गुरुदेव की हिमालय साधना का दूसरा दिन 16 जून 17
अदृश्य शक्तियों वाले साधू से मौन मुलाकात
प्रणाम मै शिवांशु
कल गुरुदेव की मौन साधना का पहला दिन था। मौन साधना के दौरान उन्हें ढूंढ पाना बड़ा कठिन होता है। क्योंकि मोबाइल या तो बन्द कर देते हैं या साइलेन्स पर कर देते हैं। अक्सर तो मोबाइल अपने पास रखते ही नहीं।
हिमालय साधना की आगे की तैयारी के लिये मै परसों रुड़की चला गया था। वहां गुरुदेव की साधना से सम्बंधित कुछ वस्तुओं का इंतजाम करना था। साथ ही गुरुवर के एक आध्यात्मिक मित्र से मिलकर कुछ चीजें लेनी थीं। गुरुदेव के वे मित्र एक दिन पहले ही हिमालय साधना से लौटे हैं, वापसी में 2 दिन के लिये रुड़की में रुके।
परसों रात मै उनके साथ ही रहा। हिमालय साधना के समय उनके अनुभय चमत्कृत कर देने वाले रहे। जिन्हें सुनकर मै बहुत रोमांचित हुआ। कभी समय मिला तो आपके साथ शेयर करूँगा।
कल दोपहर हम रुड़की से हरिद्वार लौटे। गुरुदेव का मोबाइल ऑफ मिला। आश्रम में उनका कमरा बन्द मिला। किसी को पता नही था कि वे कहाँ हैं।
हम उनके कमरे के पास वाले जामुन के पेड़ के नीचे बिखरे जामुन इकट्ठे करके खाते रहे। पास में पका हुआ एक कटहल पड़ा था। मुझे ऐसे कटहल के बीज बहुत पसंद हैं। मगर उसे एक बन्दर ने हथिया रखा था। अपने 1 छोटे बच्चे के साथ उसे खाने की कोशिश कर रहा था।
हमने कुछ जामुन गुरुवर के लिये भी इकट्ठे किये। उन्हें एक थैली में भरकर गंगा जी की तरफ चल दिए।
काफी देर इंतजार के बाद मुझे लगा गुरुवर वहीं होंगे। उन्हें गंगा किनारे साधनाएं करने आने वाले सन्तों के साथ बैठना बहुत पसन्द है।
हम अलखनंदा घाट पर पहुंचे। मेरे साथ ऋषिकेश के 2 साधक और थे। वे गुरुवर से पहली बार मिलने वाले थे।
काफी आगे जाने पर गुरुदेव पीपल के एक पेड़ के नीचे ध्यान साधना करते मिले।
वे अकेले थे।
हम पास बैठ गए।
लगभग डेढ़ घण्टे बाद उन्होंने आँखे खोलीं।
इस बीच हम एक बोतल में गंगा जल भर लाये थे। क्योंकि साधना कर रहे गुरुदेव के पास पानी रखा नही दिखा। हमने सोचा ध्यान से उठने पर शायद उन्हें प्यास लगे।
आँखे खोलते ही उनका हाथ सीधे पानी की बोतल पर गया। बोतल उठा ली और उसका आधे से ज्यादा पानी पी गए। वे प्यासे थे।
पानी पीने के बाद मेरी तरफ देखा और मुस्करा दिए।
ध्यान में ही उन्हें हमारी मौजूदगी का पता चल गया था।
उनका मौन था, सो हम चुप रहे।
धुप बहुत तेज थी। मगर पीपल के घने वृक्ष की छाँव ने हमें संरक्षित कर रखा था। हवा के झोकों की शीतलता ए सी की कूलिंग से कई गुना भली लग रही थी।
मैंने गुरुवर के सामने जामुन रख दिए। उन्होंने थोड़े से खाये बाकी हमें दे दिये।
उसी बीच वहां एक अजीब सन्त आये। गुरुदेव से बोले जाना मत मुझे तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है। गंगा से पानी भरकर आता हूँ।
ये बात उन्होंने बंगाली में कही थी। मतलब वे बंगाल से थे।
मैंने गुरुदेव से पूछा आप जानते हैं इन्हें।
गुरुवर ने न में सर हिलाया।
वे संत ऐसे बोल रहे थे जैसे गुरुदेव को जन्मों से जानते हों।
झुलसा देने वाली गर्मी में भी उन्होंने कम्बल ओढ़ा हुआ था। या यूँ कहें कि उन्होंने कम्बल पहन रखा था। दोहरा करके आधा कम्बल नीचे कमर में लिपटा था। आधा ऊपर पेट से कन्धे तक लिपटा था।
गले में तुलसी की कई मालाएं। हाथों पैरों के नाखूनों में लाल नेलपोलिस। गले में माला जपने वाली गोमुखी। बाल छोटे। रंग सांवला।
कुछ मिनटों बाद वे लौटे। लौटते समय रास्ते में एक जगह रुककर चिलम पीने लगे। वहां कुछ लड़के चिलम पी रहे थे। उन्होंने साधू को ऑफर कर दी तो वे रुककर पीने लगे।
