले साधक ही कर सकते हैं।
इस साधना से प्रशन्न देवी साधक के समक्ष आ जाती हैं।
उन्हें मान, सम्मान, पद, प्रतिष्ठा, समृद्धि, यौवन, शक्ति और संपदा देती हैं।
यह प्रायः 1 माह से 6 माह के बीच चलती है।
इसमें मानसिक और शारीरिक ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य होता है। इसे विशेष समय और स्थान के अनुसार करना होता है।

3. देवी को आजीवन साथ रखने की साधना।
इसमें देवी सिद्ध होकर मां, प्रेमिका या बहन के रूप में साधक के साथ रहती रहती हैं।
उन्हें सबके बारे में ज्ञात अज्ञात की जानकारी देती हैं।
साधक को राजाओं की तरह राज कराती हैं।
यह दूसरे स्तर की साधना से भी कठिन है।
किंतु सक्षम साधकों की रुचि इसे करने में अधिक रहती हैं।
इस स्तर की साधना 1 माह से 1 साल तक चलती है। साधना की अवधि साधक की क्षमता और देवी के साथ कनेक्टिविटी पर निर्भर होती है।आप इनमें से जिस स्तर की साधना करने के इच्छुक हैं। उसे बताएं।
उसी के मुताबिक आपको साधना विधान भेजा जाएगा।

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