देवत्व साधनाः परमार्जन हेतु अपनी देव बूटी तत्काल भेजे

देवत्व साधना वे करे… 
1. जो परमार्थ चाहते हैं
2. जो पुरुषार्थ चाहते हैं
3. जो प्रखर व्यक्तित्व चाहते हैं
4. जो अटल अस्तित्व चाहते हैं
5. जो जीवन के बाद भी पहचान चाहते हैं
6. जो लोक परलोक में मनचाहा स्थान चाहते हैं.


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राम राम, मै अरुण
देवत्व धारण करने का समय पास आ रहा है, देवत्व साधना का समय पास आ चुका है. जो साधक गुरू जी के साथ देवत्व साधना करना चाहते हैं, वे अपनी देव बूटी तत्काल हमें उपलब्ध करा दें. ताकि गुरू जी बूटी को साधक की उर्जा ये जोड़ दें. साधक बूटी के साथ अपना लेटेस्ट फोटो जरूर भेजें. उसी से गुरू जी उनकी एनर्जी का आवाह्न करेंगे.
जो साधक मृत्युंजय योग संस्थान से देव बूटी प्राप्त कर रहे हैं. वे अपना फोटो मुझे तुरंत वाट्सअप करें. साथ ही अंश राशि की डिटेल भी भेजें.
अभी उपलब्धता कम होने के कारण संस्थान से कम लोगों को ही देव बूटी उपलब्ध करा पा रहे हैं.
हम हिमालय क्षेत्र में मौजूद गुरू जी के कुछ अध्यात्मिक मित्रों से सम्पर्क में हैं. यदि उनसे अतिरिक्त देव बूटी मिलेंगी तो ज्यादा साधकों को लाभ मिल सकता है.
देवत्व साधना के इच्छुक साधकों के लिये गुरू जी होली की रात उनकी देव बूटी परमार्जित करेंगे. उसके बाद तत्काल साधकों को देव बूटी वापस पहुंचा दी जाएंगी. होली के सूतक के बाद पहला देव मूहूर्त मिलते ही देवत्व साधना आरम्भ हो जाएगी.
इसलिये जिन साधकों के पास अपनी देव बूटी है और वे उसे गुरू जी के द्वारा परमार्जित कराकर अपनी उर्जा से लिंक कराना चाहते हैं. वे बूटी तत्काल हमारे पास पहुंचा दें. साथ ही अपना फोटो भी. बूटी पहुंचाना और होली के बाद उसे वापस प्राप्त करना उनकी जिम्मेदारी होगी.
जिन लोगों ने संस्थान से देव बूटी प्राप्त करने का आग्रह किया है, वे मेरे वाट्सअप 9999945010 पर अपना लेटेस्ट फोटो भेजकर अपना आग्रह सुनिश्चित करा लें. डिटेल में अपना नाम, माता-पिता-गोत्र का नाम. जिन्हें गोत्र नही ज्ञात है वे दादा का नाम लिखें.

