संजीवनी शक्ति से पितृ मोक्षमोबाइल में मरे लोगों के फोटो न लगाएं

सभी अपनों को राम राम।
कल 2 सितंबर 20 से पितर पक्ष शुरू हो रहा है।
शास्त्र कहते हैं संतुष्ट पितृ खुशियों के पहरेदार होते हैं। असंतुष्ट पितृ खानदान की खुशियों को बर्बाद कर देते हैं।
संजीवनी विज्ञान के मुताबिक पितृ का मतलब है मंजिल की तलाश में भटकते सूक्ष्म शरीर। जो मोक्ष के लिये अतिरिक्त ऊर्जाएं ढूढ़ते हैं। इसी उम्मीद में अपने DNA से जुड़े वंशजो के आभामण्डल में घुसते रहते हैं। यह प्रक्रिया जिंदा लोगों की ऊर्जाएं बिगाड़ देती है।
ऐसे बिगड़ी ऊर्जाएं जीवन भर सुख भंग करती रहती हैं।
पितरों के मोक्ष के लिये पितृ पक्ष में रोज सुबह संजीवनी शक्तिपात करें।
संजीवनी शक्ति से कहें अनंत गुना विस्तारित होकर मेरे सभी ज्ञात अज्ञात पितरों के पास जाएं, विष्णु कृपा से उन्हे मोक्ष प्रदान करें।
पितरों से कहें मेरे सभी ज्ञात अज्ञात पितरों आप जहां कहीं भी हैं वहीं से मेरे द्वारा प्रक्षेपित उर्जा को अक्षय रूप से ग्रहण करें, संतुष्ट हों, परम मोक्ष को प्राप्त करें, मुझे और मेरे कुल के सभी लोगों को दिव्य आशीर्वाद प्रदान करें।

इसके अलावा तर्पण और पिंडदान भी करा सकते हैं।

कुछ सावधानियां…

  1. तर्पण, पिंडदान, पितृ शांति या पितृ पूजा घर में न करें, न करायें। इससे भटके सूक्ष्म शरीर वापस घर लौट आते हैं। दुख का कारण बनते हैं।
    किसी की तेहरवीं का अंतिम होम ही घर में हो सकता है। क्योंकि उसमें पितरों को कभी वापस न लौटने के लिये विदाई दी जाती है।
  2. घर में या मोबाइल में पितरों के फोटो न लगाएं और न ही उनके नाम की दिया-बत्ती करें। उनके नाम का घर मे कोई स्थान न बनाएं। इससे पितरों के सूक्ष्म शरीर घर की ऊर्जा से रिकनेक्ट हो जाते हैं। उनके लिये मोक्ष मुश्किल हो जाता है। ऐसे घरों में दुख, बीमारियां और संघर्ष हमेशा बना रहता है।
  3. शरीर छोड़ चुके किसी भी व्यक्ति का फोटो घर में या मोबाइल की स्क्रीन पर न लगाएं। यह भावुकता मृतात्मा पर बहुत भारी पड़ती है। इससे वे बार बार रिकनेक्ट होते हैं, उनका मोक्ष अटकता है। मोबाइल वाले व्यक्ति का जीवन मुसीबतों से घिरा रहता है।
    गलतफहमी होती है कि जिसका फोटो मोबाइल या घर में लगाया है वे मुसीबतों से बचा रहे हैं, जबकि सच्चाई यह कि मुसीबतें आ ही उन मृत ऊर्जाओं के कारण रही होती हैं।
  4. दान से पितरों को मोक्षकारी सकारात्मक ऊर्जाएं प्राप्त होती हैं।
    इसे करते रहें।
    किंतु पितरों के नाम पर घर मे बुलाकर किसी को भोजन न करायें। सिर्फ किसी की तेरहवीं या बरसी में ही घर में बुलाकर पितृ भोज
    करायें। क्योंकि यह क्रिया पितरों को घर परिवार के मोह से छूटकर दूर मोक्ष की तरफ भेजने के लिये अपनाई जाती है।
    शिव शरणं।।