प्रणाम मै शिवांशु
ब्रह्मांड विलय साधना.
यही करने जा रहा था मै। इसके तहत खुद के अस्तित्व को शून्य करके ब्रह्मांड में विलीन कर देना होता है. तब हम खुद ब्रह्मांड हो जाते हैं. जब खुद ब्रह्मांड हो जाते हैं. तो ब्रह्मांड के सारे रहस्य जान सकते हैं।
विषय बहुत जटिल है। गुरुवर ने इसे मुझे सरल करके समझाया. वही मै आपको बता रहा हूं।
इसे आप एक बूंद पानी के उदाहरण से समझें।
पानी की बूंद की अपनी पहचान होती है, उसका अपना अस्तित्व होता है। यदि उसे समुद्र में डाल दिया जाये, तो उसकी पहचान, उसका अस्तित्व खत्म हो जाता है। मगर वही बूंद अब समुद्र बन गई. उसकी पहचान अब समुद्र के रूप में होगी. उसके सारे गुण भी समुद्र के ही होंगे. अब उसे समुद्र के भीतर की सारी बातें मालुम होंगी।
जिस तरह से पानी की बूंद जल तत्व और वायु तत्व के संयोग से बनती है। जब पानी के छोटे भाग पर हवा चारो तरफ हवा का दबाव पड़ता है. तो बूंद का जन्म होता है। उसी से उसे आकार और पहचान मिलती है।
उसी तरह हमारा शरीर पंचतत्वों के संयोग से बनता है। उसी से हमें आकार और पहचान मिलती है। यही हमारा भौतिक अस्तित्व है। पंच तत्व ब्रह्मांड के कुछ अवयवों में से हैं।
जैसे पानी की बूंद हवा की सीमाओं से घिरी रहती है। वैसे ही हमारा शरीर पंच तत्वों की सीमाओं से घिरा रहता है। यदि पंच तत्वों की सीमाओं को तोड़ दिया जाये तो हम ब्रह्मांड बन जाते हैं।
गुरुवर ने बताया मृत्यु के बाद दाह संस्कार आदि से पंच तत्वों की सामीयें समाप्त हो जाती हैं।
तब मैने सशंकित होकर गुरुदेव की तरफ देखा था. जैसे पूछना चाहता हूं कि क्या मेरा दाह संस्कार होने वाला है.
अभी नही। गुरुदेव ने कहा और विषय पर लौट आये। बताया कि शरीर के रहते भी पंचतत्वों की सीमाओं से बाहर निकला जा सकता है। उसके लिये आत्म तत्व की गति बढ़ानी होती है। क्योंकि वह शरीर में होते हुए भी पंच तत्वों के अधीन नही है।
मगर इंद्रियों की गतिविधियां आत्मतत्व की गतिशीलता में व्यवधान डाल सकती हैं। इसके लिये ही इस साधना में कम कम खाने, कम सोने, कम बोलने की पाबंदी है। जो कुछ खाने में अच्छा लगता है उस सब को साधना के दौरान छोड़ देना होता है। जो सुनने में और बोलने में अच्छा लगता है, उसे भी छोड़ देना होता है। जो देखने के लिये आकर्षित करता है, उसकी अनदेखी करनी होती है। क्योंकि जो अच्छा लगता है उसे करने, देखने, सुनने, पढ़ने, खाने से ही इंद्रियों के भटकाव की खतरा रहता है।
इसका मतलब ये नही है कि जो अच्छा लगता है. उसे किया ही न जाये। यहां हम बात कर रहे हैं ब्रह्मांड विलय साधना के दौरान होने वाली पाबंदियों की। इसका सामान्य जीवन की दिन चर्या से कोई लेना देना नहीं।
गुरुवर ने बताया कि इस साधना के लिये इंद्रजीत होना जरूरी नही. लेकिन अपनी इंद्रियों की डिमांड को खारिज कर दिया जाये, तो साधना आसान हो जाती है.
ब्रह्मचर्य का पालन करना था. फ्रिज का पानी नही पीना था. उबाला गया दूध नही पीना था. रोस्टेड बादाम नही खाने थे. ए.सी., कूलर का इश्तेमाल नही करना था. टी.वी. नही देखना था, अखबार नही पढ़ना था. रेडियो नही सुनना था, गाने नही सुनने थे. इंटरनेट का उपयोग नही करना था. फोन पास नही रखना था. दो हफ्ते बाद कागज पेन का उपयोग भी नही करना था. तीसरे हफ्ते से इशारों में भी बात नही करनी थी. 24 घंटों में 4 घंटे से अधिक नही सोना था. गुस्सा नही करना था. रोना नही था. हंसना नही था. हां मुस्करा सकते थे. साधना के दौरान घूमने फिरने के लिये मै कहीं भी जा सकता था. मगर कार, मोटर, बाइक, साइकिल, रिक्शा, वोट, प्लेन का उपयोग नही करना था.
एेसी और भी पाबंदियां थीं जो हमारी इंद्रियों को महत्वहीन बनाने के लिये निभाई जानी थी.
इसी से पंचतत्वों की अनिवार्यता को बिना दाह संस्कार के भी शून्यता तक ले जाया जा सकता है।
ये सब जानने के बाद मैने गुरुवर से कहा था, अच्छा होता आप मुझे किसी एकांत गुफा में बंद कर देते।
वे बोले तुम्हारे घर के पीछे सर्वेंट क्वार्टर हैं न. गुरुवर के पास सभी समस्याओं का तुरंत समाधान होता है.
इसका भी समाधान तत्काल दे दिया।
अब मै वाकई घबरा गया था. क्योंकि उनके मुंह से बात निकली यानी कि वही होने वाला है।
मेरे लिये साधना कक्ष की तैयारी शुरू हो गई। तय हुआ कि मेरे बंगले के कम्पाउंड में ही पीछे बने सर्वेंट क्वार्टर में से एक को 15 दिन के लिये खाली करा लिया जाएगा. साधना शुरू होने के 4 दिन पहले उस सर्वेंट क्वार्टर की बिजली काट दी जाएगी. बिजली कटते ही क्वार्टर मुझे हैण्ड-ओवर कर दिया जाएगा. ताकि मै अपनी सुविधानुसार उस जगह को सजा सकूं. मगर वहां मै बेड, सोफा, कुर्सी, मेज, स्टोव, गैस चूल्हा आदि नही रख सकता था. सोने के लिये बिस्तर जमीन पर ही होगा।
अब आप समझ ही गये होंगे कि मेरे सजाने के लिये वहां क्या बचा था।
ये जानकारी मिली तो मेरी पत्नी भी घबरा गई। उसकी रिक्वेस्ट पर गुरुदेव ने साधना स्थल पर उसे जाने का अधिकार दे दिया. वह खुश हो गई।
मगर मै उन दिनों के बारे में सोच रहा था, जब पीछे वाले क्वार्टर में शिफ्ट होना था।
फिर गुरुदेव ने आत्म शक्ति की तेज दौड़ का अभ्यास शुरू कराया. इतनी तेज की एक मिनट में आप धरती के साढ़े तीन चक्कर लगा डालें.
कैसे, ये मै आपको आगे बताउंगा.
….. क्रमशः।