अगर एनर्जी खराब हो तो देवी देवताओं के काम भी बिगड़ जाते हैं.
प्रणाम मै शिवांशु,
गुरुदेव ने मुझे उर्जा विज्ञान का उपयोग देवी देवताओं द्वारा भी किये जाने की एक घटना सुनाई. जिससे पता चलता है कि अगर एनर्जी खराब हो तो देवी देवताओं के काम भी बिगड़ जाती हैं. वो घटना आज आपके साथ शेयर कर रहा हूं.
बात तब की है जब शक्ति ने पार्वती के रूप में जन्म लिया. और शिव के साथ मिलन को तप शुरू किया. पार्वती ने तय किया था कि वे विवाह शिव से ही करेंगी. विद्वानों ने सलाह दी कि शिव को पति के रूप में पाने के लिये बहुत कठिन तप करना होगा. वे तैयार हो गईं. और एेसा तप शुरू किया जिसकी किसी ने कल्पना भी न की थी. वे हठ तक पहुंच गईं.
तप कठोर होता गया. मगर शिव से जुड़ न सकीं.
बात पार्वती के जीवन मरण तक आ पहुंची. सारा संसार चिंतित हो गया. क्योंकि खाना पीना छोड़कर किये निभाये जा रहे तप के कठोर नियमों के कारण पार्वती की जान भी जा सकती थी. साधना प्रतिपल कठोर होती जा रही थी. सभी वैद्य चिंतित हो उठे. खतरा जताया गया कि एेसा ही चला तो पार्वती को कभी भी मृत्यु का सामना करना पड़ सकता है.
दुनिया के सभी ऋषि, मुनि और अध्यात्मिक गुरुओं की सीख और उपाय फेल होने लगे. पार्वती का शिव से मिलन दुर्लभ बना रहा. समीक्षाकारों ने कहना शुरू कर दिया कि ये तप कामयाब नहीं होगा. सती वियोग में शिव ने जो पीड़ा झेली थी, उस कड़ुवे अनुभव के कारण अब वे कभी व्याह न करेंगे.
दुनिया ने मान लिया कि समीक्षाकार सही हैं. सब निराश हो चले. मगर पार्वती निराश न हुईं. न ही वे हार मानने को तैयार थीं. शिव से कम उन्हें कुछ चाहिये ही नहीं था. मृत्यु से वे न डरीं. मगर सफलता दूर नजर आती रही.
ब्रंह्मांड के सभी विद्वान हैरान थे. आखिर क्यों. सभी मानकों और नियमों के पालन के साथ की जा रही तपस्या क्यों फलित नहीं हो रही. शिव पति बनेंगे या नहीं, ये अलग मुद्दा है. मगर तप के प्रभाव से उन्हें पार्वती के समक्ष प्रकट तो होना ही चाहिये था. क्या शिव अपने ही बनाये तप के नियमों का उलंघन कर रहे हैं. या पार्वती के तप की उर्जायें उन तक पहुंच ही नहीं रहीं.
सभी जानते हैं कि शिव नियमों का उलंघन नहीं करते. सभी साधनाओं और तपस्या की विधियां व नियम उन्होंने ही बनाये हैं. जिनका पालन किया जाये तो इच्छित देवता को प्रकट होना ही पड़ता है. कोई भी देवता नियमों के तहत किये गए तप की अनदेखी करे तो उसका देवत्व नष्ट हो जाता है. ये व्सवस्था शिव ने ही स्थापित की है. वे खुद भी इस व्यवस्था से बंधें हैं.
तो क्या वे अपने शिवत्व को नष्ट कर देना चाहते हैं. क्योंकि अपने तप में पार्वती तय नियमों का अक्षरशः पालन कर रही थीं.
पार्वती की तपस्या कठोरतम होती जा रही थी. उनकी नाकामी का रहस्य गहराता जा रहा था. विद्वान और गुरु बेबस गये. शिव पार्वती का मिलन चाहने वाले देवता भी निराश हो चले. पहली सीढ़ी थी शिव का पार्वती के समक्ष प्रकट होना. फिर उनकी मर्जी थी कि वे उनसे व्याह करने का वरदान देते या न देते. पर मामला तो पहली सीढ़ी पर ही अटक गया था.
वो समय भी गया जब राज वैद्यों ने हर घड़ी पार्वती की तरफ मृत्यु के बढ़ते आने की घोषणा कर दी. सब चिंतित थे.
उन्हीं दिनों उर्जा विज्ञान की साधनायें करने वाले दधीचि ऋषि की साधना टूटी. उन्होंने पार्वती के तप क्षेत्र में प्रेवश किया. उनके आभामंडल और उर्जा चक्रों की स्थिति का परीक्षण किया.
ज्ञात हुआ कि पूर्व जन्म में क्रोधवश आत्मदाह कर लेने के कारण पार्वती की उर्जा विकार ग्रस्त हो गई थी. उनके आभामंडल और कुछ उर्जा चक्र अभी तक विकारग्रप्त थे. जिसके कारण तपस्या की उर्जा शिव तक पहुंच ही नहीं रही थी.
दधीचि ऋषि उच्च कोटि के संजीवनी उपचारक थे. उन्होंने पार्वती के उर्जा चक्रों और कुण्डली को व्यवस्थित किया. खुद उन्हे भी संजीवनी उपचार सिखाया. जिसका उपयोग करके पार्वती ने अपने उर्जा क्षेत्र को शिव के उर्जा क्षेत्र से जोड़ लिया.
एेसा होते ही पार्वती के प्रचंड तप की उर्जाएं शिव तक पहुंच गईं. वे प्रकट हुये. और शक्ति का पुनः शिव से मिलन हुआ.
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.