शिवप्रिया की शिवसिद्धि…24

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शिवप्रिया की शिवसिद्धि…24
अदृश्य ऋषियों के मार्गदर्शन का रहस्य

[भगवान राम के अवतरण के दिन जन्मी शिवप्रिया का आज जन्मदिन है। सभी को रामनवमी की शुभकामनाएं और ईश्वर को धन्यवाद!]

सभी अपनों को राम राम
【पूर्व में हमने जाना- गहन साधना के 39 वें दिन आदि देवी ने शिवप्रिया को बताया कि आज तुम्हारे मार्ग दर्शक बदल जाएंगे। शिवप्रिया के मन में सवाल उठा कौन होंगे नए मार्गदर्शक? पहले वाले मार्गदर्शक कौन थे? देवी ने उनके मन की बात जान ली और बताया नए मार्गदर्शक ऋषि अगस्त होंगे। वे आज तुम्हें ऋषि पतंजलि के पास ले जाएंगे। इससे पहले वाले मार्गदर्शक ऋषि वामदेव थे। तुम्हारे पहले मार्गदर्शक ऋषि वशिष्ठ हैं। वे साधना के अंतिम चरण तक तुम्हारे साथ रहेंगे। ऋषि वशिष्ठ ने तुम्हारे हृदय में जो रुद्राक्ष स्थापित कराया था, उसके जरिये तुम जब चाहो उनसे संपर्क कर सकती हो। 】

