पढ़े लिखे लोगों पर परम्परायें लादने का नतीजा
सभी अपनों को राम राम
ग्रुप के साथी का कमेंट…..
Rishi Raj- एक तरफ तमाम जयंती पर अवकाश, और जुलूष निकाले जा रहे हैं जबकि हिन्दू पर्वों और उनसे जुडी मान्यताओं का उपहास उड़ाना विचलित करने वाला है
रिषीराज की वेदना ध्यान देने लायक है.
ध्यान वे लोग दें जो खुद को धर्म-अध्यात्म के जानकार मानते हैं. ध्यान वे लोग दें जो पढ़े लिखें लोगों को रूढ़ियों-परम्पराओं की जकड़न में उलझा छोड़ देते हैं. ध्यान वे लोग दें जो खुद को धर्म के आंदोलनकारी बताते हैं.
आपत्ति जुलूस और जयंती पर नही है. ये खुशी प्रकट करने के तरीके हैं. और खुशी मनाने का कोई भी अवसर छूटना नही चाहिये
इसी उद्देश्य से हमारे तिथि-त्योहारों को बनाया गया.
मगर हमारे तिथि त्योहार महज किसी की याद में या शक्ति प्रदर्शन के लिये नही बनाये गये.
उनके पीछे गहरा विज्ञान है.
सभी तिथि-त्योहार अध्यात्म विज्ञान की वो सरल तकनीक हैं, जो जीवन में उत्साह और सुख स्थापित करते हैं.
उदाहरण के लिये पूर्णमासी को ले लें. इस तिथि में धरती पर चंद्रमा की सर्वाधिक प्रभावशाली उर्जायें पहुंचती हैं. जो समुद्रों को उत्तेजित करके उनमें ज्वार भाटा पैदा कर देती हैं.
इसी तरह ये उर्जायें जल तत्व से भरे स्वाधिष्ठान चक्र को भी उत्तेजित करती हैं. जल तत्व की उत्तेजित उर्जायें नियंत्रित करके उपयोग में लायी जायें तो कामनायें पूरी करने में सक्षम होती हैं.
उर्जाओं द्वारा कामनायें कैसे पूरी की जाती हैं, इस विज्ञान पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे. आज उनके उपयोग की बात कर लेते हैं.
चंद्रमा द्वारा आंदोलित स्वाधिष्ठान चक्र की उर्जाओं को नियंत्रित करके उन्हें सकारात्मक गाइड लाइन देने के लिये ही पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण भगवान की कथा सहित कई तरह के विशेष पूजा पाठ, व्रत आदि के विधान हैं.
ये दो तरह से हमें लाभ पहुंचाते हैं.
- पूजा पाठ की भावना के कारण उस दिन लोग अपनी काम भावनाओं पर नियंत्रण रखते हैं. जिससे स्वाधिष्ठान चक्र की उर्जायें विशुद्धि चक्र के जरिये सौभाग्य चक्र में पहुंचकर कामनायें पूरी करती हैं.
- पूजा पाठ की क्रियाओं के दौरान मन में भक्ति और देव आशीर्वाद से कामना पूूर्ति के विचार लगातार चलते हैं, जिन्हें अवचेतन मन स्वीकार करके साकार कर देता है.
इसी तरह अमावस्या की तिथि का उदाहरण देखें.
उस दिन नकारात्मक उर्जाओं का शोधन प्राकृतिक रूप से होता है. खासतौर से मूलाधार चक्र, कटि चक्र और प्रारब्ध चक्र पर जमा स्मोकी उर्जायें ब्रह्मांड की तरफ खीच रही होती हैं. जिससे इन चक्रों की सफाई होती है.
एेसे में यदि एकाग्रता बढ़ाई जाये तो चक्रों की बीमार उर्जाओं को सरलता से ब्रह्मांड अग्नि के हवाले किया जा सकता है.
एकाग्रता बढ़ाने के लिये ही अमावस्या पर ध्यान-साधनाओं का विधान है.
अमवस्या के दिन नकारात्मकता लोगों के सूक्ष्म शरीर से निकलकर बाहर जा रही होती है. जिसमें कुछ नकारात्मक शक्तियां भी होती हैं. उनसे बचने के लिये अपनी उर्जाओं को सशक्त बनाने हेतु पूजा-अनुष्ठान आदि का सहारा लिया जाता है.
इसके साथ ही चक्रों में जमी उर्जाओं को निकालने के लिये विभिन्न वस्तुओं का उपयोग किया जाता है. वे वस्तुवें चक्रमें में फंसी समधर्मी नकारात्मक उर्ओं को अपने साथ लेकर निकल जाती हैं. इसी कारण अमवस्या के दिन भोजन, वस्त्र व अन्य वस्तुओं का दान करने का विधान बनाया गया. उससे उर्जाओं की तीब्र सफाई होती है.
होली पर तन-मन की उर्जायें साफ होती हैं. दीपावली पर स्थान व वास्तु की उर्जायें साफ होकर धन-धान्य बढ़ाती हैं.
इसी तरह अन्य सभी तिथि-त्योहार की मान्यतायें भी वैज्ञानिक हैं. वे सुखी जीवन के लिये आभामंडल व उर्जा चक्रों की सफाई व उर्जीकरण के निमित्त बनीं.
जिनसे हम दैवीय शक्तियों का भरपूर लाभ उठाने में सक्षम होते हैं.
जब इन मान्यताओं का वैज्ञानिक कारण नही बताया जाता. उन्हें भगवान को खुश करने का नाम दिया जाता है. या भगवान की लीला बता दिया जाता है तो पढ़े लिखे लोगों के मन में आशंका उत्पन्न होती है. वे इन्हें रूढ़ियों के रूप में देखने लगते हैं. खुद पर बोझ की तरह परम्परायें लादी जाती महसूश करते हैं.
फलस्वरूप बड़ी संख्या में एेसे लोग इस सरल और महान विज्ञान का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं.
यही नही वे भगवान का परिहास करने से नही चूकते. धर्म को तो मजाक का ही विषय मान लेते हैं.
वो अलग बात है कि कोई माने या न माने. इससे भगवान पर कोई असर नही पड़ने वाला.
मगर ये बात भगवान को जरूर बुरी लगती है कि सिर्फ भ्रांतियों के कारण तमाम लोग उनकी शक्तियों का लाभ नही उठा पा रहे.
इसके लिये वे लोग देवकोप से नही बच सकते जो खुद को भगवान का करीबी मानते हैं. धर्म का विद्वान मानते हैं. गुरु कहलाने में फक्र महसूश करते हैं. फिर भी समय काल के मुताबिक ईश कर्म की व्याख्या नही बदल रहे.
हर हर महादेव.