7 अगस्त 16
गुरु जी की हिमालय साधना…4
शिव सहस्त्र नाम की कीमत पर शिव से मिलाने वाली शक्ति मिल गयी
राम राम, मै शिवप्रिया
गुरु जी इन दिनों अपनी गहन साधना के लिये देव स्थली हिमालय में हैं। साधना का पहला चरण मणिकूट पर्वत पर कदलीवन में पूरा किया। प्रथम चरण पूरा होने पर पिछले दिनों ऊँची पर्वत चोटिओं से उतरकर हरिद्वार आये। तब फोन पर विस्तार से बात हो सकी। मैंने उनसे अपनी साधना को विस्तार से बताने का अनुरोध किया। जिससे मृत्युंजय योग से जुड़े साधक प्रेरणा ले सकें। साधकों के हित को ध्यान में रखकर गुरु जी ने साधना वृतांत विस्तार से बताना स्वीकार कर लिया। मै यहां उन्हीं के शब्दों में उनका साधना वृतांत लिख रही हूँ।
|| गुरु जी ने आगे बताया…||
झिलमिल गुफा में साधुओं ने जल्दी ही मुझे अपना लिया। उन्होंने मुझे एकांत साधना के लिये एक अलग गुफा में पहुंचा दिया। क्योंकि मुख्य गुफा में कांवड़ियों की बड़ी भीड और उनका भारी शोर था। सिद्ध गुफा में साधुओं के बीच साधना में कई नये अनुभव हुए। कुछ खास, कुछ बहुत खास।
अगले दिन की साधना के लिये मै भुवनेश्वरी मन्दिर पहुंचा। पार्वती मन्दिर का ही नाम भुवनेश्वरी मन्दिर है।
यहीं पार्वती माँ ने शिव के स्वस्थ होने के लिये 40 हजार साल तप किया था।
मन्दिर के भीतर घुसते ही मै अपनेपन से भर गया। देवी की मूर्ति पर नजर पड़ी तो लगा जैसे आज यहां मेरा इंतजार हो रहा था। क्यू ? इसका जवाब जानने के लिये देवी माँ की आँखों में देखा तो खो सा गया।
दर्शनार्थियों की लाइन से निकलकर कब नीचे बैठा और कब देवी को शिव सहस्त्र नाम सुनाना शुरू कर दिया कुछ पता ही न चला। सुरक्षा कर्मियों ने मुझे वहां बैठने से रोका भी नही। जबकि कांवड़ियों की भारी भीड़ के कारण वहां किसी को ठिठकने भी नही दिया जा रहा था।
उसी बीच मन्दिर के पुजारियों में से किसी ने आसन लाकर दे दिया। इसका पता मुझे तब चला, जब जाप पूरा कर चूका। तब ध्यान आया तो खुद को आसन पर बैठा पाया। आसपास देखा तो दूसरा कोई आसन न था।
मन्दिर की ऊर्जाएं बहुत विशाल थीं। इससे पहले मैंने किसी भी तप स्थल पर ऐसी ऊर्जाएं नही पायीं। देवी को शिव सहस्त्र नाम सुनाते समय लग रहा था मै किसी और दुनिया में हूँ। जैसे कोई मुझे अपने साथ लेकर कहीं और चला जा रहा है।
साधना ध्यान के दौरान ऐसा ऊर्जा क्षेत्र पहले कभी महसूस नही किया था। लगा कि ये ऊर्जाएं धरती की हैं ही नहीं।
गया था एक पुश्चरण के लिये। लेकिन एक के बाद एक कई जाप अपने आप होते चले गए। जैसे मै अपने आप में न था। कोई अपनी मर्जी से मुझसे शिव सहस्त्र नाम जाप कराता जा रहा है।
बीच में आँख खुली तो सामने मूर्ति में देवी मुस्करा रही थीं। लगा आज वे सिर्फ मेरे लिये ही मुस्कराईं हैं। उनकी मुस्कान में युगों युगों का अपनापन लगा। वो मुस्कान मेरे भीतर शिवतत्व का पोषण कर रही थी। मेरी ऊर्जाओं को ब्रह्माण्ड बना रही थीं।
देवी पार्वती का तप महान था। उनकी ऊर्जाएं विशाल थीं। मैंने खुद को उनकी ऊर्जाओं में शामिल होते पाया।
आज की साधना में शिव तो न मिले मगर जो मिला, उसका अहसास उनसे कम भी न था।
लग रहा था मुझे शिव से मिलाने वाली शक्ति मिल गयी। कीमत थी शिव सहस्त्र नाम जाप। जो मै देवी को सुना रहा था। पति के नाम देवियों को कितना पसंद हैं, ये मै अब जान पाया।
एक बार फिर आँख खुली। देवी की नजरों में अथाह सम्मोहन था। मै मन ही मन बुदबुदाया ‘इतना न मोहित करो कि मै शिव को भूल जाऊँ!’
देवी माँ की मुस्कान और गहरी हो चली। जैसे कह रही हों ‘ भला शिव को कोई भूल सकता है क्या!’
मैंने धीरे से आँखें मूँद लीं।
क्रमशः …।
… अब मै शिवप्रिया।
आपके लिये गुरु जी द्वारा बताया आगे का वृतांत जल्दी ही लिखुंगी।
तब तक की राम राम।
शिव गुरु जी को प्रणाम।
गुरु जी को प्रणाम।