प्रणाम मै शिवांशु,
गतान्क से आगे…..
हम गुप्त काशी पहुंच गए। रात भर चले। सुबह तकरीबन नौ बजे पहुंचे। ड्राइविंग करते गुरुवर को नींद न आने पाये इसलिये मै भी रात भर नही सोया था। अब मै नींद में था। पहाड़ी रास्तों के घुमावदार उतार चढ़ाव ने मुझे थका भी दिया था।
मगर गुरुदेव के चेहरे पर न थकान दिख रही थी और न ही नींद। वे अभी भी तरोताजा से ही नजर आ रहे थे।
मुझसे बोले तुम थक गए होंगे। किसी धर्मशाला में रुक कर आराम कर लो। फिर हैलीकाप्टर से केदारधाम चले जाना। 10 मिनट लगेंगे वहां पहुँचने में। दर्शन करके वापस आकर यहीं मेरा इन्तजार करना।
और आप? मैंने उलझन से पूछा। क्योंकि मुझे उनकी योजना पता नही चल पा रही थी।
मै 5 दिन बाद लौटुंगा। गुरुवर के जवाब ने मुझे सन्न कर दिया। वे फिर मुझे छोड़कर जाने वाले थे। वो भी 5 दिन के लिये। इस बार मैंने तय कर लिया था, सोने के चक्कर में मौका नही गवाऊंगा।
मै भी आपके साथ ही रहुंगा। मैंने कहा, मेरे लिए तो आप ही भगवान् हैं।
सोच लो आगे मुश्किलें बहुत होंगी। गुरुवर ने कहा, तुम्हारी नींद भी पूरी नही हुई है।
आप हैं तो मुश्किलों से डर नही। लेकिन मै आपके साथ ही रहुंगा।
गुरुवर सोच में पड़ गए। कुछ देर विचार मग्न रहे। फिर बोले ठीक बाजार से अपने लिए कुछ गर्म कपड़े खरीद लाओ।
जी। मै खुश हो गया और पूछा आपके लिये भी कुछ लाना है।
हाँ, मेरे लिए 4 मंकी कैप, कुछ इनर ले लेना। सर्दी बहुत अधिक हो तो गुरुदेव मंकी कैप का उपयोग करते हैं। मै बाजार की तरफ चला गया।
मेरे साथ चलने के कारण गुरुदेव ने अपनी योजना में थोड़ा बदलाव कर लिया था। शायद उन्हें आशंका थी कि तुरंत साधना यात्रा पर चल पड़ना मेरे लिये तकलीफदेह होगा।
सो मुझे एक दिन की साधना कराने के लिए गुप्त काशी में ही रुक गए।
साधना से पहले मुझे 4 घण्टे सोने का अवसर दिया।
ये मेरी पहली साधना थी। सही कहें तो साधना की दुनिया में ये मेरा पहला कदम था।
मेरी साधना बाबा विश्वनाथ मन्दिर के कम्पाउंड में हुई।
मेरी ऊर्जा को भगवान शिव की ऊर्जाओं से जोड़कर उन्हें मेरा गुरु बनाया। शिव गुरु से अपने सवालों के जवाब लेना सिखाया।
इसके साथ ही गुरुदेव ने वचन लिया कि गुरु के रूप में मै सदैव शिव गुरु को ही प्रथम रखुंगा। मेरी बहुत विनती के बाद उन्होंने अनुमति दी कि मै उन्हें भी गुरु मान सकता हूँ।
उस दिन गुरुदेव का एक और रहस्य पता चला। वो ये कि गुरुवर और उनके कुछ अध्यात्मिक मित्रों ने एक गुप्त अध्यात्मिक मिशन चला रखा है। जिसका उद्देश्य इस युग की ऊर्जाओं में ऐसे अनिवार्य बदलाव लाना है। जिनसे मानव जीवन का हित जुड़ा है।
दुनिया के हितार्थ जारी इस गुप्त मिशन में गुरुवर के कुछ सिद्ध अध्यात्मिक मित्र कार्यरत हैं। उनके कुछ खास शिष्य भी शामिल हैं।
मिशन के लोग अहंकार के दुर्गुण का शिकार न हो, इसलिये उनकी पहचान गुप्त रखी गयी है। वे अपने गुरुओं के सामान्य शिष्यों की तरह सबके बीच सीधे नही आ सकते।
