सुनसान के साधक…6

sunsan ke sadhak6
सुनसान के साधक…6

मरे राजकुमार को जिंदा करने वाले साधक

हिमालय की शिवालिक पर्वत माला।
यह क्षेत्र ऋषियों, मुनियों, साधु, संतों और साधकों को हमेशा से आकर्षिक करता रहा है। यहीं स्थिति ऋषिकेश ऋषियों की राजधानी के रूप में जाना जाता है। मै भी इन दिनों शिवालिक के मणिकूट पर्वत में साधना कर रहा हूँ।
साधनाओं और सिद्धों की चर्चा करके हम यहां के साधकों के बारे में जानने की कोशिश कर रहे हैं।
वैसे तो ऋषियों, मुनियों ने यहां निरन्तर तपस्याएं की हैं, पर आज हम इस क्षेत्र में साधना करके सिद्ध हुए ऐसे संत की बात करेंगे, जिन्हें इस जमाने के लोगों ने देखा है।
इससे पहले बताता चलूं स्थानीय लोगों में सिद्धों के प्रति बड़ी उदासीनता है। प्रायः वे सभी साधुओं को या तो मांगकर खाने वाले बाबा या आलीशान आश्रमों में रहकर लाखों करोड़ों कमाने वाले बाबा ही मानते हैं। न वे सिद्धों की खोज करते हैं और न ही उन्हें सिद्ध दिखाई पड़ते हैं। उनके लिये या तो वे कमाऊ कस्टमर हैं या झिड़ककर दूर भगाने लायक भिखारी।
सामान्य जानकारी के लिये बता दूं कि यहां भिखारियों के साथ भंडारों में भोजन पाने वाले साधुओं में से कई उच्च कोटि के साधक भी होते हैं। कुछ सिद्ध भी।
वे खाने पीने की सामग्री जुटाने के तनाव और खाना बनाने में खर्च होने वाले समय को बचाते हैं। इसलिये अन्नक्षेत्र में खाने जाते हैं। इस तरह बचाये समय को वे भगवान से नजदीकियां बनाने में लगाते हैं। साधुओं के लिये यहाँ कई आश्रमों में अन्नक्षेत्र (भंडारे) चलते हैं। जहाँ हर दिन निर्धारित समय पर भोजन तैयार हो जाता है। साधु आते हैं। खाकर चले जाते हैं।
अधिकांश अन्न क्षेत्रों का टाइम अलग अलग है। ताकि यदि कोई साधु एक जगह भोजन के लिये समय से न पहुँच सके दो दूसरे अन्नक्षेत्र में जाकर भोजन पा ले।
सामान्य दृष्टि वाले लोग उन्हें भिखारियों की तरह देखते हैं। सच्चाई यह भी है कि उनमें साधुवेश धारी भिखारियों की भी बड़ी तादाद होती है। मगर उनके बीच सिद्धियों की तरफ बढ़ रहे साधकों की संख्या भी कम नही होती।
इसलिये ऋषिकेश या उसके आसपास जब कोई साधु दिखे तो सिर्फ भिखारी समझकर उसकी उपेक्षा न करें। सम्मान न दे पाएं तो तिरस्कार भी न करें। यहां देवों के संपर्क में रहने वाले देवदूत आंखों के सामने होते हैं, पर चकाचौंध के आदी लोगों का दुर्भाग्य कि वे उन्हें पहचान नही पाते।
किंतु सतर्कता भी जरूरी है। प्रपंची और पाखंडी भी फैले हैं। उनके हाथों ठग न जाएं, इतनी सतर्कता तो होनी ही चाहिये।
ध्यान रखे जो साधुवेश में है और सिद्ध है वह लोगों से पैसों की मांग नही मांगता। उसे विश्वास होता है कि भगवान उसकी जरूरतें पूरी कर ही देंगे।
काली कमली वाले बाबा
पूरे उत्तराखंड में इनके नाम से बड़े बड़े मन्दिर, आश्रम हैं। धर्मशालाएं हैं। विद्यालय हैं। चिकित्सालय हैं। अन्नक्षेत्र चलते हैं। इनके ट्रस्ट में अरबों रुपये की संपत्ति है।
बाबा सिद्ध थे।
कहा जाता है कि उन्होंने एक राजा के मरे हुए बेटे को जिंदा कर दिया था।
बात राजाओं के समय की है।
बाबा मणिकूट पहाड़ियों के जंगलों में साधनाएं करते थे।
यहां के राजा का अन्नक्षेत्र चलता था।
तमाम साधुओं, भिखारियों के बीच बाबा भी वहां भोजन पाने जाते थे।
एक दिन अन्नक्षेत्र में व्यवधान आया।
भोजन करने आने वाले साधुओं को पता चला कि राजा के बेटे की मृत्यु हो गयी है।
भंडारे में भोजन पाने गए बाबा को भी खबर मिली। वे राजा के महल में गए। सूचना भिजवाई एक बार राजकुमार की लाश उन्हें दिखाई जाए।
दरबारियों ने राजा को बताया एक साधु भंडारे में भोजन पाने रोज आता है। वह राजकुमार का मृत शरीर देखना चाहता है।
दुख में डूबे राजा ने साधु को वहां बुलवाया जहां राजकुमार का शव था। बाबा ने मन्त्र संजीवनी की।
राजकुमार जिंदा हो गया।
राजा ने ताम्रपत्र पर लिखकर दिया कि बाबा जहां जहां चाहें जितनी चाहें जमीन संपत्ति ले लें।
ऋषिकेश में स्वर्गाश्रम काली कमली वाले बाबा के ही नाम से चलता है। स्वर्गाश्रम अपने आप में पूरा शहर है।
ऐसे ही कई और साधकों ने यहां चमत्कारिक सिद्धियां अर्जित की हैं। इस श्रृंखला में उनकी चर्चा करता रहूंगा।
क्रमशः
शिव शरणं!

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: