कमरे की लाइट बन्द थी। अंधेरा था। कुछ क्षणों बाद कमरे में दिया बत्ती या बिजली का उपयोग किये बिना प्रकाश दिखने लगा। शिवप्रिया गहरी रोशनी में डूब गईं। प्रकाश की तीब्रता बढ़ती गयी। फिर लगा कि वे उसमें घुलती जा रही हैं। और वे घुल गईं। अब उनका अपना अस्तित्व न था। उस प्रकाश का हिस्सा थीं
शिवप्रिया सिद्ध घाटी में: गंगा मइया से सत्संग
सभी अपनों को राम राम। 4 Nov 2022, युगों से सिद्धों का क्षेत्र। हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रृंखला के बीच। सिद्धियों और दिव्य औषधियों की ऊर्जाओं से भरा मणिकूट पर्वत। नीलकण्ठ धाम को जाने वाला मार्ग पर स्थित सिद्ध मनोरम घाटी। यहां 40 किलोमीटर परिक्षेत्र युगों से सिद्धों का क्षेत्र रहा है। नीलकण्ठ धाम में भगवान शिव 60 साल ध्यानस्थ रहे। माता पार्वती ने इसी परिक्षेत्र के भुवन में 40 हजार साल गहन साधना की। हर युग में ऋषियों, मुनियों, सिद्धों ने उच्च सिद्धियों के लिये हिमालय के इस परिक्षेत्र को चुना। शिवप्रिया इन दिनों यहां अपनी गहन साधना कर रही हैं। कुछ दिन पहले यहीं उन्होंने अप्सरा प्रत्यक्षीकरण पुष्चरण सम्पन्न किया। आज देवउत्थानी एकादशी से उनकी साधना का अगला चरण शुरू हुआ। सुबह 4 बजे वे साधना के लिये बैठीं। ऋषिकेश से शुरू होने वाले इस साधना परिक्षत्र में अनेकों सिद्धों की चेतनाएं सूक्ष्म रूप से मौजूद हैं। वे यहां साधना करने वाले सक्षम साधकों को परखती हैं। उनसे संपर्क करती हैं। उनका सहयोग करती हैं। मार्गदर्शन करती हैं। साधना योजना के मुताबिक उन्हें सिद्ध क्षेत्रों, उच्च आयामों में लेकर जाती हैं। इसके लिये वे सूक्ष्म जगत की आध्यात्मिक तकनीक का उपयोग करती हैं। शिवप्रिया को यह सब नही पता था। उस घाटी में एक सिद्ध आश्रम है। जहाँ एक संत ने कुछ दशक पहले सिद्धियां अर्जित कीं। उन्हें इतना ही पता था। घाटी और उसके परिक्षेत्र में हजारों लाखों साल से मौजूद सिद्ध चेतनाओं की शिवप्रिया को जानकारी न थी। यह भी अंदाजा नही था कि कोई सिद्ध उनसे संपर्क करेगा। आज सुबह 4 बजे शिवप्रिया ने ऊर्जा कनेक्टिविटी स्थापित करने के बाद शिवगुरु को साक्षी बनाकर मन्त्र जप आरम्भ किया। कमरे की लाइट बन्द थी। अंधेरा था। कुछ क्षणों बाद कमरे में अपने आप प्रकाश भर गया। शिवप्रिया गहरे प्रकाश में डूब गईं। रोशनी बढ़ती गयी। फिर शिवप्रिया को लगा वे उस लाइट में घुलती जा रही हैं। और घुल गईं। अब उनका कोई अस्तित्व न था। उस प्रकाश का हिस्सा थीं। उन्हें लगा रोशनी कमरे से निकल कर किसी गहरी पर्वत घाटी से गुजर रही है। मानो प्रकाश कोई विमान हो और उन्हें उसमें कहीं ले जाया जा रहा हो। रोमांच के साथ जिज्ञासा से भरा सूक्ष्म सफर। कुछ देर बाद शिवप्रिया ने खुद एक ऐसी जगह पाया जहां दो किनारे थे। एक तरफ़ शांत, बरफ से ढके पहाड़, नीले आकाश से ढका मनभावन नजारा। दूसरी तरफ बिजली की कड़क, लाल बादल, उथल पुथल का अहसास और बेचैन सा करने वाला माहौल। शिवप्रिया को उनमें से किसी एक को चुनना था। उनका मन शांत, मनभावन छोर की तरफ गया। मगर वे चयन न कर सकीं। ऐसी परिस्थितियों में शिवप्रिया आदतन दिमाग पर जोर देने की बजाय बात को शिवगुरु पर छोड़ देती हैं। वही यहां भी किया। अपना मन्त्र जप शुरू कर दिया। कुछ क्षणों बाद नीले आकाश