हवा में चलने वाले संत की कुटिया
राम राम, मै शिवप्रिया
गुरू जी के निकट शिष्य शिवांशु जी की आध्यात्मिक यात्रा का ये अंश कल्पना से परे है. जब मैने इसे पढ़ा तो आश्चर्यचकित रह गई. शिवांशु जी ने ई बुक और वीडियो सिरीज के लिये कई साधना वृतांत लिखे हैं. जो एडिटिंग और प्रकाशन अनुमति के लिये गुरू जी के पास प्रतीक्षारत हैं. जब कभी समय मिलता है, तब गुरू जी उन्हें पढ़कर एडिट करते हैं. उसी बीच कई बार मुझे ये खजाना पढ़ने को मिल जाता है. तो मै आपके साथ शेयर कर लेती हूं.
अपने एक वृतांत में उन्होंने हवा में उड़ते साधू का आंखो देखा हाल लिखा है. सिद्ध साधू से प्राप्त साधना विधान भी लिखा है. साथ ही गुरू जी से मिले उसके वैज्ञानिक पक्ष को भी विस्तार से लिखा है. मै यहां उच्च साधकों की प्रेरणा के लिये उनके वृतांत को उन्हीं के शब्दों में शेयर कर रही हूं. लेकिन एक बात के लिये सावधान रहें. सरल लगने के बावजूद बिना किसी सक्षम गुरू के मार्गदर्शन के वायुगमन की साधना विधि न अपनायें. ये बहुत बहुत खतरनाक साबित हो सकता है.
मै यहां शिवांशु जी के शब्दों में ही उनका वृतांत शेयर कर रही हूं.
शिवांशु जी का वृतांत…
पौराणिक कथाओं में हवा में उड़कर चलने वाले पात्रों को मैने बहुत बार पढ़ा व सुना था. सभी देवी देवता हवा में उड़कर चलते हैं. सिद्ध संत हवा में उड़कर एक लोक से दूसरे लोक पहुंच जाया करते थे. नारद जी तो उड़कर सारे ब्रह्मांड की खबरें ले लेते हैं.
युद्ध के दौरान रावण की मजबूत सेना देखकर राम जी चिंता में पड़ गये. उनका हौसला बड़ाने के लिये ऋषि अगस्त आकाश मार्ग से आये. उन्हें शत्रु विनाशक आदित्य हृदय स्तोत्र की उर्जाओं का ज्ञान दिया. फिर आकाश मार्ग से ही वापस लौट गये.
एेसी अनेकों चर्चायें हमारे ग्रंथों में मौजूद हैं.
मैने खुद पढ़ा और सुना था. इसे सच भी मानता था. मगर अपनी आंखों से देखते वक्त इस पर विश्वास नही हो रहा था.
आज के युग में भी एेसा हो सकता है. शायद इस बात का विश्वास नही था.
वायुगमन कर रहे संत मेरी आंखों से ओझल हो चुके थे. गिरधर जी के साथ चलते हुए मै कुछ ही देर में उनके आश्रम पहुंच गया.
आश्रम तो क्या बस वहां कुछ टूटी फूटी सी झोपड़ियां बनी थीं. शहरी सुविधाओं के नाम पर वहां सिर्फ प्लास्टिक की पन्नियां भर दिखीं. जिन्हें झोपड़ियों के ऊपर तानकर बांधा गया था. ताकि बरसात सा पानी भीतर न पहुंचे. आस पास पेड़ों की घनी छांव थी. सो धूप से स्वाभाविक बचत हो रही थी.
वहां सिर्फ तीन लोग थे. गिरधर जी उनके गुरू जी और एक अन्य साधु. जिनका नाम मकरंद था. वे हनुमान जी के साधक थे.
वे लोग अपने गुरू जी को प्रभुजी कहकर पुकार रहे थे.
गिरधर जी मुझे अपने साथ लेकर एक झोपड़ी में गये. वहां प्रभु जी योगासन में विराजमान थे. उनके सामने धूनी जल रही थी.
यही वे थे जिन्हें मैने हवा में चलते देखा था.
सामने आने पर यकीन ही नही कर पा रहा था कि कुछ देर पहले इन्हें हवा में उड़ते देखा.
मै उनके सामने बहुत असहज महसूस कर रहा था. अकारण नर्वस हुआ जा रहा था. सच कहूं तो मेरा दिमाग चकराया हुआ था. क्या सच है क्या भ्रम ये डिसाइड नही कर पा रहा था.
झोपड़ी में अधिक सामन नही था. धूनी के पास एक छोटा सा त्रिशूल सीधा खड़ा था. प्रभु जी जहां बैठे थे वहां घास फूस का आसान बना था. जो सामान्य से ज्यादा लम्बा था. उससे मैने अनुमान लगाया कि शायद वे उसी पर सोते होंगे. कमंडल जैसे एक लोटे में पानी रखा था.
बस इतना ही सामान था झोपड़ी में.
एेसी थी वायुगमन करने वाले संत की कुटिया.
वे मुझे देखकर मुस्कराये.
गिरधर से बाहर जाने का इशारा किया. वे झोपड़ी से बाहर चले गये.
प्रभु जी ने मुझे बैठने को कहा. मै दंडवत करके वहीं जमीन पर बैठ गया. झोपड़ी में कोई और आसन न था.
