गुरु जी की हिमालय साधना…18
राम राम, मै शिवप्रिया
हिमालय साधना के दौरान गुरु जी ने गुप्तकाशी को अपना मुकाम बनाया. वहां से केदार घाटी के अन्य सिद्ध स्थलों पर जाकर साधनायें कीं. हिमालय साधना से वापस लौटने के बाद भी उनकी मौन साधना जारी है. इस बीच वे सिर्फ उन्हीं लोगों से बात कर रहे हैं. जो समस्याग्रस्त हैं. उन्हें समाधान देने के लिये ही बोलते हैं. बीच बीच में मै उनसे साधना वृतांत जानने की कोशिश कर रही हूं. जैसे जैसे उनसे जानकारी मिल रही है. मै आपके लिये लिखती चल रही हूं. ताकि मृत्युंजय योग से जुड़े साधक उनके अनुभवों का लाभ उठा सकें. यहां मै उन्हीं के शब्दों में उनका साधना वृतांत लिख रही हूँ।
|| गुरु जी ने आगे बताया…||
हमने काफी इंतजार किया. नीलमणि शांत नही हुये. उन्हें लग रहा था संतों के कहने पर मै मृत्यु को स्वीकार कर रहा हूं. हमने बीच में कई बार समझाने की कोशिश की. हर बार वे रो पड़े. उनकी एक ही जिद थी कि संतों के साथ मै ये अनुबंध न करूं. भावावेश में उन्होंने संतो से कह डाला कि आप हमारे गुरुदेव को हमसे अलग नही कर सकते. अपना काम खुद कर लीजिये. या गुरुदेव के अगले जन्म का इंतजार कर लीजिये.
हम नीलमणि की भावनाओं को समझ रहे थे. मगर उनका मेरे प्रति मोह एक बड़े ब्रह्मांडीय उद्देश्य के बीच आड़े आ रहा था. अंत में तय हुआ कि आज इस मुद्दे पर कोई बात नही होगी. दोनो संत जिधर से आये थे. उस तरफ लौट गये. हम भी वापस हो लिये. नीलमणि उस दिन सामान्य नही हो पाये. वे जानते थे कि मैने जो सोच लिया उसे करके ही रहुंगा. इसी बात को लेकर वे परेशान थे. ब्याकुलता में बार बार तमाम तरह के उदाहरण देकर मुझे संतों की बात न मानने का दबाव डालते रहे.
बाहर से मै खामोश था. अंदर से संतों के उद्देश्य और उसमें अपनी भूमिका पर मंथन कर रहा था. नीलमणि को मैने मन पढ़ना सिखा रखा था. सो वे बीच बीच में मेरा मन पढ़ रहे थे. उससे उनकी बेचैनी और बढ़ रही थी. इसका अहसास होते ही मैने अपने आज्ञा चक्र को मन की सूचनायें लीक न करने के लिये प्रतिबंधित कर दिया. साथ ही नीलमणि को गलत सूचना देने के लिये प्रोग्राम कर दिया. अब वे मेरा मन नही पढ़ सकते थे. बल्कि टेलीपैथी में अब उन्हें बार बार एक ही सूचना मिलनी थी कि मै उनकी बात मान गया हूं.
राहत मिली. अब वे कुछ शांत दिखे. मगर मै उनकी आज की प्रतिक्रिया से खुश नही था. जब वे शांत हुए तो मैने संतों के प्रति रुखे व्यवहार के लिये उन्हें डाटा. कहा अगर किसी दिन मेरी मृत्यु हो गई तब क्या करोगे तुम लोग. गुरु के प्रति इतनी दीवानगी अच्छी नही होती.
नीलमणि बोले कुछ नही. बस रो पड़े. मै लाॅज में लौट आया. उन्हें उनके होटल भेज दिया.
आज की घटना ने मुझे विचलित किया. मन में विचार आया, पता नही कब मैने इतना अपनापन बांट दिया लोगों में. जो अब मेरा ही रास्ता रोक रहा है. एेसे मोह के बीज तो मैने बोए ही नही थे. फिर ये फसल कैसे तैयार हो गई. शायद मेरी सरलता ने एेसा कर डाला.
