प्रणाम मै शिवांशु.
उन दिनों मै गुरुवर के साथ घुमंतू होकर निकला था. यानी इरादा था सिर्फ घूमने का. हम बाई रोड बनारस जा रहे थे. रास्ते में आजमगढ़ के गांव में गुरुदेव रुके. गांव छोटा था. उसकी बसावट सड़क के दोनों तरफ थी.
तब गुरुदेव चाय पिया करते थे. सो मै एक छोटी सी चाय की दुकान से चाय बनवाने लगा. वहां दुकानें छोटी ही थीं. गुरुवर भी गाड़ी से उतर कर दुकान पर आ गये. हम चाय पी ही रहे थे कि दुकान के पीछे के कमरे से किसी के हुंकारने की आवाजें आने लगीं. हमारा ध्यान उधर खिंच गया.
चाय वाले से पूछा क्या हुआ.
उसने बताया कि सुल्तानपुर से उसकी साली आई हुई है. उस पर ब्रह्म राक्षस का साया है. जब साया लड़की पर कब्जा करता है तो वो एेसी ही आवाजें निकालती है. और उत्पात करती है.
अभी हमारी बात पूरी भी न हुई थी कि एक युवती कमरे से निकल कर बाहर आ गई. वह बहुत गुस्से में थी. चेहरा गोल, आंखें बड़ी बड़ी व आकर्षक, मगर अब लाल दिख कर डरा रही थीं. बाल बिखरे हुए, कपड़े अस्त व्यस्त. हाव भाव एेसे जैसे सबको मार देगी.
उसके तेवरों ने उसकी खूबसूरती को भी डरावना बना दिया था. मै भी डर गया. लग रहा था वह हमला कर देगी. उसकी बहन उसे पकड़ कर नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी. मगर नाकाम. चाय वालने भी लड़की को जकड़ने की कोशिश की. लड़की में न जाने कहां की ताकत समा गई थी. उसने झटका दिया तो चाय वाला छिकट कर दूर जा गिरा. अब वह डर के मारे कांप सा रहा था.
लड़की के मुंह से मर्दों की तरह आवाजें निकल रही थीं.
शोर सुनकर दुकान पर आस पास के लोग आ गये. भीड़ लग गई. एक आदमी पास के मंदिर से पुजारी को बुला लाया.
पुजारी मंत्र पढ़कर लड़की जर जल छिड़कने लगा.
सब कुछ एेसे होता चला जा रहा था. जैसे कोई स्क्रिप्ट हो और उसके मुताबिक होता जा रहा था. मैने जानना चाहा तो भीड़ में खड़े पड़ोसी ने बताया कि एेसा कई बार होता है. तब पुजारी जी आकर जल छिड़कते हैं. जिससे सपना के भीतर का ब्रह्मराक्षस थोड़ा शांत रहता है. कुछ देर में पास के पुरवा (गांव) से मुल्ला जी आ जाएंगे.
उनको खबर कर दी गई है. वे आकर एक ताबीज जलाएंगे, जब राक्षस शांत होगा.
अब समझ में आया कि इतनी जल्दी पुजारी कैसे आ गया.
मगर इस बार उनके जल छिड़कने से सपना शांत न हुई. बल्कि चाय की केतली उठाकर पंड़ित जी पर फेंक मारी. पंडित जी भाग्यशाली थे, जो सपना का निशाना चूक गया. वर्ना गर्म चाय उनके चेहरे और सिर पर पड़ती तो बुरा हाल हो जाता.
उसके बाद लड़की ने दूध का पतीला उठाकर अपने ऊपर उड़ेल लिया. चाय बनाने के सारे बर्तन पलट दिये. कांच के गिलास टूटकर बिखर गये. जिससे लोग डरकर इधर उधर भागने लगे.
पंडित जी पर हमले के कारण सब डर गये.
मैने पलटकर गुरुदेव की तरफ देखा. वे अपना चाय का गिलास लेकर कार में जा बैठे थे. कार का दरवाजा खुला था. पैर नीचे लटकाये आराम से चाय पी रहे थे. जैसे इस हंगामे का उन पर कोई असर ही न हुआ हो.
मै चकित था. उनके पास गया. उन्हें बताया कि इस लड़की का नाम सपना है. उस पर ब्रह्मराक्षस ने कब्जा कर लिया है. उसकी जान खतरे में है.
गुरुवर ने मेरी तरफ एेसे देखा जैसे मै उन्हें पका रहा हूं. बोले तुम्हारी चाय कहां है.
मै डर के मारे चाय पीनी भूल गया था. गिलास दुकान पर ही कही छोड़ आया था.
मैने कहा चाय से ज्यादा जरूरी लड़की की जान बचाना है गुरुदेव.
गुरुवर ने मुझे घूरा. जैसे कह रहे हों अब तुम मुझे बताओगे कि क्या जरूरी है क्या नही.
अपना आधा खाली चाय का गिलास मुझे पकड़ाकर बोले लो पी लो.
मै पीने लगा. वे भीड़ की तरफ बढ़ गये. मै उनके पीछे था. चलते हुए वे सपना के बिल्कुल पीछे जाकर खड़े हो गये. सपना अभी भी उग्र थी.
गुरुदेव ने तेज आवाज में उसका नाम पुकारा, सपना।
लड़की ने पलटकर गुरुदेव की तरफ देखा. पलटते समय उसके तेवर विकराल ही थे. मगर गुरुदेव से नजरें मिलते ही वह शांत होने लगी. वह उन्हें अचरज से देख रही थी. जैसे अजनबी के मुंह से अपना नाम सुनकर हैरान हो.
बैठ जाओ, गुरुदेव ने सपना को आदेश दिया. तुम जो चाहती हो वही होगा. तुम्हारी शादी नीरज से करा दी जाएगी.
शादी नीरज से नहीं होगी, सपना के तेवर फिर तीखे हो गये. शादी कल्लू से ही शादी होगी. वर्ना सबको मार डालुंगा. वह कहती चली गई. अभी भी उसकी आवाज में मर्दाना आवाज की मिलावट थी.
गुरुदेव ने कहा ठीक है. अब शांत हो जाओ. इतना कहकर गुरुवर ने उसका हाथ पकड़ लिया.
वह धम्म से जमीन पर बैठ गई. मै समझ गया गुरुवर ने उसमें उर्जा का प्रवाह शुरू कर दिया है. गुरुदेव भी उसके पास जमीन पर ही बैठ गये. उससे कुछ बातें करने लगे. कुछ क्षणों बाद वह रोने लगी. अब उसके चेहरे पर मासुमियत और याचना के भाव थे.
गुरुदेव ने उससे जाने क्या कहा कि छोड़ी देर बाद सपना खुश नजर आने लगी. जैसे कुछ हुआ ही न हो.
मगर वह अपने जीजा को और पुजारी को बीच बीच में एेसे घूर कर देख लेती जैसे उसके भीतर का ब्रम्हराक्षस दोनों को खा जाने के लिये आतुर हो.
क्या कहा गुरुदेव ने सपना से, जो उसके भीतर का ब्रम्हराक्षस शांत हो गया.
ये मै आगे बताउंगा.
ये भी बताउंगा कि मेरे मन में प्रेत देखने की इच्छा क्यों पैदा हुई.
तब तक की राम राम.
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.