चिलम पीते पीते उन्होंने हाथ उठाकर गुरुदेव की तरफ इशारा किया। जैसे कह रहे हों ये जरूरी काम निपटा लूँ बस 2 मिनट में आया।
जवाब में गुरुवर मुस्करा दिए।
चिलम पीकर वे पास आये।
मै हैरान हुआ।
गुरुदेव से ऐसे हाथ मिलाकर मिले जैसे जन्मों से जानते हों। जबकि गुरुवर सामान्य भेषभूषा में थे। उन्होंने टी शर्ट और शार्ट कैफ्री पहन रखी थी। ऊपर से दुपट्टे की तरह पीताम्बरी डाली थी।
कुल मिलाकर गुरुदेव भेषभूषा से साधू नही लग रहे थे। वे घुमक्कड़ युवक से लग रहे थे।
फिर कम्बलधारी साधू उनसे ऐसे क्यू मिल रहे हैं, मै ये सोचकर हैरान था।
उन साधू को हिंदी नही आती थी। बंगला में ही बात कर रहे थे। उनकी आधी बातें मेरी समझ में आ ही नही रही थीं।
ऐसा लग रहा था उन्हें बातें करने की बहुत जल्दी थी। वे गुरुदेव से अपने कई सवालों के जवाब जानना चाहते थे।
उसी बीच मैंने उन्हें बताया कि गुरुदेव का मौन चल रहा है। वे आपसे 3 दिन तक बात नही कर सकते।
मेरी बात सुनकर वे बहुत उत्तेजित हो गए। बड़बड़ाते हुए बोले मुझे तो इनसे तमाम बातें करनी हैं। कई सवालों के जवाब लेने हैं। मै इंतजार नही कर सकता। किस क्षण सांस रुक जाये क्या पता।
बातों बातों में उन्होंने अपना नाम गोपेश महादेव बताया।
जब से आवेस में आये तो मै चकित रह गया। उनके पास कोई अदृश्य शक्ति थी। उत्तेजना के समय उसकी ऊर्जाएं न सिर्फ प्रखर हो गयी बल्कि प्रहारक भी हो गयीं।
मै इस बात पर हैरान था कि उनके पास कोई अदृश्य शक्ति है ये मुझे पहले क्यों नही पता चला।
मैंने गुरुदेव से धीरे से पूछा इनके साथ प्रेत है क्या।
गुरुवर ने न में सर हिला दिया।
तो क्या छिपे हुए नकारात्मक तत्व हैं।
गुरुवर ने फिर इंकार में सर हिलाया।
तो क्या कोई देव शक्ति या यक्ष शक्ति है।
गुरुवर ने फिर इंकार में सर हिलाया।
तो क्या कोई कोई जिन्न,शागिर्द, पीर, वीर में से कुछ है।
गुरुवर ने फिर इंकार में सर हिलाया। साथ ही मुझे तेज नजरों से देखा। यानी वे नही चाहते थे कि मै इसको लेकर कोई और सवाल करूँ।
मै चुप हो गया।
उसी बीच गोपेश महादेव जी गुरुदेव का हाथ पकड़कर अपने स्थान पर ले गए।
उन्होंने पीपल के एक पेड़ के नीचे डेरा बनाया था। वहीं जाकर बैठ गए।
हमें दूर रहने का इशारा किया। हम दूर एक पेड़ की छाँव में बैठकर उन्हें देखने लगे।
हमने देखा कि गोपेश महादेव जी ने पीपल के चबूतरे पर गुरुदेव के लिए कम्बल का एक आसन बिछाया। गुरुवर उस पर बैठ गए।
फिर गोपेश महादेव जी हाथों में खाली गिलास लिये नंगे पैर उत्तर की तरफ चले गए।
वे हमेशा नंगे पैर ही रहते हैं। बिना जूते चप्पल के उन्होंने देश भर के तमाम तीर्थों का भ्रमण किया है।
बातों बातों में उन्होंने बताया कि विदेशों में भी कई जगह गए। सब जगह नंगे पैर ही जाते हैं।
थोड़ी देर बाद वे हाथ में चाय लेकर लौटे। गुरुदेव को भी एक डिस्पोजल में चाय दी। चाय पीते हुए बातें करने लगे।
बातें कर नही बल्कि बता रहे थे। गुरुदेव हाँ या न में सर हिला रहे थे। उनकी बातें काफी लम्बी चलीं।
उसी बीच हमने आस पास के लोगों से गोपेश महादेव जी के बारे में पूछा। लोगों ने बताया कि वे 5 दिन पहले पीपल के नीचे रहने आये।
कुछ लोगों ने कहा बाबा पागल है। कुछ ने कहा बाबा पर पीपल वाला भुत चढ़ गया है। कुछ ने कहा बाबा के पास बंगाल की काली शक्तियां हैं।
उत्सुकता मेरे मन में भी थी। आखिर उनके पास ऐसी किस किस्म की अदृश्य शक्ति है जिसे मै देखते ही जान न पाया। ऐसी कौन सी शक्ति है जो अपनी ऊर्जाओं को जाहिर होने से रोके रह सकती है।
इन सवालों के साथ मै गुरुवर और गोपेश महादेव जी की मुलाकात पूरी होने का इंतजार करने लगा।
शिवगुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन