प्रणाम मै शिवांशु
मां ललिता देवी और चक्रतीर्थ को प्रणाम करके हम नीमसार से आगे बढ़ गये. नैमिषारण्य को स्थानीय लोग नीमसार कहते हैं. कामकाज के हिसाब से मिश्रिख यहां का प्रमुख केंद्र है.
रात घिर चुकी थी.
नीमसार के मिश्रिख तिराहे पर हम चाय पी रहे थे. तभी पुलिस की एक जिप्सी आगे जाकर एकदम से रुकी. फिर बैक होकर आयी और पास आकर रुक गयी. उसमें से एक पुलिस अधिकारी उतरा और गुरुवर की तरफ ध्यान से देखने लगा. जिप्सी में से अधिकारी के अधीनस्थ पुलिस वाले भी उतरकर नीचे खड़े हो गये. वे अपने अधिकारी के किसी भी हुक्म के लिये चौकस दिख रहे थे.
गुरुवर का ध्यान उनकी तरफ न था. वे कार में बैठे चाय पी रहे थे. उनकी आदत थी कि चाय पीते समय कार का दरवाजा खोल दिया कर पैर बाहर लटकाकर बैठा करते थे. ताकि बाहर का नजारा साफ देख सकें.
मै पास ही खड़ा था.
अधिकारी ने पास जाकर गुरुवर के कंधे पर हाथ रख दिया. गुरुदेव ने पलटकर देखा.
दोनों लोग एक दूसरे को पहचान गये. वे पुलिस अधिकारी गुरुदेव के पत्रकारिता के जमाने के मित्र थे. दोनों लोग गले मिले. गुरुदेव ने मुझे इशारा करके एक चाय और मंगाने को कहा.
दोनो मित्र कार के पास से हटकर फुटपाथ किनारे बने एक कच्चे चबूतरे पर जा बैठे. एेसे जैसे दोनो कालेज के छात्र हो, और मस्ती में दोस्ती निभा रहे हैं.
पुलिस वाले हैरान थे. उन्हेंने सोचा भी न होगा कि उनका उच्च अधिकारी एेसे फुटपाथ पर बैठेगा. वे हड़बड़ा से गये. और जल्दी जल्दी इधर उधर से दो कुर्सियां उठा लाये. कुर्सी लेकर अधिकारी के पास गये, तो गुरुवर ने इशारे से मना कर दिया. दोनों लोग जमीन पर ही बैठे बतियाते रहे.
थोड़ी देर बाद गुरुदेव ने मुझसे दूसरी चाय लाने का इशारा किया. वे एेसे ही एक के बाद एक चाय पिया करते थे. गुरुवर ने अधिकारी से मेरा परिचय कराया.
वे डिप्टी.एस.पी. रैंक के अधिकारी थे. गुरुवर के गहरे मित्रों में से थे. जब गुरुवर पत्रकार थे, तब उनके मित्रों की लाबी बहुत मजबूत थी. जिसमें ईमानदार छवि वाले कई पत्रकार, पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिज्ञ, समाजसेवी शामिल थे. ये डिप्टी एस.पी. भी उन्हीं में से एक थे. लगभग 6 साल बाद दोनो मिले थे. सो काफी देर तक बतियाते रहे.
गुरुदेव ने जब बताया कि अब वे पूरी तरह से अध्यात्म कर रहे हैं, तो अधिकारी को विश्वास ही न हुआ. उनके तब के मित्रों की जानकारी में था कि गुरुदेव इन बातों के खिलाफ थे. वे ज्योतिष, वास्तु, पूजा पाठ, कर्मकांड से जुड़े लोगों को पाखंड फैलाने वाले लोग माना करते थे. हां साधु संतों पर उन्हें तब भी विश्वास था.
पत्रकारिता के ग्लैमर को छोड़कर अध्यात्म में सक्रियता की बात अधिकारी मित्र ने मुश्किल से स्वीकारी.
( गुरुदेव पत्रकारिता छोड़कर अध्यात्म में कब और कैसे आये, इस बारे में मै पहले की कुछ पोस्ट में बता चुका हूं.)
