8 अप्रैल 2016
मेरी देवी महासाधना: दूसरा दिन
प्रणाम मै शिवांशु
सभी साथियों को नववर्ष की शुभकामनाएं.
गुरुदेव मुझे बिठूर में छोड़कर चले गये. उन्हें दिल्ली वापस जाना था. वहीं से हमारी उर्जाओं को देवी सिद्धी के लिये संवारते रहेंगे. दरअसल असली साधना तो गुरुवर को करनी थी. हम रोज 6 घंटे साधना कर रहे थे. गुरुदेव उर्जाओं को सिद्धी के लायक बनाने के लिये 3-3 घंटे के हिसाब से हम पर रोज 9 घंटे काम कर रहे थे. दूसरों के लिये उनकी लगन और तनमयता को देखकर ही पता चलता है कि सिद्धों के बीच उन्हें उर्जा नायक का सम्मान यूं ही नही मिला है.
मै महराज जी और उनके शिष्यों के साथ देवी महासाधना में व्यस्त हो गया.
दूसरे दिन हमारे साधना स्थल बदल दिये गये. साधना क्षेत्र अभी भी बिठूर शमशान परिक्षेत्र का ही हिस्सा था.
देवी साधना के साथ ही मै आपको बिठूर के बारे में बताता चलूं.
गंगा नदी के किनारे बसा बिठूर युगों से क्रांति का केंन्द्र रहा है. कानपुर से लगभग 29 किलोमीटर दूर. ये क्षेत्र धरती का केंद्र भी कहा जाता है. यहां ब्रह्मावर्त तीर्थ है. जहां ब्रह्मा की खूटी स्थापित है. धार्मिक मान्यता है कि ये खूटी ब्रह्मा जी ने स्थापित की. इसी पर धरती टिकी है. धरती इसी पर स्थित होकर अपनी धुरी पर गोल घूटती है. जिसके कारण दिन और रात उत्पन्न होते हैं.
ब्रह्मावर्त तीर्थ की बड़ी मान्यता है. लोग दूर दूर से इस खूटी को छूने के लिये आते हैं. ब्रह्मा जी की खूटी गंगा जी के बिल्कुल किनारे स्थित है. सावन भादो की बाढ में गंगा जी का पानी खूटी वाले मंदिर के भीतर तक घुस जाता है. मान्यता है कि गंगा स्नान करके खूटी को छूने से सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. महापाप से उत्पन्न दुख भी दूर हो जाते हैं.
गुरुदेव ने एक बार एक सवाल के जवाब में मुझसे कहा था * ये खूटी धरती की धुरी है या नही ये तो ब्रह्मा जी ही जानें, मगर ब्रह्मावर्त की खूटी की उर्जाओं का घनत्व इतना विशाल है कि वे धरती का बोझ उठा सकती हैं.*
बिठूर ने रामायण के रचयिता महर्षि बालमीकि के जीवन में क्रांति पैदा की.
बाल्मीकि पहले डाकू थे. बहुत ही खतरनाक डाकू. गंगा जी के किनारे के कटरी क्षेत्र में उनका भारी आतंक था. वे उधर से गुजरने वाले लोगों को न सिर्फ लूट लेते थे. बल्कि उन्हें मारकर गंगा नदी में फेंक दिया करते थे. उस युग में उनसे खूंखार डाकू कोई न था.
उनके आतंक के कारण ऋषि मुनि भी भयभीत थे. वे ब्रह्मावर्त तीर्थ की तरफ जाने से डरने लगे. जिसके कारण धरती पर कई तरह के अनिवार्य अध्यात्मिक कार्य प्रभावित हुए. ऋषियों ने भगवान विष्णु से बाल्मीकि के आतंक से मुक्ति की प्रार्थना की.
ब्रह्मावर्त तीर्थ क्षेत्र में रहने के कारण बाल्मीकि खूंखार होते हुए भी मृत्यु दंड की सीमा से बाहर थे. सो भगवान ने उनका वध नही किया. बल्कि ब्रह्मा जी की राय पर उन्हें सही राह दिखाने का निर्णय लिया.
