जब मैने गुरुदेव से प्रेत देखने की इच्छा जताई…..7

प्रणाम मै शिवांशु     

उस दिन हमें गुरु बाबा के आश्रम में ही रुकना था. दिन में मै फूल और सब्जी की क्यारियों में बागवानी करता रहा. वहां जो लोग काम कर रहे थे, वे गुरु बाबा के शिष्य थे. सभी जूट के लगोट पहने अधनंगे से थे. जटायें बढ़ी हुई थीं. सभी तपस्वी थे.

ये जानकर कि मै उर्जा नायक का शिष्य हूं, वे मुझसे मिलकर बहुत खुश थे.

उनसे ही पता चला कि गुरु बाबा वहां तकरीबन साल भर पहले ही आये थे. उन्होंने एक विशेष साधना के लिये नैमिषारण्य क्षेत्र को चुना था.

वे घुमंतु टाइप के संत थे. जो विभिन्न स्थानों पर घूम घूमकर साधनायें करते थे.

इससे पहले रामेश्वरम् धाम में रहे. उससे पहले कुछ समय त्रिपुरा में दूर दराज के क्षेत्र में तपस्या की. एेसे ही दर्जनों जगहों पर गुरु बाबा ने तपस्यायें की थीं.  

वे हमेशा अपनी साधनाओं के लिये शहरों से दूर के एेसे क्षेत्र का चयन करते थे. जहां उनके रहन सहन पर कोई खर्च न आये. और उन्हें श्रद्धालुओं की भीड़ परेशान न करे.

गुरु बाबा औघड़ थे. वे भीड़ से दूर रहना चाहते थे.

शहरों से तो वे गुजरते भी नही थे. यात्राओं के दौरान यदि बहुत अनिवार्य होता था, तो रात के समय आबादी में प्रवेश करते. और सरपट वहां से निकल जाते.

तीनों में से उनके सबसे पुराने शिष्य निश्छलानंद जी थे. वे गुरुवर से पहले भी मिल चुके थे. अपने साथियों को गुरुवर की अध्यात्मिक उपलब्धियों, विशेषताओं को बड़ी शान से बता रहे थे. निश्छलानंद जी गुरुदेव को उर्जा नायक महराज कहकर सम्बोधित कर रहे थे.

एेसा लग रहा था जैसे वे गुरुदेव को मुझसे ज्यादा जानते हैं. कुछ एेसी बातें बतायीं जिन्हें मै भी नही जानता था. मै भी उनके दोनों साथियों की तरह हैरान था. उनके साथी इस बात से हैरान थे कि गुरुवर इतनी छोटी उम्र में अध्यात्म को इतनी गहराई से आत्मसात कर पाये. अध्यात्म के विज्ञान को साधनाओं में साकार किया.

दूसरी तरफ मै इस बात से हैरान था कि गुरुदेव आखिर हैं कितने गहरे में. इतने सालों साथ रहने के बाद निश्छलानंद जी की बातें सुनकर लग रहा था, जैसे मै गुरुवर को जानता ही नही. जैसे उनके बारे में पहली बार सुन रहा हूं.

मैने निश्छलानंद जी से पूछा गुरुदेव के बारे में आप इतना सब कैसे जानते हैं.

उन्होंने बताया कि गुरु बाबा उनके बारे में अक्सर बातें करते रहते हैं. उन्हीं से ये सब जाना. आप भाग्यशाली हैं. निश्छलानंद जी ने मुझसे कहा. क्योंकि गुरु बाबा बताते हैं कि उर्जा नायक किसी को अपना शिष्य नही बनाते. जो भी उनसे गुरुदीक्षा लेना चाहता है उसे भगवान शिव का शिष्य बनवा देते हैं. आप सहित उन्होंने अब तक सिर्फ 3 ही लोगों को शिष्य की तरह दीक्षित किया है.

आपको ये भी पता है. मैने आश्चर्य से पूछा. बाकी दो लोग कौन हैं.

निश्छलानंद जी हंसकर रह गये. बोले ये तो आपको उर्जा नायक महाराज ही बताएंगे.

मै अब वाकई अचम्भित था. थोड़ा निराश भी. इस बात पर कि मेरे दो गुरु भाई और हैं, मै उन्हें जानता तक नही. मैने मन ही मन ठान लिया, प्रेत देख पाऊं या न देख पाउं. मगर गुरुवर से आज अपने गुरु भाईयों के बारे में जान कर ही रहुंगा.

