गुरुदेव की हिमालय साधना-3

निर्वस्त्र साधना के मुकाबले दोहरी सुरक्षा अपनानी पड़ी


प्रणाम मै शिवांशु
गुरुदेव 15 जून को हिमालय साधना के लिये रवाना हो रहे हैं. इस बार साधना के समय मुझे उनके साथ कुछ दिन रहने का सौभाग्य मिलने की सम्भावना है. जब तक वे साथ रहने की अनुमति देंगे तब तक मै आपके साथ उनका साधना वृतांत शेयर करता रहुंगा.
इस बीच महासाधना वाट्सअप ग्रुप के कुछ साथियों ने मुझसे चाहा है कि मै अपनी पिछली हिमालय साधना के कुछ अंश शेयर करूं.
ताकि जो साथी उच्च साधनाओं की इच्छा रखते हैं. कुछ जानने समझने का मौका मिले.
पिछले दिनों मैने एक पहाणी देवी माई की जानकारी दी.
वह खूबसूरत और अत्यंत सम्मोहक व्यक्तित्व वाली युवती थीं. लोगों का ज्ञात अज्ञात जानने में सिद्ध थीं. उन्हें उनके फालोवर माई कहते थे. मुझे देखते ही माई ने मेरे बारे में ऐसी बातें बतानी शुरु कर दीं. जिन्हें सिर्फ मै ही जानता था. उनकी सारी बातें सत्य थीं.
फिर भी मैने उन्हें झुठला दिया.

अब आगे…
जब मैने कहा माई की मेरे बारे में दी अधिकांश जानकारियां गलत हैं तो माई गुस्से में बुरी तरह झूमने लगीं. मानो उन पर प्रेत नाच रहे हों.
श्यामल जी को बहुत बुरा लगा. वे जानते थे कि माई ने जो बताया वो सब सच है. वे ही मुझे वहां लेकर गये थे. वे माई की सिद्धियों में भरोसा रखते थे. मेरे इशारे पर कुछ देर के लिये शांत तो जरूर हुए मगर खुद को अधिक देर तक रोक नही पाये.
माई के गुस्से को भांपकर उनके अधिकांश भक्त दरबार से भाग गये. जिससे मैने अंदाज लगाया कि वहां माई की सिद्धियों का पूरा दबदबा है. कोई उनका सामना नही करना चाहता.
उसी बीच मै गुस्से से हुंकारियां भर रही माई के पास जाकर बैठ गया था.
श्यामल जी मेरे पास आकर बैठ गये. मेरे कान के पास आकर बुदबुदाये. कहा आपने ऐसा क्यों किया. आप नही जानते माई का कोप बहुत भयानक होता है. अब कौन सम्भालेगा. प्रलय आ जाएगी. माई की शक्तियां आपकी जान ले सकती हैं.
मैने भी उनके कान में बुदबुदा दिया. कहा आप थोड़ी देर शांत रहिये. माई ने सिद्धियों की मर्यादा का उलंघन किया है. वे मेरा कुछ नही बिगाड़ेंगी.
श्यामल जी चुप होकर बैठ गये. मगर उनके चेहरे पर भी भय की रेखायें खिचीं थीं. शायद वे इस बात से डर रहे थे कि माई का श्राप मेरा नाश न कर डाले.
मै मुस्कराता ही रहा. मेरी मुस्कान माई को चिढ़ा रही थी.
15 मिनट तक माई झूमती रही. बीच बीच में मुझे घूरकर देखती. फिर बाल फैलाकर हुंकार मारती और झूमने लगती.
फिर एकाएक शांत हो गई.
अपने भक्तों से बोली मुझे इससे कुछ बात करनी है. जाते समय तुम लोग बाहर से दरवाजा बंद कर लेना.
सारे उनका इशारा समझते थे. वे उठकर चले गये. श्यामल जी भी बाहर चले गये.
कमरा बाहर से बंद कर लिया गया था.
माई ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिया. कुछ क्षणों में वे जन्मजात बच्चे की तरह वस्त्र विहीन हो गईं.
मै जान गया कि ये माई की साधना का तरीका है. मेरी उपस्थिति का संकोच किये बिना वे आंख बंद करके जाप करने लगीं.
कमरे की कम रोशनी में उनकी काया अप्सराओं की तरह दिख रही थी.
अब मुझे दोहरी सुरक्षा की जरूरत थी. एक तो उसके लिये जो खतरा उनकी सिद्धियों से था. दूसरी सुरक्षा उसके लिये जिससे मै खुद को वासना की भावनाओं से बचा सकूं. उनकी सम्मोहक छवि मुझे उत्तेजक न बना सके.
मैने गुरुवर द्वारा सिखाई तकनीक को अपनाना शुरू किया. जिसके द्वारा अप्सराओं के साथ रहकर भी खुद को वासना से बचाया जा सकता था.
इस तकनीक पर गुरुदेव ने मुझे बहुत अधिक अभ्यास कराया है.
तकनीक काम आयी. कुछ ही पलों में माई मुझे 3 साल की बच्ची सी लगने लगी.
यहां मै बताता चलूं कि माई का इरादा गलत नही था.
वे जो कर रही थीं वह उनकी साधना का तरीका था.

