गुरुदेव की हिमालय साधना आरम्भ
साधना से पहले सन्त-पुत्र की भटकती आत्मा को मोक्ष का वीणा उठाया
प्रणाम मै शिवांशु
हिमालय साधना के लिये गुरुवर आज सन्तों की नगरी हरिद्वार पहुँच गए। इस बार उन्होंने रेल मार्ग चुना। देहरादून शताब्दी से साढ़े ग्यारह बजे हरिद्वार पहुंचे।
वहां से गंगा स्नान के लिये अपने आध्यात्मिक मित्र जायसवाल जी के साथ अलखनंदा घाट गए। इस बार की साधना की शुरुआत के लिये गुरुदेव को ये जगह भा गयी। उन्होंने पास के एक सिद्ध आश्रम में रहकर साधना करना तय किया।
वैसे तो हरिद्वार में भी इन दिनों बहुत गर्मी है। परन्तु गुरुदेव ने अपने रहने व् साधना करने की व्यवस्था ए सी, कूलर की बजाय सामान्य पंखे वाले साधारण स्थान पर स्वीकारी है। उसे देखकर मै थोडा चिंतित हुआ। क्योंकि पॉवर कट के समय वहां इन्वर्टर या जनरेटर नही है। बिना पंखे के ही रहना पड़ेगा।
मैंने उनके लिये वातानुकूलित स्थान की व्यवस्था की, मगर गुरुवर ने उसे ठुकरा दिया।
हरिद्वार में उनकी साधना का पहला चरण 3 दिन का है। साधना कल से शुरू होगी।
कल से 19 जून तक उनका मौन रहेगा। आज रात 12 बजे से मौन स्टार्ट हो जायेगा।
ये उनकी एकांत साधना होगी। जिसमें वे देव शक्तियों से सम्पर्क करते हैं।
इस बीच वहीं गंगा जी के घाट पर उनके आध्यात्मिक मित्र योगी बाबा औघड जी के पुत्र की भटकती आत्मा को मोक्ष दिलाएंगे।
आज वहां औघड जी को देखकर मै चौंक गया। वे वहां अपने पुत्र की आत्मा के लिये अनुष्ठान करते मिले। उन्हें देखकर गुरुदेव ऐसे मिले जैसे उन्हीं के लिये वहां आये हों। औघड़ जी भी गुरुवर से ऐसे मिले जैसे उनका ही इंतजार कर रहे हों। देखते ही बोले गंगा मइया ने आपको भेज दिया अब मै निश्चिन्त हुआ।
हरिद्वार आने तक गुरुदेव ने औघड़ जी से मिलने का कोई संकेत नही दिया था। गंगा जी के घाट पर वे मिलेंगे ये भी नही बताया था।
औघड़ जी सिद्ध सन्त हैं। कुछ अर्से पहले उनके बेटे की छोटी उम्र में ही आकस्मिक मृत्यु हो गयी। उसके मोक्ष के लिये कराया एक अनुष्ठान बिगड़ गया। जिसके कारण आत्मा भटक गयी। तब से औघड़ जी काफी विचलित रहे हैं।
गुरुदेव ने आज आत्मा के मोक्ष का वीणा उठाया। उनके वादे से औघड़ जी निश्चिन्त नजर आये।
तीन दिन की मौन साधना के बाद गुरुवर मोक्ष का औरिक अनुष्ठान करेंगे।
एकांत साधना के कारण अभी तो मुझे गुरुवर के साथ रहने का अवसर नही मिल रहा है। फिर भी उनके साधना वृतांत का कुछ अंश मिल पाया तो आपसे शेयर करता रहूंगा।
शिवगुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन