शिवलिंग पर दूधः रुद्राभिषेक से क्राइम कंट्रोल भी किया जा सकता है
सभी अपनों को राम राम
धर्म के विद्वान कहते हैं कि शिवलिंग पर दूध या जल चढ़ाने से भगवान शिव खुश हो जाते हैं. वे इसके प्रमाण के तौर पर शास्त्रों में लिखे श्लोकों को पढ़कर सुनाते हैं. जो भक्तिधारा से जुड़े हैं वे इसे तुरंत मान लेते हैं.
मगर धर्म का मजाक उड़ा रहे तर्कशास्त्री इसे नही मानते. वे इस बात से चिंतित नजर आते हैं कि हर दिन शिवलिंग पर हजारों लीटर दूध चढ़ाकर बर्बाद कर दिया जाता है. उसे गरीबों को दे दिया जाये तो उनका पोषण हो जाएगा. उनका तर्क है कि जिसके नाम पर लाखों लीटर दूध नीलियों में बहा दिया जाये वो कैसा भगवान.
कल हमने शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के वैज्ञानिक पक्ष पर चर्चा की.
जिसके मुताबिक शिवलिंग पर दूध चढ़ाना भगवान की डिमांड नही है. बल्कि लोग इससे अपने शरीर के पंच तत्वों को उपचारित करते हैं.
जो लोग शिवलिंग पर दूध चढ़ाने जाते हैं उनसे बात करें तो 90 प्रतिशत से अधिक वे लोग हैं जिन्हें एेसा करने के लिये किसी ज्योतिषी, तांत्रिक, गुरु, पुजारी, वास्तुविद ने कहा होता है. ताकि उन पर आई समस्यायें दूर हो जायें.
उर्जा विज्ञान के मुताबिक इथरिक बाड़ी अर्थात सूक्ष्म शरीर अर्थात् आभामंडल से नकारात्मकता हटा दी जाये तो समस्यायें खुद ही खत्म होने लगती हैं. क्योंकि सभी समस्याओं का कारण नकारात्मक उर्जायें ही होती हैं.
शिवलिंग पर अभिषेक से नकारात्मक उर्जायें कैसे हटती हैं. इस पर हमने कल बात की. कोई भी इसे कभी भी वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित कर सकता है.
मगर कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति दर्शाते हुए कहा है कि मै धर्म की बातों का अपभ्रंश कर रहा हूं. शिवलिंग की सेवा से भगवान शिव खुश होकर आशीर्वाद देते हैं, जिससे दुख दूर होते हैं. बस इसके अलावा दूसरी कोई सच्चाई नही है.
मै उनके भक्ति भाव को प्रणाम करता हूं.
मगर इससे धर्म का मजाक उड़ाने वाले संतुष्ट नही होते. वे कहेंगे साबित करो कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से भगवान शिव खुश हुए.
वैज्ञानिक तौर पर इसे साबित नही किया जा सकता.
लेकिन ये हर बार साबित किया जा सकता है कि इससे तन-मन से नकारात्मकता हटती है.
धर्म के जानकार शास्त्रों के हवाले से कहते हैं कि शिवाभिषेक से पाप कटते हैं.
हम भी इसी बात को ही कह रहे हैं.
कालांतर में नकारात्मकता को पाप और उसके नतीजों को दुख कहा जाता था.
वास्तव में शिवलिंग पर दूध या जल नकारात्मकता हटाने के लिये ही चढ़ाया जाता है.
इसी रूप में इसकी व्याख्या की जाये तो कोई वजह नही कि तर्क करने वाले बात को न समझें.
ये कहना बिल्कुल उचित नही है कि भगवान शिव को खुश करने के लिये दूध चढ़ाया जाता है.
यही बात है जो भ्रम को बढ़ावा देती है.
जान लीजिये कि भगवान शिव की सेवा में कामधेनु गाय है. जो लगातार दूध की नदियां बहाने में सक्षम है. क्या कोई उससे अधिक या उससे उत्तम दूध शिवजी को दे सकता है.
जवाब होगा नही.
तो फिर बेजुबान बच्चों से छीनकरर निकाले गये दूध में भगवान अपनी खुशी का इंतजार क्यों करेंगे.
ध्यान दें गाय हो या भैंस सभी में दूध उनके बच्चों के पीने के लिये बनता है. हम उनके हिस्से का दूध छीनकर अपने उपयोग में लाते हैं.
इसी तरह शिवजी के सिर पर गंगाजी विराजमान हैं. क्या कोई उनसे अधिक जल या उनसे पवित्र जल शिव जी पर चढ़ा सकता है.
जवाब होगा नही.
तो फिर वे हमारे एक लोटा जल में अपनी खुशी क्यों ढ़ूंढेंगे.
यहां ये कह देना भी उचित नही हैं कि भगवान सिर्फ भाव के भूंखें हैं. अगर भाव के भूखें हैं तो दूध क्यों चढ़ाया जाये. सिर्फ भाव ही अर्पित कर दिये जायें.
स्पष्ट है कि शिव जी की खुशी नाखुशी का शिवलिंग पर चढ़ने वाले दूध-पानी से कोई ताल्लुक नही.
भक्ति भाव से प्रभावित लोग अपने दुख यानि समस्यायें दूर करने के लिये शिवलिंग पर दूध चढ़ाते हैं. कहीं नही कहा जाता कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से सद्गति प्राप्त होगी. सभी सलाह देते हैं कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से कष्ट कटेंगे.
अर्थात यह दुख दूर करने या कष्ट काटने का उपचार है न कि शिव जी को खुश करने का तरीका.
शिव बाबा हैं. बाबा मतलब बुजुर्ग. वे सारे संसार के बाबा हैं. हम सब उनकी संतानें हैं. इस नाते जब हम सफल और खुश होते हैं तो वे भी खुश हो जाते हैं. क्योंकि अपनी संतानों को खुश देखकर कोई भी खुश होता है. शिवलिंग पर चढ़ाई जाने वाली वस्तुवें हमारे भीतर की नकारात्मकता लेकर शिवलिंग पर चली जाती हैं. शिवलिंग उन्हें पाताल अग्नि में भेजकर नष्ट कर देते हैं. जिससे सेहत और सफलता के रास्ते खुलते हैं. मन खुश होता है. शिव बाबा के खुश होने का इससे बड़ा कारण कुछ हो ही नही सकता.
कोई भी बुजुर्ग अपने परिवार के सदस्यों को खुश देखकर प्रशन्न हो ही जाता है.
धर्म के जानकारों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि वे शास्त्रों का मर्म सामने लायें न कि मात्र कहानियां. कहानियां तो अध्यात्म के मर्म को समझाने के लिये उदाहरण स्वरूप लिखी गईं.
जिन्हें मेरी बातों पर संसय है मै उनके साथ वैज्ञानिक शास्त्रार्थ करने को तैयार हूं.
वे अपनी बात सिद्ध करें. मै अपनी बात प्रमाणित कर दूंगा.
इस तरह के विवाद सामूहिक उपचार की महान विद्या रुद्राभिषेक की स्वीकारोक्ति प्रभाविथ कर रहे हैं.
भगवान विष्णु भी अपनी बिगड़ी बनाने के लिये शिवार्चन का सहारा लेते हैं. जिन्हें खुद ही दुख हर्ता कहा जाता है.
रुद्राभिषेक से कई किलोमीटर तक की उर्जाओं को ठीक किया जा सकता है.
कोई प्रयोग करना चाहे तो कभी भी कर ले.
एक एेसा थाना क्षेत्र लीजिये जिसमें अपराध का ग्राफ काफी ज्यादा हो. वहां विधान के मुताबिक कुछ समय तक भाव परिवर्तन रूद्राभिषेक करायें जायें. थाने का रिकार्ड बताएगा कि क्षेत्र में अपराध का ग्राफ उल्लेखनीय रूप से नीचे आ रहा है.
मैने इस प्रयोग को हमेशा सटीक पाया है.
कुछ लोग तुरंत कहेंगे कि कई मंदिर में तो अनवरत रुद्राभिषेक होते हैं, फिर उन क्षेत्रों में अपराध कम क्यों नही होता.
जवाब है कि वहां भाव परिर्तन का संकल्प नही लिया जाता. वे रुद्राभिषेक व्यक्तिगत संकल्पों के साथ किये जाते हैं.
जिनके मन में इस बात पर सवाल उठ रहे हैं उनसे आग्रह है कि बहस छोड़कर कर्मयोगी बनें. इसे करके देखें. इससे पहले कुछ न कहें.
रुद्राभिषेक में कई वस्तुओं का उपयोग किया जाता है. सब अलग अलग नकारात्मकता को हटाती हैं.
उनमें कुछ चीजों को लेकर लोग सोचते हैं कि शिव जी को नशा पसंद है. एेसा बिल्कुल नही है. वे वस्तुवें उपचार के उपकरण जैसा काम करती हैं.
जैसे भांग की उर्जा शरीर के सेल्स की प्राकृतिक सफाई करती है. जिससे कैंसर का खतरा समाप्त होता है. कई देशों में भांग से कैंसर का इलाज शुरू हो चुका है.
गांजा की उर्जायें स्वांस नली और फेंफड़ों की उर्जाएं साफ करने में सक्षम है. दमें का दौरा कई बार जानलेवा होता है. जिसको दौरा पड़ा है उसके मुंह या नाक के द्वारा उसकी सांस नलियों में गांजा का धुवां भर देने से राहत मिल जाती है.
यहां हम इन वस्तुओं की उर्जाओं की प्राकृतिक क्षमता के बारे में बात कर रहे हैं. उनके सेवन की नही. यदि कोई इनका औषधीय उपयोग करना चाहे तो सक्षम चिकित्सक की सलाह से ही करे.
रुद्राभिषेक में कुश का जल उपयोग किया जाये तो रोग मुक्ति होती है. कुश की उर्जायें रोम रोम नकारात्मकता हटाने में सक्षम होती हैं. इसी कारण धार्मिक कार्यों में इसका बहुत उपयोग होता है.
शहद, गन्ने के रस और चीनी की उर्जायें मूलाधार चक्र को साफ करती हैं. इसलिये इन्हें समृद्धि हेतु रुद्राभिषेक में लिया जाता है.
एेसे ही शिवाभिषेक, शिवार्चन या रुद्राभिषेक में इश्तेमाल की जाने वाली हर वस्तु शोधनकारी होती है.
इनमें से तरल पदार्थों को प्रसाद के रूप में ग्रहण न करें. जो वस्तुवें ठोस हैं वे जलहरी में प्रवाहित न होने के कारण नकारात्मकता ग्रहण नही करतीं. उन्हें प्रसाद के रूप में ले सकते हैं.
आगे हम कौन कौन सा प्रसाद हानिकारक होता है. उसे ग्रहण करने से क्यों समस्यायें बढ़ जाती हैं. इस पर चर्चा करेंगे.
तब तक की राम राम
हर हर महादेव.