भविष्य के लिये ये सबक था मेरे लिये.
उस रात मैने शिव गुरु से सवाल पूछा, क्या उन संतों की योजना मेरे बिना पूरी नही हो सकती. कुछ क्षणों बाद जवाब आ गया. मैने संतों के साथ काम करने का फैसला ले लिया. आगे की घटनाओं को शिव गुरु पर छोड़कर मै शिव साधना में लग गया.
अब मेरे पास उन संतों और उनके उद्देश्यों की जानकारी थी. उनमें से जो संत मुझे पहले नीलकंठ क्षेत्र में मिले थे. उनका नाम ईश्वर दास था. वे ऋषि वशिष्ठ द्वारा खोजी उर्जा योग विधि में पारंगत थे. उर्जा विज्ञान पर वे 150 साल से भी अधिक समय से अनुसंधान कर रहे थे. उर्जा के ठहराव के कारण उनकी उम्र का ठीक अंदाजा नही लगाया जा सकता. मगर वे दो सौ साल से भी अधिक आयु के थे. आभामंडल और उर्जा चक्रों की रग रग से वाकिफ थे. ब्रह्मांडीय उर्जा उनका कार्य क्षेत्र रहा है. उर्जा विज्ञान का सहारा लेकर उन्होंने कई सिद्धियां अर्जित कीं. जिनमें अदृश्य सिद्धि और वायुगमन सिद्धि भी शामिल थी.
अब वे अगले 6 साल तक मेरे साथ मिलकर उर्जा विज्ञान के कुछ क्षेत्रों में अनुसंधान करना चाहते थे. उन्होंने तय किया था कि अपने सालों साल चलने वाले अनुसंधान से मिले नतीजों को मेरे द्वारा लोगों पर उपयोग कराएंगे. उनके परिणामों के मुताबिक हम आगे के उर्जा अनुसंधान करेंगे.
हम इस पर सहमत हो गये. सबसे पहले मुझे उनके प्रारब्ध उपचारित करने के अनुसंधान का उपयोग करना था. जिसके कारण कई बार लोग जन्मों तक दुखों का शिकार होते हैं. उनके अनुसंधान मुझे शानदार और अपनी रिसर्च के बहुत करीब लगे. वे भी संजीवनी शक्ति का ही उपयोग करते हैं. संजीवनी विद्या उनका प्रिय विषय है.
आगे के उर्जा अनुसंधान में उनके साथ आये दूसरे संत को भी बराबर की भूमिका निभानी थी. भविष्य में हम एक टीम की तरह काम करने वाले थे.
दूसरे संत थे हरिनाम देव. ईश्वर दास जी के मुताबिक वे तीन सौ साल से साधनायें कर रहे हैं. मगर देखने में मुझे उनका शरीर इतना पुराना नही लगा. इस बारे में पता चला उन्होंने बीच में दो शरीर बदले. उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धी थी. उन्होंने बताया कि एक जन्म में वे मेरे साथ गहन साधना कर रहे थे. उस साधना के दौरान उनकी एक गल्ती के कारण मेरी मृत्यु हो गई.
जिसका श्राप उनकी सिद्धियों में बार बार आड़े आ रहा है. उसी की भरपाई के लिये वे मुझे ढ़ूंढ़ रहे थे.
बड़ा ही विचित्र मामला आ फंसा. मै उनसे बदला लूंगा नही. क्षमाभाव या सदभाव से इतनी पुरानी उर्जायें नही हटतीं. एेसे में उनके प्रारब्ध अटके रहेंगे. और लगातार उनकी सिद्धियों को प्रभावित करते रहेंगे.
उनका कहना था कि परकाया प्रवेश की सिद्धी का उपयोग करके वे मुझे मेरे शरीर से बाहर निकाल लेंगे. वे खुद भी अपने शरीर को छोड़कर बाहर आ जाएंगे. फिर हम दोनों सूक्ष्म रूप से उस कालखण्ड में पहुंचेगें. जहां उनके हाथों मेरी मृत्यु हुई थी. गलती का सुधार और प्रायश्चित वहां से शुरू हो तो काम बन जाएगा.