जब पता चला कि मै उर्जा नायक का दीक्षित शिष्य हूं, तो निश्छलानंद जी और उनके साथी मुझसे खुलकर बातें कर रहे थे. एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि गुरु बाबा ने प्रेत को सिद्ध कर रखा है. जो उनके साथ रहता है. उनके काम करता है. उनकी सेवा करता है. उसी के कारण वे आबादी वाले क्षेत्रों में जाने से कतराते हैं. और न ही अपने पास भीड़ नही लगने देते. उससे उनके सेवक प्रेत को असुविधा होती थी.

ये जानकारी भी मेरे लिये नई थी. मै नही जानता था कि प्रेत किसी की सेवा भी करते हैं. किसी के लिये काम भी करते हैं. अब तक तो मै उन्हें डराने वाली चीज ही जानता था. क्या करूं, बचपन से एेसा ही तो सुन रखा था.  

अब मै समझ पा रहा था कि गुरुवर मुझे यहां क्यों लाये.

मन में सोच रहा था दुनिया कितनी रहस्यमयी है. जो दिखता है वो कम है, जो नही दिखता वो बहुत ज्यादा है. कल ही ब्रह्म राक्षस का उत्पात देखा. जिसे सच मानकर लोग डर रहे थे. मगर वो सच था ही नही.

आज यहां सब कुछ सामान्य है, कोई उत्पात नही, कोई भय नही. फिर भी यहां असली प्रेत रहता है. मन ही मन शिव गुरु को धन्यवाद दे रहा था जो उन्होंने मुझे गुरुवर का शिष्य बनने का अवसर दिया. वर्ना रहस्य और रोमांच की ये दुनिया मेरे लिये  अनजानी ही रह जाती.

प्रेत की बात जानकर मन में बड़ा रोमांच भर उठा था.

निश्छलानंद जी से पूछा क्या आप लोगों ने उस प्रेत को देखा है.

हां रोज ही देखता हूं. उनका जवाब सुनकर मन में सनसनी फैल गयी. मै भी उसे देखने को बेताब हो उठा.

और उसका समय आ गया.

दोपहर को भंडारा बना. सबके साथ खाया.

कुछ समय बाद निश्छलानंद जी ने बताया कि उर्जा नायक महराज ने आपको गुरु बाबा की कुटी में बुलाया है.

मै निश्छलानंद जी के साथ वहां गया.

कुटिया के बीच में त्रिशूल गड़ा था. उसके पास आग जल रही थी. ये संतों वाली आग थी. इसे धूनी कहा जाता है. साधु, संत जहां प्रवास करते हैं, वहां धूनी हमेशा जलती रहती है. गुरुदेव बताते हैं कि धूनी की अग्नि में सभी तरह की नकारात्मक उर्जाओं को जलाकर भस्म कर देनी की बड़ी क्षमता होती है. धूली की भस्म में औषधीय गुण उत्पन्न हो जाते हैं. क्योंकि उसी के पास साधु संत रमे रहते हैं. भस्म में उनकी कल्याणकारी उर्जायें रम जाती हैं. मगर गुरुवर सावधान भी करते हैं कि भस्म के नाम पर किसी भी तरह की राख को स्वीकार नही कर लेना चाहिये. भस्म को खायें नही. उसे मस्तक पर ही लगायें.

 

गुरुदेव एक आसन पर आराम से बैठे थे.

उनके सामने अपने आसन पर बैठे गुरु बाबा चिलम पी रहे थे. कुटी में चिलम का धुआ चारो तरफ फैला था. साथ ही तम्बाकू और गांजा की महक भरी थी. मै गुरुदेव और गुरु बाबा को प्रणाम करके जमीन में बिछे पुआल पर बैठ गया.

गुरुदेव ने कहा गुरु बाबा की एनर्जी चेक करो.

मैने पाताली सुरंग का निर्माण किया और गुरु बाबा के आभामंडल को काल कर लिया. तभी मुझे तेज झटका लगा. जैसे किसी ने बहुत तेज धक्का मारा हो. एेसा अहसास हो रहा था जैसे कोई तेज रफ्तार गाड़ी मुझे टक्कर मारती चली गई. आस पास धक्का मारने वाला कोई नही था.

मै थोड़ा सहम सा गया. एेसा पहले कभी नही हुआ था. मेरे चेहरे पर पसीना सा छलक आया. अहसास हो रहा था जैसे किसी ने मुझ पर बल प्रयोग किया हो. समझ नही आ रहा था कि क्या हुआ और आगे क्या करूं.

गुरुवर मेरी स्थिति भांप गये. पूछा क्या बात है.