क्या है देव बूटी 
…………………
देवत्व साधना के संदर्भ में प्रमोद लोहिया जी, अर्चना जी, नीतू जी सहित आप में से कई लोगों ने देव बूटी के बारे में जानकारी चाही है.
इस बारे में गुरू जी से जानकारी लेकर हम यहां आपके साथ शेयर कर रहे हैं.
देव बूटी एक पहाड़ी बूटी है. जो बद्रीनाथ और केदारनाथ के मध्य पहाड़़ी खाईयों में मिलती है. अक्सर वहां प्रमण करने वाले साधु संत इसे निकाल लाते हैं. क्योंकि वे इसे पहचानते हैं और इसके साधना महत्व को जानते हैं.
पहाड़ी झाड़ियों से निकालकर इसे 11 घंटों के भीतर सुखा लिया जाता है. नाजुक होने के कारण उसके बाद बूटी सड़ने लगती है.
सुखाने के बाद बूटी को 13 दिन के लिये ब्रह्मकमल के बीच रख दिया जाता है. जिससे ये स्वतः सिद्ध हो जाती है.
ये बड़े आश्चर्य की बात है कि ब्रह्मकमल के सम्पर्क में देव बूटी स्वतः सिद्ध हो जाती है.
ब्रह्मकमल केदारनाथ की घाटी में ऊंची पर्वत श्रंखला में मिलता है. वहां ये पहाड़ी चट्टानों को तोड़कर बाहर आ जाता है.
केदारनाथ धाम के पुजारी दुर्गम रास्तों से होते हुए भोर में इसे लेने जाते हैं.
ये बहुत जहरीला होता है. धूप पड़ने पर इससे जहरीली सुगंध निकलती है. जिससे लोग बेहोश होकर मर सकते हैं.
इस लिये केदारनाथ धाम के पुजारी सुबह तड़के ही ब्रह्मकमल लेने के लिये केदार धाम से भी ऊंची पहाड़ियों पर चढ़कर जाते हैं. वहां अक्सर उन पर पहाड़ी भालू हमला कर देते हैं. क्योंकि ब्रह्मकमल उनका भोजन है.
ब्रह्मकमल को तोड़ने के समय पुजारी मुंह व नाक पर कपड़ा लपेटे रहते हैं. एेसा न करें. तो कमल से निकलने वाली सुगंध से वे बेहोश हो जाते हैं. निर्जन पहाड़ियों में उन्हें बचाने वाला कोई नही होता.
बड़े आश्चर्य की बात है कि केदारनाथ के शिवलिंग पर चढ़ाते ही ब्रह्मकमल का जहर बुझ जाता है. तब वो किसी को नुकसान नही करता. पुजारी इसे भक्तों को प्रसाद स्वरूप देते हैं.
ब्रह्मकमल केदारनाथ भगवान पर चढ़ाया जाने वाला अनिवार्य पुष्प है. मान्यता है कि इसके बिना केदारनाथ की पूजा पूरी नही होता. भक्तों के लिये वहां के पुजारी भारी जोखिम उठाकर इन्हें एकत्र करते हैं.
सूखे ब्रह्मकमल के साथ 13 दिन रखने से देव बूटी खुद सिद्ध हो जाती है.
सिद्ध होने के बाद देव बूटी देवत्व साधना, अदृश्य साधना, वायु साधना, शून्य साधना, वायुगमन साधना सहित कई तरह की विलक्षण साधनाओं में यूज होती है.
गुरू जी ने बताया कि देव बूटी में देव उर्जाओं को धरती की तरफ आकर्षित करके साधक तक पहुंचाने की अचम्भित करने वाली प्राकृतिक क्षमता होती है.
इसे इंशानों और देवताओं के मध्य सम्पर्क स्थापित करने वाला शक्तिशाली यंत्र कहा जाये तो सटीक होगा।
देव बूटी सामान्य बाजार में उपलब्ध नही है. क्योंकि साधनाओं के अतिरिक्त इसका कहीं उपयोग होने की जानकारी नहीं. हो सकता है किसी रूप में इसका कहीं औषधीय उपयोग होता हो, मगर हमें इसकी जानकारी नहीं.
प्रायः पहाड़ों में विचरण करने वाले साधुओं के पास ये मिल जाती है. क्योंकि उच्च साधना के लालच में मिलने पर साधु इसे अपने पास रख ही लेते हैं.
मगर इसके उपयोग की विधि न मालुम होने के कारण ज्यादातर साधु इसका सही उपयोग नही कर पाते. दरअसल साधना में उपयोग के लिये इसे साधक की उर्जा के साथ जोड़ना अनिवार्य होता है. इसे एेसे समझें जैसे सिम को एक्टिवेट न किया जाये तो वो मोबाइल में डालने पर भी काम नही करता. इस उदाहरण में देव बूटी को सिम और साधक को मोबाइल मानें.
जिन साधुओं के पास ये सालों से रखी है वे मांगने पर इसे मुफ्त में ही दे देते हैं. जो इसे बेचने के लिये संग्रहीत करते हैं, वे मुंहमागी कीमत चाहते हैं. क्योंकि उनको इसका महत्व पता होता है.
तांत्रित सामान बेचने वाले कुछ दुकानदार भी इसे रखते हैं. मगर कम मात्रा में क्योंकि खपत कम होने के कारण इसमें उनका पैसा फंसा पड़ा रहता है. खपत कम इसलिये क्योंकि खास लोग ही इसका उपयोग जानते हैं.
सबके जीवन में देवत्व स्थापित हो, गुरु जी की यही कामना हैं.

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