प्रभु जी की उम्र का अनुमान नही लगा पा रहा था. मगर वे बूढ़े बिल्कुल न थे. उनका शरीर योगियों वाला था. कपड़ों के नाम पर सिर्फ लंगोटी भर थी. मौसम में फैली सर्द बयार जैसे उनके लिये बेअसर थीं.
एक लकड़ी से धूनी की आग को कुदेरते हुए मुझसे कहा आगे आग के नजदीक आ जाओ. सर्दी नही लगेगी.
उनकी भाषा में बंगाली पुट था.
मै आगे खिसककर धूनी के नजदीक पहुंच गया. उनके समक्ष मै अभी तक सामान्य नही हो पाया था.
इस बात को वे भांप गये. जोर से ठहाका लगाकर हंसे. बोले शरमा रहे हो या डर रहे हो.
मै कुछ बोल न सका. बस हाथ जोड़ लिये.
अच्छा बताओ उर्जा नायक कैसे हैं. उन्होंने मुझे सामान्य करने के लिये अपनी तरफ से बात करनी शुरू कर दी. वे उर्जा नायक यानि मेरे गुरूदेव के बारे में पूछ रहे थे.
मैने कहा बहुत अच्छे हैं. मगर आपके बारे में उन्होंने मुझे कभी कुछ नही बताया.
मेरी बात सुनकर प्रभु जी फिर ठहाका लगाकर हंस पड़े.
उनकी हंसी करोड़ों में एक थी. हंसी में हीलिंग पावर छुपी थी. उनके ठहाके के साथ एेसा महसूस होता जैसे मेरे रोम रोम को उर्जित कर दिया गया हो.
उर्जा नायक को रहस्य झुपाये रखने की पुरानी आदत है. प्रभु जी गुरुवर के बारे में कह रहे थे. मगर मै तो उनकी रहस्य उजागर करने की क्षमता का कायल हूं. एेसा कहकर वे फिर हंस पड़े.
जब कोई सिद्ध गुरुवर के बारे में बात करता है, तो सुनकर मुझे बड़ा अच्छा लगता है. अभी भी अच्छा लग रहा था. वैसे तो प्रभु जी बातें कम ही करते थे. मगर मुझे सामान्य करने के लिये उन्होंने अपने व गुरुदेव की अध्यात्मिक मित्रता के बारे में बताया. कई घटनायें सुनाईं. ये भी बताया कि उनकी वायुगमन साधना में गुरुवर ने किस तरह से औरिक सहयोग किया था.
धीरे धीरे मै सामान्य होता गया. प्रभु जी के समक्ष मेरी झिझक खत्म हो गई. मैने उनसे कई सवाल पूछे.
मैने प्रभु जी से ये भी पूछा कि गुरुवर तो वायुगमन नही करते. एेसे में उन्होंने इस सिद्धी में आपको कैसे सहयोग किया.
सेटेलाइट बनाने वाला वैज्ञानिक चांद पर नही जाता, फिर भी वह दूसरे वैज्ञानिकों को वहां पहुंचा देता है. प्रभु जी ने विशुद्ध वैज्ञानिक जवाब दिया. उन्होंने बताया कि साधना के दौरान वे अपने शरीर के तत्वों को नियंत्रित नही कर पा रहे थे. तब उर्जा नायक ने उर्जा चक्रों के जरिये पंच तत्वों को नियंत्रित करना बताया. उनकी बताई विधि से ही आगे बढ़ सके.
इतनी चमत्कारी सिद्धी अर्जित करने के बाद भी प्रभु जी अहंकार से परे थे. बड़ी सरलता से सिद्धी का श्रेय गुरुवर को भी दे रहे थे. मेरे मन में उनके लिये श्रद्धा चरम सीमा तक पहुंच गई.
उनके जवाबों से नतीजा निकाला कि वायुगमन विशुद्ध रूप से विज्ञान है.
हमारा शरीर पंचतत्वों से बना है.
वे तत्व हैं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश. इनमें से पृथ्वी तत्व गुरुत्वाकर्षण का स्रोत है. अगर इसके असर को एक स्तर से नीचे ले आया जाये तो शरीर पर गुरुत्वाकर्षण निष्प्रभावी हो जाता है. और शरीर हवा में उठ जाता है.
एेसे में यदि वायु तत्व को नियंत्रित करके उसे दिशा दी जाये. तो हवा में उठा शरीर मन मुताबिक चलने लगता है. इसे ही वायुगमन यानि हवा में चलकर यात्रा करना कहा जाता है.
प्रभु जी ने दोनो तत्वों पर नियंत्रण करने की शमशान साधना की थी. उन्होंने मुझे उसका विधान बताया. जो कि बहुत ही कठिन और जोखिम भरा लगा. मेरा अनुमान है कि उसे सन्यासी ही कर सकते हैं.
इसके अलावा योग क्रिया से उर्जा नियंत्रित करके भी वायुगमन किया जा सकता है.
प्रभु जी ने मुझे वायुगमन की कई विधियों की जानकारी दी. शमशान साधना छोड़कर बाकी सब व्यवहारिक और सरल लगीं.
आगे मै उन विधियों और उनके विज्ञान की जानकारी दूंगा.
…. क्रमशः.