मेरी पहली उच्च साधना….4

प्रणाम मै शिवांशु


ब्रह्मांड विलय साधना.

अब विषय बहुत तकनीकी होने जा रहा है। जो लोग आज के व्याख्यान को समझ कर याद रख पाये, समझो वे इस साधना को करने के पात्र हैं.

जब गुरुवर ने मुझे इसकी जानकारी दी तो मै चकित रह गया। मेरे चकित होने के दो कारण थे. एक तो साधनाओं में विज्ञान का एेसा उपयोग न मैने सुना था न देखा था. दूसरा ये कि मै तो गुरुवर के पत्रकार वाले रूप से ही भलीभांति परिचित था। शरीर के विज्ञान की इतनी गूढ़ जानकारी और उसका साधनाओं में उपयोग करने का उनका ज्ञान पहली बार मेरे सामने प्रकट हो रहा था।

गुरुदेव बताते जा रहे थे. मै उन्हें देखता जा रहा था. मन में सोच रहा था कि मै कितना भाग्यशाली हूं, जो गुरुवर मुझे इतनी आसानी से मिल गये. शायद कई जन्मों के पुण्य का फल था ये. मेरा रोम रोम शिव गुरु को धन्यवाद दे रहा था कि उन्होंने मेरे गुरुदेव को उर्जा नायक बनाया. इतना सक्षम बनाया।

गुरुवर ने बाताया पंचतत्व हमारे जीवन के हर क्षण को प्रभावित करते हैं। जिसके कारण उनकी सीमाओं से बाहर निकल पाना आसान नही। जब तक इन सीमाओं को लांघा न जाये तब तक ब्रह्मांड में विलीन होना नामुमकिन है। पंचतत्वों की उर्जा हमारे शरीर और मन को अनचाही अव्स्था में भी नियंत्रित करती है।

उदाहरण के लिये जब हम अचालक किसी बात से डर जाते हैं तो दिल की धड़कन तेज हो जाती है. रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

एेसा पंचत्तवों द्वारा हमारी सुरक्षा के लिये किया जाता है। गुरुदेव इस रहस्य का विज्ञान बता रहे थे। डर एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है। अग्नितत्व के प्रभाव से भावनाओं का केन्द्र मणिपुर चक्र डर की उर्जाओं को अपने पड़ोस में स्थित, लीवर की तरफ भेज देता है। लीवर हमारे शरीर की सबसे बड़ा ग्रंथी है।

लीवर का तीसरा निचला चक्र इस उर्जा को किडनी की तरफ भेजता है. किडनी के ऊपर एड्रेनल ग्लैंड्स स्थित होती है। जो एड्रेनालाइन हार्मोन को रिलीज़ करता है. ये हार्मोन किडनी को उत्तेजित करके खून की गति बढ़ा देता है।

इसी कारण ह्रदय की धड़कन बढ़ जाती है। उसका उद्देश्य होता है सभी अंगों में ज्यादा खून पहुंचाना. जिससे मांसपेशियों को अतिरिक्त उर्जा मिलती है। उद्देश्य ये होता है कि या तो आपको लड़ना है या भागना है। दोनों कामों के लिए अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। इसके अलावा शरीर की मांसपेशियां शरीर के रोयों को उत्तेजित करके उन्हें खड़ा कर देती हैं. ताकि शरीर में गर्मी आए। इससे भी उर्जा बढ़ती है।

विज्ञान इसे ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम कहता है। पंचतत्वों की उर्जाओं से संचालित हमारे मस्तिष्क में बहुत उर्जा होती है। इतनी कि उससे 20 वाट का बल्ब जलाया जा सकता है। मस्तिष्क तंत्रिका तंत्र के जरिये सुपर कम्प्यूटर की तरह काम करता है। तंत्रिका तंत्र उर्जा से संचालित होता है। तंत्रिका नाड़ियों को कहते हैं। ये दो तरह की होती हैं। एक भौतिक शरीर की, जिन्हें नसें कहते हैं। दूसरी इथरिक शरीर की। जिन्हें अध्यात्म की भाषा में नाड़ियां कहते हैं।

तंत्रिका तंत्र का जाल पूरे शरीर में फैला है। बहुत ही व्यवस्थित तरीके से।

ये बहुत ही संवेदनशील है। मन की गति से भी ज्यादा तेज काम करता है।

इसे आप दूसरे उदाहरण से समझें. कहीं गर्म लोहे का टुकड़ा पड़ा है। आप उसे आखों से नही देख पाये. चलते चलते उस पर पैर रख दिया। पैर की स्किन की तंत्रिकायें तुरंत गरमाहट की सूचना मस्तिष्क को देंगी। मस्तिष्क तुरंत आदेश जारी करेगा कि पैर वापस खींच लो। और जब तक आप कुछ समझ पाते तब तक पैर को वापस खींचा जा चुका होता है। पूरी क्रिया हो चुकने के बाद जब जलन का अहसास होता है. तब आपको पता चलता है कि पैर किसी गर्म चीज पर पड़ गया।

इस उदाहरण से आप समझ गये होंगे कि हमारे जीवन में पंचतत्वों की भूमिका कितनी गहरी और तेज है। शरीर और मन की हर गतिविधि चाहे वो हमें पता हो या न पता हो, इनकी सक्रियता से ही होती है।

एेसे में इनकी सीमाओं से बाहर निकल पाना नामुमकिन सा प्रतीत होता है।

गुरुदेव ने पंचतत्वों की सामाओं को तोड़कर ब्रह्मांड विलय के लिये जो साधना तकनीक बताई. वो मस्तिष्क के सुपर कम्प्यूटर को हैक किये जाने जैसी थी। क्या थी वह तकनीक. इसकी जानकारी मै आगे दूंगा.

तब तक की राम राम.

….. क्रमशः।

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