आज मै इन ऋषियों द्वारा शिवप्रिया को साधना में सहयोग के संयोग का रहस्य बताने जा रहा हूँ।
इससे पहले बताता चलूं कि 40 दिन की गहन साधना आरम्भ करने से पहले शिवप्रिया को वेदों, पुराणों की कोई जानकारी नही थी। ऋषियों, मुनियों से भी वे नावाकिफ थीं। अपने गोत्र, कुल गुरु, कुल ऋषि, कुल देव, कुल देवी, कुल रक्षक, अनुकूल देव तक की उन्हें जानकारी न थी। उनकी एकेडमिक शिक्षा में व्यवधान न हो इसलिये मैने भी इस बारे में उन्हें कभी कुछ नही बताया। ऋषियों के नाम, वेदों के नाम, उनका ज्ञान आदि उन्होंने पहली बार अदृश्य डाइमेंशन के मार्गदर्शकों से ही सुने और जाने हैं।
9 साल पहले जब मैने शिवप्रिया को ॐ नमः शिवाय मन्त्र साधना के लिये प्रेरित किया तब मुझे पता था कि उनके जन्म के पीछे बड़ा दैवीय उद्देश्य है। किंतु मै यह नही जानता था कि इसकी तैयारी में उनके कितने जन्म गुजरे हैं। इस साधना के किस चरण तक पहुंची हैं।
आदि देवी द्वारा उन्हें दी जानकारी से पता चला कि पिछले जन्म तक वे इस साधना के 4 चरण पूरे कर चुकी हैं।
9 साल पहले उनकी साधना का पांचवा चरण आरम्भ हुआ। जो इस समय की गहन साधना में सिद्ध हुआ। अर्थात पांचवे चरण की सिद्धि की तैयारी में 9 साल लगे। अब साधना के अंतिम छठे चरण की तैयारी 10 साल चलेगी।
इस साधना में उन्हें अदृश्य डाइमेंशन की शक्तियों द्वारा सहयोग किया जा रहा है। आदि देवी द्वारा दी जानकारी के मुताबिक भगवान शिव के आदेश से उन्हें अदृश्य मार्गदर्शन मिल रहा है।
आज मै इसी दैवीय संयोग का रहस्य बता रहा हूँ। शिवप्रिया के मार्गदर्शन हेतु ऋषि वशिष्ठ, ऋषि वामदेव, ऋषि अगस्त की ही नियुक्ति क्यों हुई? अथर्व वेद के रचयिता और यक्ष परंपरा का आरम्भ करने वाले ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि अथर्वा की भूमिका इतनी खास क्यों रखी गई? अथर्वा पुत्र महर्षि दधीचि को उनके लिये क्यों नियुक्त किया गया?
बताता चलूं कुछ सिद्धियां ऐसी होती हैं जिन्हें प्राप्त कर लेने वाले ऋषियों, संतों, साधकों पर से पंचतत्व का बंधन खत्म हो जाता है। पंचतत्वों का स्थूल शरीर छूट जाने के बाद भी वे संसार में बने रहते हैं। उनकी दुनिया का आयाम बदल जाता है। उनका सूक्ष्म शरीर उच्च आयामों में उपस्थित रहता है। उच्च आयामों में उम्र की सीमा नही होती। सूक्ष्म रूप से वे धरती के साधकों से संपर्क करते हैं, उनसे सहयोग लेते देते हैं।
अब बात करते हैं शिवप्रिया के पहले मार्गदर्शक की। आदि देवी ने बताया कि वे ऋषि वशिष्ठ हैं।
हमारा अर्थात शिवप्रिया का गोत्र वशिष्ठ है। गोत्र का अर्थ होता है उस ऋषि का नाम व्यक्ति जिसका वंशज है। वही ऋषि उस परिवार का कुल ऋषि होता है। इस तरह शिवप्रिया महर्षि वशिष्ठ की वंशज हैं। वशिष्ठ जी उनके कुल ऋषि हैं।
सभी अपने वंशजो को उत्तरोत्तर उन्नति करते देखना चाहते हैं। सभी कुल ऋषि अपने वंश में जन्मे सक्षम लोगों को सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति तक पहुंचाने के लिये प्रयत्नशील रहते हैं। इसीलिये ऋषि वशिष्ठ ने शिवप्रिया को बड़े उद्देश्य के लिये अपनाया।
अनगिनत अलौकिक सिद्धियों के स्वामी ऋषि वशिष्ठ की सूक्ष्म चेतना ने शिवप्रिया की चेतना को सहजता से उच्च आयामों में प्रवेश दिलाया। उन्हें तमाम अलौकिक लोकों के आयामों में ले गए। वहां दिव्य सिद्धियां कराईं। दैवीय ज्ञान दिया। ब्रह्मांड के अनेक रहस्यों से परिचित कराया। उनकी नाभि में उर्जा का दैवीय शिवलिंग स्थापित किया। उनके अनाहत चक्र में अलौकिक सिद्ध रुद्राक्ष स्थापित किया। उनके मन के उर्जा कमल में आमन्य मणि स्थापित की। वे साधना की सम्पूर्ण सिद्धि तक उनकी सहायता में रहेंगे। ऋषि वशिष्ठ ने शिवप्रिया को लोक कल्याण के कार्यों में भी सहयोग का वचन दिया हैं। अनाहत में स्थापित रुद्राक्ष के जरिये शिवप्रिया उनसे संपर्क करती रह सकती हैं।
अब साधना में शिवप्रिया के दूसरे मार्गदर्शक की बात करते हैं। वे हैं ऋषि वामदेव। ये वह महान ऋषि हैं जिन्होंने शिव स्वरूप परमात्मा की अनंत शक्तियों पर व्यापक शोध किया। उनकी विशाल शक्तियों के रहस्य को जाना। उन शक्तियों का लोग सरलता से सटीक उयोग कर सकें इसके लिये ॐ नमः शिवाय मन्त्र की रचना की। वे इस मन्त्र के ऋषि हैं। (मन्त्र विनियोग- अथ ॐ नमः शिवाय मंत्र। वामदेव ऋषिः। पंक्तिः छंदः। शिवो देवता। ॐ बीजम्। नमः शक्तिः। शिवाय कीलकम्। )
