यक्षिणी को साधकों के भीतर प्रवेश करती देख सोमेश की जान पर बन आई
सभी अपनों को राम राम
( उच्च साधना की प्रेरणा के लिये हम यहां मृत्युंजय योग द्वारा फरवरी 2019 में आयोजित यक्षिणी साधना का वृतांत बता रहे हैं. साधना में यक्षिणी बलि के रूप में खरगोश के मांस का चयन नही किया गया. उसकी जगह मैने मिठाई और फल की बलि दी. आशंका के मुताबिक चेतावनी मिली. मूल साधना के पहले ही दिन कुछ साधकों की जप माला एक साथ टूट गईं. साधना के दौरान माला टूटकर गिरने को साधक के लिये मृत्यु का खतरा माना जाता है. यह भारी चिंता का विषय था. साधकों की सुरक्षा के लिये अलग अलग सुरक्षा कवच निर्मित किये. सोमेश को उनकी हर पल निगरानी करने का निर्देश दिया.
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पहले ही दिन मृत्यु की चेतावनी. साधकों की सुरक्षा के लिये उन पर हर पल निगाह रखी जानी जरूरी थी. साधक यक्ष लोक से जुड़े रहें इसलिये निजी साधना कक्ष में मेरी साधना का होना भी अनिवार्य था. रात की साधना के समय मै सभी साधकों के आभामंडल यक्ष लोक से जोड़े रखने के लिये 3 घंटे की सघन साधना प्रतिदिन कर रहा था. उसके बिना कई साधकों का लक्ष्य तक पहुंच पाना मुश्किल था. सो मैने सोमेश से कहा कि वह साधकों के बीच बैठे. लगातार उन पर निगाह रखे. किसी भी साधक में कोई भी असामान्य दिखे तो तुरंत मुझे सूचित करे.
इसके साथ ही मै बीच बीच में निजी साधना कक्ष से निकलकर मुख्य साधना कक्ष में आता रहा. साधकों के सुरक्षा कवच का निरीक्षण करता. बीच बीच में कई साधकों के सुरक्षा कवच टूटे मिले. मतलब कि खतरा टला नही था. उनके सुरक्षा कवच दोबारा बनाकर सभी को कवचित करता रहा. 5 घंटे की साधना के दौरान एेसा कई बार करना पड़ा.
रात गहराती जा रही थी. बादल गरज रहे थे. तूफानी बारिश हो रही थी.
आधी रात के बाद सोमेश ने बंदना के भीतर देवी यक्षिणी को प्रवेश करते थे. बंदना उनमें से थीं जिसकी माला टूटी थी. उन पर मैने विशेष उर्जा लगा रखी थी. सोमेश को देवी काफी देर तक बंदना के भीतर बैठी दिखती रहीं. अन्य साधकों पर भी सुनहरा आभामंडल गहराता जा रहा था.
सोमेश ने बंदना के भीतर देवी के प्रवेश करने और उनमें दिखते रहने वाली बात मुझे नही बताई.
अगली सुबह साधक गंगा तट पर साधना करने गई. मौसम लगभग सामान्य था. सोमेश भी उनके साथ गंगा स्नान को गये थे. वहां साधको के मध्य गंगा स्नान करते वक्त सोमेश पर घात हुआ. उनके मुंह से जोर जोर से आवाजें निकलने लगीं. वह जमीन पर गिरकर छटपटाने लगे. गले से अजीब आवाजें निकलती रहीं. मुंह से झाग सा निकल गया. वे अचेत हो गये.
विवेक बंसल ने फोन पर इसकी जानकारी आश्रम में मौजूद अरुण को दी. अरुण ने मुझे बताया. उस समय मै निजी साधना में था. घटना की मानसिक विवेचना की तो सोमेश भारी खतरे में मिले. शिवगुरू से उनके उपचार और सुरक्षा हेतु आग्रह किया.
सोमेश को देवदूतों की सहायता प्राप्त हो गई.
कुछ देर में वे होश में आ गये. एेसा सोमेश के साथ पहले कभी नही हुआ था.
विवेक उन्हें लेकर आश्रम लौटे. तब उन्होंने रात में बंदना के भीतर देवी को देखने की बात बताई.
मेरी समझ में आ गया कि मामला क्या था.
उस रात मैने साधकों की औरिक सुरक्षा और कड़ी कर दी.
अगली रात सोमेश ने दूसरे साधक रुद्रा राणा के भीतर देवी को प्रवेश करते देखा.
क्रमशः।
शिव शरणं