कुछ गड़बड़ है. समझ नही आ रहा. मगर लगता है, मुझ पर बल प्रयोग हुआ है. मैने बताया.

तो. गुरुवर के छोटे से *तो* में बड़ा अर्थ छिपा था. जैसे वे मुझे भी बल प्रयोग की इजाजत दे रहे हों.

मुझे भी बल प्रयोग करना होगा. मैने मन ही मन कहा और जेब से बड़े आकार का रुद्राक्ष निकाल लिया. गुरुदेव ने इस दुर्लभ रुद्राक्ष को मेरे लिये एेसी ही स्थितियों से निपटने के लिये तैयार किया था.

मैने रुद्राक्ष से कहा आप कुटी को इलेक्ट्रिक वायलेट उर्जा से भर दें.

रुद्राक्ष ने मेरा आग्रह स्वीकार कर लिया. मै इसके परिणामों से अवगत नही था. मगर निश्चिंत था, गुरुदेव की मौजूदगी में जो होगा ठीक ही होगा.

अरे रुक जाओं भाई. कुछ ही क्षणों बाद गुरु बाबा की आवाज सुनाई दी. वे कह रहे थे बेटा तुमने जो किया है उसे वापस कर लो. निरंजन कुटिया में घुस नही पा रहा है. और फिर कुटिया के बाहर की तरफ देखते हुए हवा में किसी को डांटते हुए से बोले बेवकूफ तूने एेसा क्यों किया. यहां सब लोग अपने ही हैं.

मै नही समझ पा रहा था कि वे किसको डाट रहे हैं. फिर मुझसे बोले बेटा मै इसकी तरफ से माफी मांगता हूं, इसे माफ कर दो.

मै भौचक्का था.

गुरुदेव ने रहस्य पर से पर्दा उठाते हुए बताया. निरंजन वो प्रेत है जो गुरु बाबा की सेवा करता है. तुमने आभामंडल अपने पास बुलाया तो उसे लगा कि तुम कोई हमलावर हो. गुरु बाबा को नुकसान पहुंचाना चाहते हो. क्योंकि उसने एेसी कोई क्रिया पहली नही देखी थी. इसलिए धक्का देकर उसने तुम पर हमला किया. तुमने रुद्राक्ष के जरिये इलेक्ट्रिक वायलेट उर्जा का चैम्बर इनवाइट कर लिया. चैम्बर ने उसे बाहर फेंक दिया. अब भीतर नही घुस पा रहा है. वह तुमसे डरा हुआ है और गुस्से में भी है. उसके भीतर आने के लिये तुम्हें इस चैम्बर को हटाना पड़ेगा.

मेरे रोंगटे खड़े हो गये. कुछ पल पहले मै प्रेत के हमले का शिकार हुआ था. ये सोचकर असहज हो गया. मन मस्तिष्क बेकाबू हुए जा रहे थे. सच कहें तो मै भयभीत हो गया था. मेरे हाथों-पैरों में कंपकपाहट हो रही थी. आवाज गले में अटक गई थी. गुरुदेव साथ न होते तो मै खुद को सम्भाल न पाता.

मैने रुद्राक्ष से कहा मुझे सुरक्षा कवच दें. रुद्राक्ष द्वारा मेरा आग्रह स्वीकार कर लिया गया. उसके बाद ही मै सामान्य हो पाया.

अनजाने में मैने प्रेत को हरा दिया.

अब बात चल रही थी उससे दोस्ताना स्थापित करने की.

मै अब समझ पा रहा था कि अध्यात्म की गहरी दुनिया के लोग गुरुदेव को इतना महत्व क्यों देते हैं. क्यों मिला उन्हें उर्जा नायक का दर्जा. क्योंकि उनकी बनाई उर्जा तकनीक हर हाल में काम करती है. उपयोग करने वाला चाहे स्थितियों से अवगत हो या न हो.

( ध्यान रखें मै जो कर रहा था, वो कोई चमत्कार या सुपर पावर नही है. बल्कि उर्जा नायक द्वारा इजात उर्जा उपचार की तकनीक है. थोड़े से अभ्यास के बाद इसे आप में से कोई भी कर सकता है.)

गुस्से में होने के बावजूद, प्रेत अब मुझ पर हमला नही कर सकता था. बावजूद इसके कि वो मुझे देख रहा था. जबकि मै उसे नही देख सकता था.

वह मुझसे डरा था और मै उससे.

गुरुदेव के कहने पर मैने कुटी से इलेक्ट्रिक वायलेट उर्जा का चैम्बर हटाकर प्रेत को भीतर आने का रास्ता दे दिया.

….. क्रमशः.

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

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