घर में मंदिरः आलसी या अहंकारी भक्ति का प्रमाण
सभी अपनों को राम राम
कुछ समय पहले एक दम्पति मुझसे मिलने आये. वे अपने साथ एक लिस्ट लाये थे. जिसमें 28 चीजों के नाम लिखे थे. वे चीजें थीं देवी देवताओं के फोटो या मूर्तियां. कुल मिलाकर 28. मुझसे कहा कि इनकी एनर्जी चेक करके बताइये कि इनमें कौन कौन परिवार की एनर्जी से मैच करते हैं. सबके फोटो भी लाये थे. जिनसे मैने एनर्जी रीड की. पाया कि उनमें से किसी भी चीज की एनर्जी उनसे मैच नही कर रही थी.
एेसे में की जानी वाली पूजा विपरीत प्रभाव देती है.
मेरी बात पर सहमति जताते हुए उन्होंने बताया कि जितनी ज्यादा पूजा पाठ करते हैं, समस्यायें उतनी ही बढ़ती चली जा रही हैं.
मैने उनसे पूछा कि इतने फोटो/मूर्तियों घर में क्यों रखी हैं.
उन्होंने बताया कि कुछ तो तीर्थों से लायी गईं, कुछ ज्योतिष-वास्तु के विद्वानों के कहने पर रखीं. एक पुरानी है, जो दादा जी के जमाने से स्थापित है.
उनका कहना था कि तीर्थों से मूर्तियां लाकर घर में रखने से एेसा सोच रहा था कि शायद वो तीर्थ की शक्तियां घर में ही स्थापित हो जायेंगी.
मैने पूछा तीर्थों से लायी मूर्तियां रखने के बाद कर्ज बढ़ा क्या.
कलकुलेशन करके उन्होंने बताया कि 6 साल में 3 करोड़ का कर्ज हो गया.
मैने पूछा ज्योतिषियों, वास्तु विदों के सुझाव पर मूर्तियां रखने से कलह बढ़ी क्या.
उन्होंने बताया कि उसी के बाद बहू बेटे अलग अलग रह रहे हैं. अब तो तलाक ही आखिरी रास्ता बचा है. घर का हर सदस्य अपनी अपनी चला रहा है. घर में सभी परायों की तरह रहते हैं.
मैने पूछा इस सबके लिये आप किसको जिम्मेदार मानते हो.
हम तो किसी का बुरा करना तो दूर बूरा सोचते भी नहीं. जितना बन पड़ता है सबकी मदद ही करते हैं. पति, पत्नी का एक ही मत था भगवान ही हमारी नही सुन रहे. वही दुख दे रहे हैं. हम तो हर समय उनकी सेवा ही करते हैं. शायद भगवान से अच्छे लोगों का सुख देखा नही जाता.
आप लोगों ने घर में ये दुकाननुमा मंदिर क्यों बनाया है. बाहर के मंदिर में क्यों नही जाते. मैने पूछा.
इस पर पति पत्नी के दो मत सामने आये.
पति ने बताया रात देर से आता हूं, सुबह 8 बजे उठता हूं. 10 बजे फैक्ट्री के लिये निकलना होता है. मंदिर जाने का टाइम ही नही मिलता. इसलिये घर पर ही मंदिर बनाया है.
पत्नी का कहना था वे पहले नियमित एक मंदिर में जाती थीं. मगर वहां का पुजारी भेदभाव करने वाला निकला. वो उनकी पड़ोसन को ज्यादा इंम्पार्टेंश देता था. मंदिर की कमेटी से भी हमने इसकी शियाकत की. मगर पुजारी नही बदला. प्रसाद देते समय भी मेरे साथ एेसे पेश आता था जैसे अहसान कर रहा हो. इसलिये हमने मंदिर जाना बंद कर दिया. घर में ही मंदिर बढ़ा लिया.
बढ़ा लिया का क्या मतलब है. मैने पूछा.
मतलब ये कि उस मंदिर में जिन जिन देवी देवताों की मूर्तियां हैं, उन सबको हमने भी अपने घर के मंदिर में स्थापित कर लिया. उनकी सेवा के लिये एक पंडित जी रोज घर पर आते हैं और पूजा पाठ कर जाते हैं.
कहने की जरूरत नही कि उन दोनो ने आलस्य और अहंकार की वजह से मंदिर जाना छोड़ा. कमोवेश एेसा ही हाल 98 से अधिक भक्तों का है. वे मंदिरों में जाने से बचने के लिये घर में मंदिर बना या बढ़ा लेते हैं.
ये गलत है. मैने उस दम्पति को बताया और घर से मंदिर हटाकर विसर्जित करने की सलाह दी. उनसे कहा कि दादा जी के जमाने से रखी मूर्ति वहीं रख दो जहां पहले रखी थी. पहले वो मूर्ति घर के लाकर में थी.
ये काफी कठिन फैसला था उनके लिये. 5 माह लगे उन्हें घर का मंदिर विसर्जित करने में.
विसर्जित करते ही मेरे पास आये और बोले कुछ भला बुरा हो तो आप ही सम्भालना. लेकिन क्या अब घर में पूजा पाठ बिल्कुल न करें.
मैने उन्हें घर में बिना मंदिर के पूजा करने की मानस पूजा का विधान बताया.
कुछ महीने बाद वापस फिर आये. उनके साथ बहु बेटा भी था. बोले आपने सही कराया. भगवान की गलती नही थी. हम ही गलत कर रहे थे. भगवान तो सबकी सुनते हैं. हमारी भी.
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आगेे मै आपको मानस पूजा का विज्ञान और विधान बताउंगा.
तब तक की राम राम
हर हर महादेव.