प्रणाम मै शिवांशु
मैने शिव गुरु से अपने सवालों के जवाब लेने की सिद्धी खो दी. कारण था मेरा उतावलापन। मै उन्हें अपनी गैरजरूरी जिज्ञासा का शिकार बनाता रहा. एक दिन उनसे जवाब मिलने बंद हो गये. घबड़ाकर मैने इसकी जानकारी गुरुवर को दी. उन्होंने उच्च साधना की तैयारी का आदेश दिया. जिसके तहत मुझे 27 दिन दूध व बादाम का सेवन करके व्रत रखना था. साथ ही 30 दिन मौन व्रत रखना था। उच्च साधना को लेकर मै अपने प्रति सशंकित और घबराया हुआ था. क्योंकि दूध मुझे पसंद न था. भूख मुझे बर्दास्त न थी. चुप रहना उबाऊ सजा की तरह लगता था.
अब आगे…
मेरे मन में विरोधी विचारों का सैलाब था. भूख लगी तो क्या करुंगा, बीमार तो नही हो जाउंगा. मौन में अपनी बात दूसरों से कैसे कहुंगा. गुरुवर ने मौन के साथ ही चैटिंग करने, एस.एम.एस. का उपयोग करने, इंटरनेट का उपयोग करने, किसी भी तरह का फोन पास रखने, अखबार पढ़ने, टी.वी. देखने, गाने सुनने से भी मना कर दिया था।
जिसके कारण एेसा लग रहा था जैसे मेरी दुनिया ही छूटी जा रही हो. आप सोच सकते हैं मेरे साथ क्या होने वाला था. फिर मै क्यों न सशंकित होता. बल्कि सही कहें तो मै अज्ञात भय का शिकार हो चला था।
मगर इन सब पर एक चीज भारी पड़ रही थी. वो था मेरा विश्वास. मुझे यकीन था गुरुवर मुझसे वही कराएंगे जिसे मै करने लायक हूं. बस ये विचार आते ही मन झूम उठता कि मै उच्च साधना करने जा रहा हूं. मै उच्च साधना के लायक हूं.
एक बार फिर मै उतावनेपन का शिकार हो गया. जहां एक तरफ आशंकाओं से ग्रसित था, वहीं दूसरी तरफ उच्च साधना के लायक हूं इस बात का गर्व हो रहा था. यकीनन मेरे गर्व का श्रेय गुरुवर को जाता है. क्योंकि जो आशंकायें मुझे विचलित कर रही थीं, उनके चलते उच्च साधना तो क्या सामान्य साधना भी नही की जा सकती. अपरोक्ष रूप से गुरुदेव मुझे विचारों के मकड़जाल से जीतना सिखा रहे थे।
मै जीत गया। मगर मै फंस गया।
हुआ यूं कि 27 दिन का व्रत करूंगा और 30 दिन मौन रहुंगा इसका मैने डंका पीट दिया। एेसा लग रहा था जैसे सरहद पर जंग छिड़ गई हो और मै वहां पहली पंक्ति में खड़ा सिपाही हूं. सो सबसे वाह वाही चाह रहा था. नातेदार, रिश्तेदार, मित्र, सहयोगी, सहकर्मी किसी को नही छोड़ा. सबको बता डाला.
गुरुवर अक्सर मुझे एक धमकी देते हैं. कहते हैं बेटा तुम्हारी जिंदगी के चप्पे चप्पे पर मेरे जासूस तैनात हैं. इस भुलावे में मत रहना कि जो तुम करोगे मुझे पता न चलेगा.
मुझे मालूम है. उनकी जासूस मेरे घर में ही घुसी बैठी है. मेरी पत्नी.
उसने गुरुदेव को खबर दे दी कि मै सबको अपने व्रत व मौन व्रत की सूचना देने के लिये उतावला हुआ घूम रहा हूं। दरअसल वह चाहती थी कि मौन शुरू होने से पहले का सारा टाइम मै उससे बातें करते हुए बिताऊं। जबकि मै दूसरों को फोन कर करके बताने में लगा था. दो घंटे तो उसने बर्दास्त किया. उसके बाद उसकी काल गुरुवर तक पहुंच गई।
गुरुदेव का अगला आदेश आ गया. मौन व्रत अभी से शुरू.
उस समय शाम के सात बजे थे।
मुझे पत्नी पर गुस्सा आया. मगर वह तो गुरुवर की जासूस ठहरी. उससे पंगा और भारी पड़ सकता था. सो बुदबुदा कर रह गया।
अब साधना के नियमों में थोड़ा संशोधन था।
अब मौन के पहले हफ्ते मै पत्नी से बात कर सकता था. दूसरे हफ्ते अपनी जरूरत की बातें उसे लिखकर दे सकता था. तीसरे हफ्ते उससे इशारों में बात कर सकता था।
उसके बाद पूरा मौन. न इशारे, न लिखना, न पढ़ना।
गर्मी का मौसम था. मगर अब से लेकर साधना तक मुझे फ्रिज का पानी नही पीना था।
साधना की तैयारी 30 दिन की थी. मगर साधना 6 दिन की।
साधना के नियम बहुत सरल थे. मगर उसकी पाबंदियां बहुत कठिन।
साधना बिना किसी मंत्र के की जानी थी।
साधना का नाम था ब्रह्मांड विलय साधना।
जिसमें खुद के अस्तित्व को शून्य करके, खुद का ब्रह्मांड में विलय कर लिया जाता है। यानी खुद को ब्रह्मांड बना लिया जाता है।
एेसे में ब्रह्मांड रूपी शिव से सभी सवालों के जवाब मिलने लगते हैं।
इसके लिये कुछ छोटे सवालों के दायरे से बाहर निकलना होता है। जैसे मै कौन हूं, मै कहा से आया हूं, मेरे जन्म का उद्देश्य क्या है. मृत्यु के बाद मै कहां जाउंगा.
मेरा मौन शुरू हो चुका था.
…. क्रमशः