वाला छोर गायब हो गया। अब लाल बादलों वाला किनारा ही बचा था। शिवप्रिया ने उसमें प्रवेश किया। यह हाई डाइमेंशन का रास्ता था। आगे बढ़ने पर उन्हें पता चला कि इसी रास्ते से वे शिवगुरु तक पहुंचती हैं। इसी डाइमेंशन में उनका अधिकांश जप पूरा हुआ है। बाद में मौहाल शांत हो गया। वे बैठ गईं। जप में लीन हो गईं। कुछ समय बीता। वहां कोई आया। उन्हें जप से बाहर निकाला। कहा यहां से चलो। तुम्हारा कहीं और काम है। शिवप्रिया के लिये वे अपरिचित थे। अब तक जिन ऋषियों सिद्धों ने शिवप्रिया की साधना में सूक्ष्म मार्गदर्शन किया उनमें से नही थे। शिवप्रिया ने उनसे परिचय पूछा। मगर वे टाल गए। बोले मेरे साथ चलो। अपरिचित होने के बाद भी शिवप्रिया को उनमें अपनापन लगा। सो वे उनके साथ चल दीं। वे ऊपर की तरफ जा रहे थे। सफेद प्रकाश से भरे स्थान पर पहुंचे। वहां सब सफेद था। बिजली यहां भी कड़क रही थीं। उसी के बीच देवतुल्य महिला आवाज सुनाई देने लगी। देवी सामने नही आईं। किंतु शिवप्रिया को दिशा निर्देश दिए। इस साधना के दौरान उन्हें क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है और किन नियमों का पालन करना है। सब विस्तार में बताया। फिर आवाज आनी बन्द हो गयी। अचानक वहां धुवें के मनमोहक गुबार उठने लगे। उनके बीच अलग अलग डाइमेंशन की दुनियाएं दिखने लगीं। जैसे धुवें के बादलों के बीच उन दुनियाओं के लाइव वीडियो चल रहे हों। शिवप्रिया को उनमें एक दुनिया बहुत अच्छी लगी। वे उसमें प्रवेश करने को चलीं। किंतु साथ मौजूद सिद्ध की सूक्ष्म चेतना ने उन्हें रोक दिया। अपने साथ ले जाकर हरयाली से भरे एक पहाड़ पर बैठा दिया। वहां देव संगीत गूंज रहा था। बहुत अच्छी सुगंध थी। शिवप्रिया ने साधना का शेष मन्त्र जप वहीं पूरा किया। साधना की दो संभावनाएं– 1- हो सकता है सूक्ष्म धारी अपरिचित सिद्ध की चेतना शिवप्रिया को मां पार्वती के उस तप स्थल पर ले गयी। जहां माता ने 40 हजार साल की साधना की। माता ने वहां साधना भगवान शिव के प्राणों की रक्षा के लिये की थी। जब उन्होंने दुनिया बचाने के लिये समुद्र मंथन से निकले आणविक विनाश वाले विष को पी लिया था। शिवप्रिया मां पार्वती के तप स्थल भुवन कभी नही गईं। अन्यथा शायद जगह पहचान पाती। 2- परिस्थियों के दो किनारों में से शिवप्रिया को उथल पुथल, बिजली की कड़क, लाल बादलों वाले क्षेत्र का चयन कराया गया। कुछ दिन पहले दीपावली के अगले दिन अनिष्टकारी सूर्य ग्रहण हुआ। 15 दिन के भीतर 8 nov को देव दीवाली के दिन चंद्र ग्रहण होगा। यह संयोग द्वापर में बना था। तब महाभारत के रूप में विश्व युद्ध हुआ था। इस संयोग का दुष्प्रभाव शक्ति सम्पन्न किसी राजा के मन मस्तिष्क पर होता है। उसके एकतरफा निर्णय से महायुद्ध की परिस्थियां पैदा होती हैं। जैसे तब दुर्योधन पर हुआ था। हो सकता है ब्रह्मांड में सक्रिय सूक्ष्म चेतनाएं महाविनाश को रोकने के लिये सक्रिय हों। वे सक्षम साधकों के द्वारा खास साधनाओं से सकारात्मकता बढाकर विनाश रोकने के प्रयास कर रहे हों। हो सकता है शिवप्रिया उनके द्वारा चयनित साधकों में हों। कलयुग खत्म होने में अभी 4 लाख साल से अधिक का समय बाकी है। तो ब्रह्मांड के योजनाकार बिल्कुल नही चाहेंगे कि दुनिया बीच में ही खत्म हो जाये। शिव शरणं।।