वामदेव ऋषि द्वारा रचित मन्त्र *ॐ नमः शिवाय की सिद्धि का मार्गदर्शन उनसे बेहतर कोई नही कर सकता*। ऋषि वशिष्ठ द्वारा सक्षम बनाये जाने पर उन्होंने शिवप्रिया को स्वीकारा। ऋषि वामदेव को उनकी गति के लिये भी जाना जाता है। वे काल (समय) की गति से आ जा सकते हैं। ॐ नमः शिवाय मन्त्र का शोध उन्होंने ब्रह्मांड के प्रथम छोर पर रहकर सम्पन्न किया। जो ब्रह्मांड की शक्तियों का केन्द्र है। वहां अति शक्ति संपन्न है शिवलिंग स्थापित है। अत्यधिक शक्तियों के कारण वह शिवलिंग बहुत गर्म है। उसके समक्ष जाने वाले अधिकांश लोग जलकर भस्म हो जाते हैं। वह शिवलिंग ब्रह्मांड की शक्तियों की धुरी है।
ॐ नमः शिवाय की सिद्धि करने वालों को उस शिवलिंग तक जाना अनिवार्य होता है। पिछले जन्म में चौथे चरण की साधना करते हुए शिवप्रिया की सूक्ष्म चेतना वहां पहुंची। शिवलिंग के समक्ष चौथे चरण की सिद्धि पूरी की। किंतु शिवलिंग की तपिश में उनका सूक्ष्म शरीर झुलस गया। जिससे स्थूल शरीर में उनकी मृत्यु हो गयी।
इस बार ऋषि वामदेव ने वहां की साधना पूरी कराई। शिवलिंग की तपिश से बचाने के लिये उन्होंने शिवप्रिया के सूक्ष्म शरीर को पृथ्वी के आयाम में ही छोड़ दिया। उसमें से उनकी चेतना को अपने साथ लेकर गए। उस दिन शिवप्रिया ने सूक्ष्म शरीर से चेतना को अलग होते पहली बार देखा। ऋषि वामदेव जानते थे कि उस शिवलिंग के समक्ष जाकर साधना पूरी करने और सुरक्षित वापस लौटने का मात्र यही तरीका है। किंतु सूक्ष्म शरीर से चेतना अधिक समय तक अलग नही रह सकती। उसे निर्धारित समय में वापस लौटना होता है। अन्यथा वापसी सम्भव नही होती। यह स्थिति भी स्थूल शरीर की मृत्यु का कारण बनती है।
यहां ऋषि वामदेव की गति काम आयी। उन्होंने काल वृक्ष का फल खिलाकर शिवप्रिया को काल यात्रा ( टाइम जर्नी ) के योग्य सक्षम बनाया। जिससे उनकी चेतना शिवलिंग के समक्ष पहुंचकर साधना सम्पन्न कर पाई। शिवप्रिया की नाभि में स्थापित शिवलिंग को शक्ति शिवलिंग से समक्ष रखकर उसमें विशाल शक्तियां स्थापित कराईं।
शिवप्रिया के अनुकूल देव यक्षराज कुबेर हैं। उन्होंने शिवप्रिया की साधना में सहयोग किया। उनकी अनुमति से ही ऋषि वामदेव शिवप्रिया की चेतना को काले ग्रह के भीतर ले जा सके। जहां यक्षराज कुबेर का खजाना स्थापित है। वहां ब्रह्मांड की अनंत अनमोल वस्तुवें हैं। जिनमें सबसे अनमोल वेद पुराण सहित ज्ञान के विभिन्न शास्त्रों की मूल प्रतियां हैं। वह ग्रह बहुत तेज गति से घूमता है। उसमें प्रवेश के लिये अत्यधिक गति की आवश्यकता होती है। ऋषि वामदेव की गति वहां काम आयी।
यक्षराज के सहयोग से शिवप्रिया के लिये वहां से अथर्व वेद संहिता की मूल पुस्तक प्राप्त की गई। जिसकी रचना ब्रह्माजी के मानस पुत्र ऋषि अथर्वा ने की थी। ऋषि वामदेव पुस्तक सहित शिवप्रिया को लेकर ऋषि दधीचि के पास गए। ऋषि दधीचि उन्हें लेकर अपने पिता ऋषि अथर्वा के पास गए। ऋषि अथर्वा ने शिवप्रिया के ज्ञान कोष में अथर्व वेद का ज्ञान स्थापित किया।
तब तक शिवप्रिया इन सभी ऋषियों और उनकी विशेषताओं से अनभिज्ञ थीं।
अगले दिन ऋषि वामदेव शिवप्रिया की चेतना को ऊंचे पहाडों पर स्थित गहरी गुफा में तपस्यारत एक ऋषि के पास ले गए। वे ऋषि कृतिक्रज्ञ थे। उन्हें ब्रह्म ज्ञान प्राप्त है। अगले 3 दिन ऋषि कृतिक्रज्ञ ने शिवप्रिया को अथर्व वेद के ज्ञान को डिकोड करना सिखाया। उपयोग करना सिखाया। उन्हें अपने से संपर्क करने का विधान दिया। ऋषि कृतिक्रज्ञ नारदजी की तरह ब्रह्मा पुत्र हैं। वे देव ऋषि हैं। ऋषि वामदेव ने शिवप्रिया को बताया कि ऋषि कृतिक्रज्ञ उनके गुरु हैं। उनकी तरह अनेक ऋषियों के गुरु हैं। परंतु ऋषि कृतिक्रज्ञ से मिलना अत्यंत दुर्लभ है। देवी देवता भी उनसे नही मिल सकते। मिलने की अनुमति उनके शिष्यों को भी नही है। जब वे खुद चाहते हैं तभी कोई उनसे मिल सकता है। शिव आदेश से ही ऋषि कृतिक्रज्ञ तुमसे मिलकर अमूल्य ज्ञान दे रहे हैं।
इतने प्रभावशाली ऋषि होने के बाद भी ऋषि कृतिक्रज्ञ के बारे में शास्त्रों में उनका कोई खास विवरण नही मिलता। इसके पीछे के रहस्य पर हम अलग से चर्चा करेंगे। फिलहाल इतना ध्यान रखें कि शिव शिष्यों के लिये सम्पूर्ण ब्रह्मांड हर पल तैयार रहता है।
क्रमशः!
!!शिव शरणं!!

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