देवत्व साधना के लिये इसका होना जरूरी है
राम राम, मै शिवप्रिया.
देवत्व साधना के संदर्भ में प्रमोद लोहिया जी, अर्चना जी, नीतू जी सहित आप में से कई लोगों ने देव बूटी के बारे में जानकारी चाही है.
इस बारे में गुरू जी से जानकारी लेकर हम यहां आपके साथ शेयर कर रहे हैं.
देव बूटी एक पहाड़ी बूटी है. जो बद्रीनाथ और केदारनाथ के मध्य पहाड़़ी खाईयों में मिलती है. अक्सर वहां प्रमण करने वाले साधु संत इसे निकाल लाते हैं. क्योंकि वे इसे पहचानते हैं और इसके साधना महत्व को जानते हैं.
पहाड़ी झाड़ियों से निकालकर इसे 11 घंटों के भीतर सुखा लिया जाता है. नाजुक होने के कारण उसके बाद बूटी सड़ने लगती है.
सुखाने के बाद बूटी को 13 दिन के लिये ब्रह्मकमल के बीच रख दिया जाता है. जिससे ये स्वतः सिद्ध हो जाती है.
ये बड़े आश्चर्य की बात है कि ब्रह्मकमल के सम्पर्क में देव बूटी स्वतः सिद्ध हो जाती है.
ब्रह्मकमल केदारनाथ की घाटी में ऊंची पर्वत श्रंखला में मिलता है. वहां ये पहाड़ी चट्टानों को तोड़कर बाहर आ जाता है.
केदारनाथ धाम के पुजारी दुर्गम रास्तों से होते हुए भोर में इसे लेने जाते हैं.
ये बहुत जहरीला होता है. धूप पड़ने पर इससे जहरीली सुगंध निकलती है. जिससे लोग बेहोश होकर मर सकते हैं.
इस लिये केदारनाथ धाम के पुजारी सुबह तड़के ही ब्रह्मकमल लेने के लिये केदार धाम से भी ऊंची पहाड़ियों पर चढ़कर जाते हैं. वहां अक्सर उन पर पहाड़ी भालू हमला कर देते हैं. क्योंकि ब्रह्मकमल उनका भोजन है.
ब्रह्मकमल को तोड़ने के समय पुजारी मुंह व नाक पर कपड़ा लपेटे रहते हैं. एेसा न करें. तो कमल से निकलने वाली सुगंध से वे बेहोश हो जाते हैं. निर्जन पहाड़ियों में उन्हें बचाने वाला कोई नही होता.
बड़े आश्चर्य की बात है कि केदारनाथ के शिवलिंग पर चढ़ाते ही ब्रह्मकमल का जहर बुझ जाता है. तब वो किसी को नुकसान नही करता. पुजारी इसे भक्तों को प्रसाद स्वरूप देते हैं.
ब्रह्मकमल केदारनाथ भगवान पर चढ़ाया जाने वाला अनिवार्य पुष्प है. मान्यता है कि इसके बिना केदारनाथ की पूजा पूरी नही होता. भक्तों के लिये वहां के पुजारी भारी जोखिम उठाकर इन्हें एकत्र करते हैं.
सूखे ब्रह्मकमल के साथ 13 दिन रखने से देव बूटी खुद सिद्ध हो जाती है.
सिद्ध होने के बाद देव बूटी देवत्व साधना, अदृश्य साधना, वायु साधना, शून्य साधना, वायुगमन साधना सहित कई तरह की विलक्षण साधनाओं में यूज होती है.
गुरू जी ने बताया कि देव बूटी में देव उर्जाओं को धरती की तरफ आकर्षित करके साधक तक पहुंचाने की अचम्भित करने वाली प्राकृतिक क्षमता होती है.
इसे इंशानों और देवताओं के मध्य सम्पर्क स्थापित करने वाला शक्तिशाली यंत्र कहा जाये तो सटीक होगा।
देव बूटी सामान्य बाजार में उपलब्ध नही है. क्योंकि साधनाओं के अतिरिक्त इसका कहीं उपयोग होने की जानकारी नहीं. हो सकता है किसी रूप में इसका कहीं औषधीय उपयोग होता हो, मगर हमें इसकी जानकारी नहीं.
प्रायः पहाड़ों में विचरण करने वाले साधुओं के पास ये मिल जाती है. क्योंकि उच्च साधना के लालच में मिलने पर साधु इसे अपने पास रख ही लेते हैं.
मगर इसके उपयोग की विधि न मालुम होने के कारण ज्यादातर साधु इसका सही उपयोग नही कर पाते. दरअसल साधना में उपयोग के लिये इसे साधक की उर्जा के साथ जोड़ना अनिवार्य होता है. इसे एेसे समझें जैसे सिम को एक्टिवेट न किया जाये तो वो मोबाइल में डालने पर भी काम नही करता. इस उदाहरण में देव बूटी को सिम और साधक को मोबाइल मानें.
जिन साधुओं के पास ये सालों से रखी है वे मांगने पर इसे मुफ्त में ही दे देते हैं. जो इसे बेचने के लिये संग्रहीत करते हैं, वे मुंहमागी कीमत चाहते हैं. क्योंकि उनको इसका महत्व पता होता है.
तांत्रित सामान बेचने वाले कुछ दुकानदार भी इसे रखते हैं. मगर कम मात्रा में क्योंकि खपत कम होने के कारण इसमें उनका पैसा फंसा पड़ा रहता है. खपत कम इसलिये क्योंकि खास लोग ही इसका उपयोग जानते हैं.
आप में से जिस साधक को जहां कहीं से मिले देवत्व साधना के लिये देव बूटी प्राप्त कर लें. कहीं से न मिले तो कुछ देव बूटी हमारे संस्थान में भी उपलब्ध हो सकती हैं.
पिछले दिनों गुरू जी हिमालय साधना पर गये थे. वहां से ले आये थे.
मगर उनकी संख्या बहुत कम है.
जो लोग संस्थान से देव बूटी का आग्रह करना चाहते हैं वे 9999945010 पर अरुण जी से वाट्सएप द्वारा सम्पर्क कर लें.
हम वादा तो नही करते लेकिन कोशिश करेंगे कि देव बूटी आप तक पहुंचे.
सबके जीवन में देवत्व स्थापित हो, गुरु जी की यही कामना हैं.