घर में मंदिर: क्या करें क्या न करें
सभी अपनों को राम राम
विषय बहुत ही संवेदनशील है, क्योंकि भ्रांतियां मन मस्तिष्क पर इस कदर छाई हैं कि लोग पूरी बात जानने से पहले ही उत्तेजित हो जाते हैं।
मंदिर का मतलब होता है देवस्थान।
देवस्थान यानि कि वो जगह जिसकी उर्जायें सीधे देव शक्तियों से जुडी हों।
किसी भी स्थान और वस्तुओं को ब्रह्माण्ड की देव शक्तियों से जोड़ने का निर्धारित वैदिक विज्ञान है। जिसे शास्त्रों में विधि पूर्वक बताया गया है।
उसी के तहत मंदिर स्थापना के लिये स्थान का चयन किया जाता है।
1.वो स्थान विवादित या अवैध कब्जे वाले नही होना चाहिये, दान की गयी भूमि को उत्तम माना गया है।
2. मूर्ति स्थापना से पहले वहां की वास्तु ऊर्जाओं का जागरण कर लेना अनिवार्य होता है।
3. मूर्तियों का चयन भी वैदिक विज्ञान के आधार पर किया जाता है।
फिर मूर्तियों को विभिन्न प्रक्रियाओं से कई दिनों तक शोधित किया जाता है।
4. उसके बाद लंबे सामूहिक अनुष्ठान करके उनकी प्राणप्रतिष्ठा की जाती है। तब वे ब्रह्माण्ड में देवशक्तियों के साथ जुड़कर वहां से कल्याणकारी उर्जायें प्राप्त कर पाने में सक्षम हो पाती हैं।
5. इसके लिये उत्कृष्ट शास्त्रीय विधि को अपनाया जाता है। जो कि विज्ञान से भी ऊपर का विज्ञान है।
क्या घरों में देवस्थान स्थापना के लिये ये सब सम्भव है।
इस विधान के बिना कहीं भी बना मंदिर देवस्थान नही बल्कि उसका दिखावा मात्र होता है।
दिखावा सदैव अहितकर ही होता है।
प्रतीकात्मक मंदिर देव शक्तियां दे पाने में सक्षम नही होते। बल्कि कालांतर में अविश्वास का कारण बनते हैं।
इसे ऐसे समझें कि किसी फिल्म में प्रधानमंत्री का रोल करने वाला व्यक्ति सच में प्रधानमंत्री जैसे काम नही कर सकता। कोई व्यक्ति भ्रांतिवश
अपने काम कराने के लिये उसके चक्कर लगाता घूमे तो ये उसकी नासमझी ही होगी।
इसी तरह तीर्थो की सड़किया दुकानों पर बिकने वाली मूर्तियों की तुलना तीर्थो की शक्तियों से नही की जानी चाहिये। उन्हें घर में रखकर तीर्थ की देव शक्ति मिल जायेगी, ऐसा सोचना नकली प्रधानमंत्री से काम लेने जैसा ही होगा।
हाँ अगर भावनाएं भक्तिपूर्ण है तो कहीं भी देव शक्ति प्राप्त की जा सकती है। मगर भावनाएं किसी वस्तु या प्रतीक की मोहताज नही होतीं।
मंदिर की मर्यादाएं…..
1. मूर्ति स्थापना भूमि पर बने प्लेटफार्म चबूतरे आदि पर ही होनी चाहिये.
… इससे नकारात्मक ऊर्जाओं की ग्राउंडिंग होती है
2. मूर्तियों के ऊपर और नीचे कुछ और बिलकुल नही होना चाहिये।
… ऐसा होने पर मूर्तियों की ऊर्जा शक्ति दूषित होती रहती है।
3. मंदिर में हर दिन कम से कम दो बार वैदिक आरती होनी चाहिये
… इससे मूर्तियों के आस पास की उर्जायें साफ होती हैं और देव शक्तियां मिलावट से बची रहती हैं
4. मंदिर में बिना प्राण प्रतिष्ठा के कोई भी मूर्ति नही होनी चाहिए
…. बिना प्राण प्रतिष्ठा वाली मूर्तियों की ऊर्जा मिलावटी और अनियंत्रित होती है, जो दूसरी ऊर्जाओं को भी प्रभावित करती है
5. जहां मंदिर हो उस परिसर में कलह, गुस्सा और निंदा बिलकुल नही की जानी चाहिये
… इनकी गन्दी उर्जायें निर्मल देव शक्तियों का पलायन कर देती हैं
6. स्थापित मूर्तियां अपने स्थान से कभी न हटाई जाएँ
… हिलने या स्थान बदलने से मूर्तियों की उर्जायें बिखर जाती हैं, ऐसे में वे मिलावटी हो जाती हैं।
मिलावटी ऊर्जा अक्सर नुकसान का कारण बनती है
7. मंदिर में हर दिन कम से कम 10 मिनट शंख और घण्टा घड़ियाल बजने चाहिये
… इससे वहां की नकारात्मक उर्जायें टूट कर निकल जाती हैं
ऐसी ही कई और अनिवार्य मर्यादाएं हैं जिन्हें घर के मंदिर में निभा पाना मुश्किल होता है। जिससे जाने अनजाने वहां हुआ पूजा पाठ अमर्यादित या नकारात्मकता से युक्त हो जाता है, अमर्यादित क्रियाएं सदैव दुखदायी ही होती हैं, भले ही मर्यादा नासमझी में ही क्यों न टूटी हो।
यहां हमने इस बात पर चर्चा की है कि मंदिर अर्थात देव स्थान कैसा होना चाहिये। इस पर चर्चा नही की कि किस मंदिर में क्या हो रहा है.
इस श्रृंखला का उद्देश्य अध्यात्म के मूल विज्ञान को सामने लाना है। ताकि भ्रांतियां टूटें, रूढ़ियों की जकड़न हटे और श्रद्धालु अपनी पूजा पाठ का फल भी प्राप्त कर सकें।
यहां हम कोई सुझाव या राय नही दे रहे, विज्ञान बता रहे हैं.
आपके जीवन से जुड़ा हर फैसला आपका व्यक्तिगत होना चाहिये।
आपका जीवन सुखी हो यही हमारी कामना है।
हर हर महादेव।