इस सहयोग के बदले में वे मुझे परकाया प्रवेश की सिद्धि कराते. साथ ही उर्जा विज्ञान की रिसर्च में अपना 300 साल साधनाओं का अनुभव शामिल करते.
प्रारब्ध से मुक्त होने का ये तरीका मेरे लिये बिल्कुल नया था. रहस्यों से भरी सृष्टि में नामुमकिन कुछ भी नहीं.
मगर उनकी योजना में थोड़ी गड़बड़ी की आशंका थी. वो यह कि अगर किसी कारण उस कालखण्ड से वापस न लौट पाये तो ये शरीर मृत ही पड़ा रहता.
हरिनाम देव जी ने बताया वे इससे पहले शरीर से निकलकर दूसरे कालखण्ड में कभी नही गये. और न ही अपने साथ किसी दूसरे के सूक्ष्म शरीर को लेकर यहां वहां जाने का कोई अनुभव है. इस कारण 50 प्रतिशत तक आशंका है कि हम दोनो उसी कालखण्ड में फंसे रह जायें. एेसे में कुछ समय बाद दोनो के शरीरों को मृत घोषित करना पड़ता.
इस दशा में भी हरिनाम देव जी श्राप मुक्त हो जाते.
इसी बात को लेकर नीलमणि की आशंका और विरोध सामने आया था.
अब अगले दिन मुझे नीलमणि से छिपकर हरिनाम देव जी के काम के लिये जाना था. मगर जा न सका. क्योंकि नीलमणि ने अपना जासूस मेरे पीछे लगा दिया था. जेम्स, नीलमणि का पालतू प्रेत.
जैसे ही मै गुप्तकाशी की बाजार से निकलकर पहाड़ों की तरफ बढ़ा, देखा वहां नीलमणि पीछे पीछे चले आ रहे हैं. मुझे समझते देर न लगी कि जेम्स उन्हें बुलाकर ले आया.
मै एक पेड़ की ओट लेकर खड़ा हो गया. पास आने पर नीलमणि से पूछा इसे कब से मेरे पीछे लगा रखा है.
जी एेसा नही है. नीलमणि हिचकिचाते हुए बोले. इसे तो मैने आपकी सेवा करने को कहा था.
तुम्हें पता है मुझे प्रेतों से काम लेना पसंद नही. मैने नीलमणि से कहा दोबारा ये मेरे पीछे आया तो इसे तुम्हारी सेवा करने लायक भी नही छोड़ुंगा.
तभी पास के पेड़ को झकझोर दिया गया.
पेड़ बुरी तरह हिलने लगा. बिना आंधी तूफान के एकाएक पेड़ हिलने के कारण उधर से गुजर रही दो महिलायें डरकर भागीं. वे अपने जानवर चराने जंगल की तरफ जा रही थीं. पेड़ इतनी तेज हिलाया गया था कि जानवर भी डर के मारे इधर उधर भागने लगे. ये हरकत नीलमणि के प्रेत जेम्स की थी. उसे मेरी बात अच्छी नही लगी. इसी कारण गुस्से में पेड़ हिला डाला.
अब गुरुदेव आप कुछ भी कहें. मै आपकी सेवा में रहना चाहता हूं. आपके साथ ही आपके ही कमरे में रहुंगा. नीलमणि ने मुझे रोकने का नया पैतरा अपनाया.
मै मुस्कराकर वापस लौट पड़ा.
नीलमणि ने अपना होटल छोड़ दिया. रहने के लिये लाॅज के मेरे कमरे में आ गये. मै समझ गया इस बार हरिनाम देव जी का काम नही होने वाला.
मै अपनी साधना में लग गया.
क्रमशः…।
… अब मै शिवप्रिया।
गुरु जी की साधना के अन्य रहस्य, पता चलते ही मै आगे लिखुंगी.
तब तक की राम राम।
शिवगुरु जी को प्रणाम।
गुरु जी को प्रणाम।