उसके बाद माई काफी देर तक मुझे देखती रही.
मगर अब उनकी आंखों में तपन नही थी. गुस्सा नही था।
अब वे जिज्ञासा से मुझे देख रही थीं. उनकी आंखों में जिज्ञासा के साथ आग्रह का भी इशारा था.
कैसे किया आपने ये. कुछ देर शांत रहने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा.
मै समझ गया कि वे जान चुकी हैं मैने उनकी सिद्धियों की उर्जा रोक दी है. उन्हें अपनी सिद्धी या कहें कि सिद्ध देवी पर बहुत भरोसा था. मगर अब उनसे सम्पर्क नही कर पा रही थीं.
क्योंकि मैने अदृश्य उर्जाओं को रोकने के लिये ई वी की प्रोटेक्शन आमंत्रित कर ली थी.
ये सब समझने के लिये आपको पिछले 25 मिनट चले अदृशय युद्ध को जानना होगा.
हुआ ये कि दरबार में पहुंचते ही माई ने मेरे बारे में तमाम बातें बतानी शुरू कर दीं. वे सब सच थी.
उन्होंने मेरे बिना पूछे ही सब बताना शुरू किया था.
ये बात सिद्धियों की मर्यादा के विरुद्ध थी.
ऐसी सिद्धियां किये लोगों को किसी की जिंदगी के रहस्य बिना उनकी मर्जी के उजागर नही करने चाहिये. अन्यथा भगवान शिव ने इन सिद्धियों को निष्क्रियता का विधान बनाया है.
इसीलिये लिये मैने मन ही मन तय किया कि माई को मेरे बारे में जानकारी दे रही ऊर्जा शक्ति को निष्क्रिय कर दूं.

गुरुवर ने ऐसी सिद्धियों को निष्क्रिय करने के लिये कांसियस माइंड के सघन प्रयोग की विधि की जानकारी दी है. जिसके मुताबिक ऐसी बातें बताने वाले व्यक्ति की सभी बातों को दृढ़ता से झुठला दिया जाये.
तो जानकारी देने वाली उर्जा शक्ति कन्फ्यूज हो जाती है. कन्फ्युज शक्तियां असंतुलित होकर कुछ ही देर में निष्क्रियता का शिकार हो जाती हैं.
मैने वही किया.
इसके साथ ही मैने गुरुदेव द्वारा बताई विपरीत शक्ति तकनीक का उपयोग करके कमरे में ई वी उर्जा का सुरक्षा जाल आमंत्रित कर लिया.
माई की सिद्ध उर्जा शक्ति उस जाल के रहते माई के सम्पर्क में नही आ पा रही थी. माई ने पिछले 25 मिनट में इसकी बहुत कोशिश की.
उसी क्रम में वे निर्वस्त्र साधना के मूल स्वरूप को भी अपना बैठीं.
ये भी साधना की मर्यादा के विरुद्ध था. जब तक साथ बैठा व्यक्ति निर्वस्त्र साधना में शामिल होने की सहमति न दे तब तक ऐसी साधना मर्यादा के खिलाफ है. उन्होंने मुझसे सहमति मांगना जरुरी नही समझा।
शायद माई ने दोनो गलतियां अपनी सिद्धी के अंहकार में कर डाली थी.
दरअसल कुछ लोग अपने गुरु पर या अपनी सिद्धि पर भगवान से ज्यादा भरोसा करने लगते हैं. उन्हें लगता है कि वे कुछ भी कर डालेंगें, उनके गुरु उसे सम्भांल लेंगे.
ये गलत है. इससे गुरु की सिद्धियां भीं अधोगति में जा सकती हैं.
इसलिये हर साधक को सिद्धियों की मर्यादा का पालन करना ही चाहिये.
अब माई को इसका अहसास हो गया था.
मैने उनके आग्रह पर कमरे से सुरक्षा जाल हटा लिया.
वे पुनः अपनी सिद्धी के सम्पर्क में आ गईं.
उन्होंने वादा किया कि भविष्य में वे किसी को बेवजह प्रभावित करने के लिये अपनी सिद्धी का उपयोग नही करेंगी.

गुरुदेव ने मुझे बताया था कि लोगों के बारे में ज्ञात अज्ञात जानने के लिये साधक आमतौर से 3 तरह की सिद्धियां करते हैं. कर्ण पिशाचिनी, यक्षिणी, प्रेत सिद्धी. चौथी सिद्धी बहुत कठिन होने के कारण करोड़ों में कोई एक ही कर पाता है. वह है कर्णघंटा.
इनमें फर्क ये है कि पहली तीनों सिद्धयां लोगों के जीवन में बीती बातों को बता तो सकती हैं. वे भविष्य की जानकारी नही दे सकतीं. वे न तो किसी का कुछ बिगाड़ सकती हैं और न ही बना सकती हैं.
फिर भी जिस तरह से लोग माई से डरते थे, उस स्थिति में लोग भय के मारे अपनी उर्जाओं को खराब कर लेते हैं. और सोचते हैं सिद्ध व्यक्ति ने अपनी शक्ति का प्रयोग करके उनका नुकसान कर दिया.
इसी तरह के भय में कुछ लोगों के प्राण भी चले जाते हैं.
माई के पास यक्षिणी सिद्धी थी.
ध्यान रखें ये सिद्धि भी मामूली नही होती, उच्च साधक ही इसे पा पाते हैं।

इसके विपरीत कर्णघंटा सिद्धी प्राप्त साधक लोगों के बीते समय के अलावा आने वाले समय को भी जान लेता है. वह उसे बदलने में भी सक्षम होता है.
प्रायः इस सिद्धी को अघोरी साधू कर पाते हैं.
मगर हमें ध्यान रखना होगा कि ऐसी सिद्धी प्राप्त साधु बस्तियों में नही घुसते. शहरों के भीतर नही जाते. इसलिये शहरों में जो लोग अघोरी बनकर भूत भविष्य बताने का दावा करते हैं उनमें अधिकांश पाखंड कर रहे होते हैं. उनके झांसे में न आयें.
सिद्ध अघोरी कभी किसी से कुछ नही मांगता. न अपनी जरूरत पूरी करने के लिये और न ही किसी की परीक्षा लेने के लिये.
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.

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