भगवान विष्णु एक मुसाफिर का वेष बनाकर उधर से गुजरे. कोई वहां से गुजरे और बाल्मीकि से बच जाये. एेसा अब तक न हुआ था. सो उस दिन भी न हुआ. बाल्मीकि के गिरोह द्वारा इस मुसाफिर को भी पकड़ लिया गया. लूट लिया गया. अब बारी थी मुसाफिर को मारकर गंगा नदी में फेंक देने की. तो मुसाफिर बने भगवान ने बाल्मीकि से कहा दस्युराज आपने मुझे लूटा. ये तो समझ में आया कि हो सकता है अपने परिवार की जीविका के लिये आपको ये करना जरूरी लगता हो. मगर अब मुझे जान से मारने का उतावलापन क्यों. ये तो जरूरी नही लगता.
डाकू बाल्मीकि ने कहा हमने किसी को नही छोड़ा तो तुमको भी नही छोड़ेंगे.
मुसाफिर ने मुस्कराते हुए कहा तुम बड़ी गलती कर रहे हो. मै भगवान हूं. जब तुम मरकर मेरे पास आओगे तो मै तुम्हे इस पाप की बहुत कड़ी सजा दूंगा. अपने साथियों से पूछो ये वे सजा में भी तुम्हारा साथ देंगे.
बाल्मीकि को इस पर यकीन न हुआ कि मुसाफिर भगवान है.
तो भगवान ने कहा अच्छा ठीक है, मारने से पहले मुझे पानी पिलाओ. उन्हें पानी पिलाया गया. मुसाफिर ने थोड़ा पानी पिया. मुह में भरकर पानी पास खड़े नीम के एक पेड़ पर उगल दिया. फिर नीम की कुछ पत्तियां तोड़कर बाल्मीकि को खाने के लिये दीं. बाल्मीकि ने उन्हें खाया तो अाश्चर्य में पड़ गये. नीम की कड़ुवी पत्तियां मीठी हो गई थीं. जिससे बाल्मीकि को मुसाफिर की बातों पर विश्वास होने लगा. भगवान के पेड़ पर मुंह में भरा पानी उगलने से नीम की कड़ुवी पत्तियां मीठी हो गईं थीं.
अभी भी बिठूर में मीठी नीम का पेड़ है. स्थानीय लोग उसकी पत्तियों तोड़कर दाल व सब्जी में छौंक लगाने के लिये ले जाते हैं.
भगवान की बातों का प्रभाव पूरे गिरोह पर हुआ. डाकू साथियों ने पाप की सजा में बाल्मीकि का साथ देने से इंकार कर दिया.
भगवान ने बाल्मीकि से कहा तुम तो परिवार के पोषण के लिये लूटपाट करते हो. क्या तुम्हारे परिवार के लोग इस सजा में हिस्सा लेंगे.
बाल्मीकि को भरोसा था कि उनके परिवार वाले पाप के दंड में उनका साथ देंगे. फिर भी मुसाफिर की बातें सुनकर वह दुविधा में पड़ गया.
भगवान ने कहा जाओ परिवार वालों से पूछकर आओ.
मुसाफिर रूपी भगवान की सलाह पर बाल्मीकि ने उन्हें नीम के एक पेड से कसकर बांध दिया. ताकि वे भाग न जायें. फिर अपने घर वालों से बात करने चले गये. घर के लोगों ने भी पाप की सजा में उनका साथ देने से इंकार कर दिया. इस बात का बाल्मीकि के मन मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ा. वे पश्चाताप के भावों से भर गये. रोते हुआ वापस लौटे. कुछ बोल न सके. भगवान को बंधन मुक्त कर दिया.
भगवान ने मुस्कराकर कहा तुमने मुझे बंधन मुक्त किया है. मै तुम्हे पाप के बंधन से मुक्त होने की राह बताता हूं. तुम बलशाली हो. इस क्षेत्र में दस्युओं से साधु संतों की रक्षा करो. और राम राम का जाप करो. तुम्हारे पाप नष्ट हो जाएंगे.
