संकल्प में घोटालाः पूजा अनुष्ठान की विफलता का बड़ा कारण.
राम राम
लाखों खर्च करके की गई पूजा भी असफल हो जाती है. यदि उसके संकल्प में दोष हो तो.
जो खाना खाता है पेट उसी का भरता है,
जो दवा खाता है ठीक वही होता है,
जो योग-इक्सरसाइज करता है फायदा उसे ही होता है.
तो फिर मंत्र जपने वाले पंडित जी को ही उसका फल मिलना चाहिये न कि यजमान (पूजा-अनुष्ठान कराने वाला व्यक्ति) को.
अध्यात्म ने इसके लिये बहुत ही सटीक विज्ञान की रचना की.
वो है संकल्प पद्धति.
संकल्प में यजमान का परिचय, जहां पूजा कर रहे हैं उस स्थान का परिचय, उस समय का परिचय, देश काल का परिचय, मंत्र या अनुष्ठान का परिचय देकर यजमान की कामना अर्थात अनुष्ठान का उद्देश्य बोला जाता है.
इस तरह पूजा कराने वाले व्यक्ति की उर्जा को सम्बंधित देवता की उर्जा से लिंक कर दिया जाता है. तब पूजा से प्राप्त उर्जायें यजमान तक पहुंचती हैं. उसे निर्धारित फल प्राप्त होता है.
*एक तरह से संकल्प वो एड्रेस (पता) होता है जिसके जरिये अनुष्ठान के देवता की उर्जायें यजमान तक पहुंचती है*.
मगर आजकल ज्यादातर पंडित पुरोहित पूजा अनुष्ठान में दोष पूर्ण संकल्प करा रहे हैं. इसे संकल्प में घोटाला कहा जाये तो अनुचित न होगा. जिसके कारण लाखों खर्च करके भी लोगों को पूजा अनुष्ठान का फल नही मिलता.
नीचे ध्यान दें आप समझ जाएंगे गड़बड़ कहां है.
पूजा अनुष्ठान के समय आपने देखा होगा पंडित जी हथेली में पानी देकर संकल्प बोलते हैं. फिर कहते हैं जल को जमीन पर गिरा दें.
पंडित जी द्वारा बोला जा रहा संकल्प मंत्र कुछ इस तरह होता है…
ओउमतत्सदध्ये तस्य ब्राह्मो ह्नी द्वितीय परर्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्त अंतर्गत देशे वैवस्त मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथम चरने श्री विक्रमार्क राज्यदमुक संवत्सर……..
वे बीच में कहते हैं आप लोग अपना अपना नाम और गोत्र का नाम बोलें.
… उसके बाद पंडित जी बाकी संकल्प मंत्र बोलने लगते हैं.
ये गलत है.
इसे एेसे समझें जैसे एक कागज पर पता लिखा है. उसके दो टुकड़ों कर दिये गये. आधा पंडित जी ले गये आधा आपके हिस्से आया. एेसे टुकड़ों से कोई भी निर्धारित पते तक नही पहुंच सकता. क्योंकि दोनो के पते अधूरे हैं.
*इतनी सी चूक पूरे पूजा-अनुष्ठान को निष्फल कर देती है*.
होना ये चाहिये….
संकल्प यजमान खुद बोले.
संस्कृत न बोल पाने की दशा में पंडित जी एक एक शब्द बोलें और यजमान उन शब्दों को दोहराकर संकल्प पूरा करे.
या यजमान द्वारा सरल हिन्दी में संकल्प बोला जाये.
ध्यान रखें देवी देवता और उनकी उर्जायें हर भाषा समझते हैं.
*सरल हिन्दी में संकल्प*…
मै आत्मास्वरूप (आत्मा को सांसारिक परिचय की जरूरत नही होती)
देवों के देव महादेव ( या जिस देवता में अधिक लगन हो उसका नाम ले सकते हैं)
को साक्षी बनाकर मौजूदा देश काल में ब्रह्मांड में स्थिति ग्रह- नक्षत्रों की उपस्थिति में यथासामर्थ्य
(यदि पूजा खुद नही कर रहे हों तो उन पंडित जी का नाम व गोत्र नाम लें जिनसे करा रहे हैं )
….. के द्वारा
मंत्र/अनुष्ठान (जिस पूजा को कर रहे हैं उसका नाम)
सम्पन्न कर रहा/रही हूं. इसकी सफलता हेतु संसार की समस्त शक्तियां मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें.
इसके लिये सभी शक्तियों को धन्यवाद.
फिर अपनी पूजा आरम्भ करें.
पूजा के नियमों को निभाया तो मनचाहे परिणाम मिल ही जाएंगे.
ध्यान रखें कर्मकांड करने वाले ज्यादातर पंडित-पुजारी देवदोष से गुजर रहे होते हैं. क्योंकि जाने अनजाने पूजा पाठ में उनसे चूक होती ही रहती है. इस कारण उनके स्वभाव में अहमं उत्पन्न हो जाता है.
एेसे में यदि आपने उन्हें संकल्प का स्वरूप बदलने की सलाह दी तो तुरंत बुरा मान बैठेंगे. जिससे उनका मन खराब हो जाएगा. खराब मन से की पूजा दुष्परिणाम देती है.
इसलिये पंडित जी जो औपचारिकता कर रहे हों उन्हें करने दें.
हिंदी वाला संकल्प आप स्वतः मन में ले लें.
सदैव याद रखें पूजा पाठ कराने आने वाले पंडितों का कभी अपमान न करें. इससे उनका देवदोष बहकर आप पर आ जाएगा. जो कठोर समस्या का कारण बनता है.
इस समस्या का कोई इलाज नही होता.
आपका जीवन सुखी हो यही हमारी कामना है.