मिशन में शामिल लोग ऊर्जा विज्ञान, तंत्र विज्ञान, अंक विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान, साधना विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान, वास्तु विज्ञान, खगोलीय विज्ञान, योग ध्यान विज्ञान सहित अध्यात्म की विभिन्न शाखाओं पर रिसर्च कर रहे हैं।
अनुसन्धान के निष्कर्षों के आधार पर मिशन के वरिष्ठ लोग मानव ऊर्जा के संरक्षण की तकनीक विकसित व् संशोधित करते हैं। गुरुवर के पास विकसित ऊर्जा तकनीक को लोगों तक पहुंचाने का भी दायित्व है। जिसे वे टी.वी. चैलनों के माध्यम से निभा रहे हैं। इसी कारण मै यहां उनकी पहचान उजागर कर पा रहा हूँ।
मिशन का उद्देश्य मानव जीवन को सरल बनाये रखना है। इसके लिये भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव ऊर्जा पर आधारित विश्व विद्यालय और शोध संस्थान की स्थापना भी की जानी है।
मैंने भी इस मिशन में शामिल होने की इच्छा जताई।
तुम्हारी क्षमताओं पर मुझे संदेह नही। गुरुदेव ने कहा, आज की साधना में सफल रहे तो तुम मिशन के हिस्सा होगे।
साधना से पहले गुरुवर ने मेरा अध्यात्मिक नामकरण किया।
मुझे अध्यात्म का नाम दिया, शिवांशु।
साधना से पहले गुरुदेव ने शक्तिपात करके मेरी ऊर्जाओं का विस्तार किया। किसी भी सिद्धी के लिये साधक की ऊर्जाओं का साधना के अनुकूल विस्तारित होना अनिवार्य होता है। मेरी कुंडली का जागरण किया। सिद्धी के लिये कुंडली का जागृत होना बहुत जरूरी होता है। फिर मुझे जागृत कुंडली से काम लेना सिखाया। सिद्धी की राह पर सफलताओं के लिये अत्यधिक जरूरी होता है कि साधक अपनी कुंडली शक्ति का मनचाहा उपयोग कर पा रहा हो।
उसके बाद शुरू हुई मेरी साधना। साधना लगातार 6 घण्टे की थी। गुरुवर की कृपा से पता भी न चला कि 6 घण्टे कब बीत गए।
मै सफल हुआ। सिद्धी का स्वाद चख लिया। जो अद्भुत था। अकथनीय था।
मेरे अवचेतन ने शिव तत्व स्वीकार कर लिया। मेरे भीतर के शिव का जागरण हुआ। शिवगुरु से आमना सामना हुआ।
मै मिशन का हिस्सा बना। प्रभात जी सहित गुरुवर के चार और शिष्य मिशन में उत्कृष्ट योगदान दे रहे हैं।
मुझे विश्वास है कि आपमें से भी कुछ लोग मिशन में शामिल किये जायेंगे।
तब उनसे हमारा आमना सामना होगा। मिशन के बारे में इससे ज्यादा जानकारी देने की इजाजत मुझे नही है।
अपनी साधना से पहले मैंने गुरुवर से पूछा था, इस जगह को गुप्तकाशी क्यों कहते हैं? क्या इसका बनारस वाली काशी से कोई रिश्ता है? यहां भी बाबा विश्वनाथ का मन्दिर होने का राज क्या है? क्या गुप्तकाशी का केदारधाम से कोई नाता है?
गुरुदेव ने अपनी साधना के लिये इस क्षेत्र को क्यों चुना? और आगे कैसी साधना करने वाले हैं? उसमें क्या मुश्किलें आने वाली हैं?
इन सवालों के जवाब मिले तो मै खो सा गया। बस सुनता ही रहा।
मेरी साधना की दुनिया का पहला कदम पूरा हुआ।
क्या आप उक्त सवालों के जवाब जानने के भी इच्छुक हैं!
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.