गुरुदेव ने अपने अधिकारी मित्र को बताया कि हम गोमतीनगर के किनारे बसे कोलहुआ गांव के पास जा रहे हैं. अधिकारी ने अपने ड्राइवर को बुलाकर पूछा कोलहुआ कहां पड़ेगा. ड्राइवर ने सोचकर बताया ये करनपुर के पास है. मगर वहां रात में जाना ठीक नही. रात में बदमाश वहां लोगों को लूटकर मार भी देते हैं.
अधिकारी ने जिद करके हमें आगे जाने से रोक दिया. रात में हम मिश्रिख में उनके ही आवास में रुके.
सुबह सूर्योदय से पहले ही हम आगे के लिये निकल पड़े. सुरक्षा और रास्ता दिखाने के लिये दो सिपाही हमारे साथ भेजे गये थे. जिन्हें कुछ दूर आगे चलने के बाद गुरुवर ने वापस भेज दिया.
अब रास्ते कच्चे थे. कार गुरुदेव ड्राइव कर रहे थे. क्योंकि एेसे रास्तों पर गाड़ी चलाने का अनुभव मुझे न था.
कुछ घंटे चले.
मंजिल आ गई.
हम कोलहुआ की बस्ती से आगे जाकर रुके. ये गोमती नदी का किनारा था. जंगली इलाका था. रास्ते बहुत खराब थे. मगर हम पहुंच गये.
नदी से थोड़ा हटकर कुछ कुटिया बनी थीं. देखने पर वहां का नजारा आश्रम जैसा लग रहा था.
आस पास खाली जगह पर फूल और सब्जियों की क्यारियां थीं.
जिनमें तीन लोग काम कर रहे थे. तीनों ही साधु वेषधारी थे.
उनमें से एक कुछ अधिक उम्र के थे. हमें देखकर उनके चेहरे पर अत्यधिक खुशी के भाव नजर आये. वे क्यारी से निकल कर लगभग भागते हुए से हमारे पास आ गये.
पास आकर उन्होंने गुरुवर को दंडवत किया, और बोले गुरु बाबा आपका बहुत दिनों से इंतजार कर रहे हैं. आने में आपने बहुत देर लगाई. इतना कहकर वे एक कुटी की तरफ चल दिये.
गुरुवर उनके पीछे थे.
मै गुरुवर के पीछे.
हम कुटी में गये. वहां एक संत आधे लेटे से बैठे थे. हमें देखकर बहुत खुश हो गये. और गुरुदेव से गले मिले. उनकी उम्र 70 से अधिक लग रही थी. चेहरे से ही वे सिद्ध तपस्वी लग रहे थे. उनके शिष्य उन्हें गुरु बाबा कहकर बुलाते थे.
बहुत देर लगाई उर्जा नायक आने में. संत ने गुरुवर से गले मिलते हुये कहा.
उर्जा नायक।
मै किसी के द्वारा गुरुवर के लिये ये सम्बोधन पहली बार सुन रहा था.
सम्बोधन बड़ा ही गरिमामयी लगा. मेरा मन खुशी और गर्व से भर उठा. तपस्वीईयों के बीच गुरुवर की पहचान उर्जा नायक के रूप में है.
मै मन में सोच रहा था, गुरुदेव की एक मित्र मंडली वो थी, और एक ये. दोनो में कोई तारतम्य नही. दोनों ही जगह गुरुवर का स्थान अपनेपन और प्रतिष्ठा से भरा हुआ.
गुरुदेव ने इशारे से मुझे भा गुरु बाबा के शिष्यों के साथ बाहर जाने को कहा. मै कुटिया से बाहर निकल आया.
गुरु बाबा क्यों और कब से इंतजार कर रहे थे हमारे उर्जा नायक का.
ये सवाल मुझसे जवाब मांग रहा था.
जवाब गुरुदेव से ही मिल सकता था. वे कुटिया के भीतर थे.
मै बाहर उनका इंतजार करने लगा.
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.