बाल्मीकि के पाप कर्म इतने अधिक थे कि उनके मुंह से राम नाम निकल ही नही पाया.
तो भगवान ने कहा मरा मरा का जाप करो. खून खराबा करने वाले बाल्मीकि के मुंह से मरा मरा आसानी से निकलने लगा. लगातार और जल्दी जल्दी मरा मरा का जाप करने से शब्द उलट गये. और कुछ ही समय में उनके मुंह से राम राम निकलने लगा.
मरा मरा जपकर कालांतर में बाल्मीकि महा ऋषि बने.
बाल्मीकि रामायण की रचना की.
जब राम ने गर्भवती सीता को राज्य से बाहर भेजा. तो बाल्मीकि ने ही अपने आश्रम में सीता जी को रखकर उनकी देख भाल की. सीता माता ने वहीं लव और कुश को जन्म दिया.
बिठूर में अभी भी बाल्मीकि आश्रम में सीता माता की रसोई है. जहां वे खाना पकाया करती थीं. अब लोग वहां तीर्थ के रूप में सीता रसोई के दर्शन करने आते हैं.
सीता के पुत्र लव कुश बिछूर में ही खेल कूद कर पराक्रमी बने. इतने पराक्रमी कि समय आने पर अपने चाचा महाबली लक्षण और महावीर हनुूमान जी को भी युद्ध में हरा दिया. ये युद्ध अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े के लिये बिठूर से कुछ दूरी पर स्थित परियर के पास हुआ था. बाद में सीता माता परियर में ही धरती में समा गईं. जहां अब सीता कुंड बना है. लोग वहां भी तीर्थ के रूप में दर्शन करने आते हैं.
कालांतर एक और महापराक्रमी योद्धा का बिठूर में पालन पोषण हुआ. वे थीं झांसी की रानी लक्ष्मी बाई. बिठूर में उनके नाना राव पेशवा का राज था. वे वहीं पलीं. एक तरफ जहां अधिकांश राजा महराजा अंग्रेजों के सामने घुटने टेक रहे थे. वहीं बिठूर में नानाराव पेशवा ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था. वहीं से रानी लक्ष्मी बाई को अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ क्रांति की सीख मिली. फिर उन्होंने झांसी में अंग्रेजों के झक्के छुड़ाये.
इस तरह से बिठूर का हमेशा से धार्मिक, अध्यात्मिक और एेतिहासिक महत्व रहा है. वहां रहने के लिये लोगों के जितने घर हैं. उससे भी अधिक मंदिर हैं.
साधना के लिये बिठूर बहुत ही उपयुक्त स्थान है. गुरुवर बताते हैं कि वहां कि उर्जायें बड़ी सरल और विशाल हैं. उन्हें आसानी से ग्रहण किया जा सकता है. इसीलिये सिद्ध साधनाओं के लिये दुनिया भर से संत वहां आते रहते हैं. महराज जी भी उन दिनों अपने शिष्यों की साधनायें सिद्ध कराने के लिये वहां आये थे. वैसे महराज जी की अपनी साधनाओं का क्षेत्र कामरूप कामाख्या परिक्षेत्र रहा है.
बिठूर में महाराज जी के मार्गदर्शन में मेरी देवी महासाधना का दूसरा दिन पूरा हुआ.
दूसरे दिन भी ज्यादातर साथी साधकों की तरह मुझे भी कुछ खास अनुभव न हो सका.
सिर्फ राधे जी ने शिकायत की कि साधना के दौरान उन्हें एक प्रेत छाया परेशान कर रही है. महराज जी ने प्रेत छाया का पता लगाया. और तीसरे दिन की साधना में राधे जी को मेरे साथ साधना का जोड़ीदार बना दिया. लेकिन मुझे ये नही बताया गया कि जब उन्हें प्रेत छाया परेशान करेगी तब मुझे क्या करना होगा.
इसलिये तीसरे दिन की साधना को लेकर मेरे मन में अज्ञात भय की सी स्थिति थी.
क्रमशः.
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.