प्रणाम मै शिवांशु
अपनी साधना के लिये गुरुवर केदार धाम के पवित्र क्षेत्र को जा रहे थे. उनके साथ मै भी था. हम कार में थे. रात में पहाड़ी रास्तों का खतरा बढ़ जाता है. हमने रात में ही पहाड़ों पर चढ़ना शुरू किया.
अब आगे…..
आगे के रास्ते लगातार कठिन होते जा रहे थे.
ड्राइविंग के नजरिये से पहाड़ों के रास्ते खतरनाक होते हैं. एक तरफ पत्थरों को काटकर बनाई गयी ऊंची नुकीली पथरीली दीवारें रात में प्रेतों की तरह लगती है। तो दुसरी तरफ हजारों फिट गहरी खायी मौत की धौंस देती सी लगती है. गाडी चलाने वाला जरा सा चूका तो समझो मृत्यु.
वहां की सड़कें सकरी होती हैं. आमने सामने से आ रही गाड़ियां एक दूसरे को क्रास करते समय हमेशा ही खतरे में होती हैं. आप से गलती हो या सामने वाले से नतीजा मृत्यु के आस पास ही निकलता है. गाड़ी पथरीली दीवारों से टकराये या खायीं में जाये. परिणाम मृत्यु की तरफ ही जाते हैं.
खायीं में गिरने वाली गाड़ियों को तो ढूंढा भी नही जा सकता. और न ही उनमें सवार लोगों की लाशों.
जब भी वहां कोई वाहन खायीं में गिरता है तो उसी समय मान लिया जाता है कि उसमें सवार सभी लोग मारे गए. उनको तलाशने की कोशिश भी नही की जाती. क्योंकि गहरी खायीं में उतरकर लोगों को तलाशने का कोई रास्ता ही नही होता.
जैसे जैसे ऊंचाई बढ़ती है वैसे वैसे खतरे बढ़ते जाते हैं.
पहाड़ी चढ़ाई वाले रास्तों में लंडस्लाइडिंग का भी भारी खतरा होता है. पता ही नही चलता कब कहाँ कौन सा पहाड़ टूटकर गिरने लगेगा. ऊपर से टूटकर सड़क पर अचानक आ जाने वाले पत्थर बहुत घातक साबित होते हैं. ये पत्थर वाहन पर गिरें या वाहन के सामने. ज्यादातर ड्राइवर अपना संतुलन खो ही देते हैं. असन्तुलित गाड़ियां गहरी खायीं में जा गिरती हैं.
इन रास्तों पर होने वाली ज्यादातर दुर्घटनाएं इसी वजह से होती हैं.
रात में जंगली जानवरों का खतरा तो होता ही है. साथ ही सामने से आ रही गाड़ियों की लाइट की चमक भी खतरनाक होती है. इसी कारण सुरक्षा कर्मी ज्यादातर पहाड़ी रास्तों पर रात में आवागमन बन्द करा देते हैं.
इन रास्तों पर सामान्य चालकों को वाहन चलाने ली इजाजत नही. विशेष प्रशिक्षित ड्राइवर को ही पहाड़ों में गाड़ी चलने दी जाती है. क्योंकि किसी भी ड्राइवर की एक गलती तमाम लोगों की मौत का कारण बन सकती हैं. मै इन रास्तों पर बिलकुल नया था. गुरुवर जैसी ड्राइविंग कर रहे थे उससे लग रहा था की उन्हें इसकी बढ़िया प्रैक्टिस है.
ऐसा नहीं है कि पहाड़ी रास्ते सिर्फ डराते ही हैं.
वहां चलने का रोमांच भी गजब का होता है. चारो तरफ हरियाली. जगह जगह झरने. जंगली जानवरों की आवाजें. उनकी मौजूदगी. उनकी हलचल. नागिन की तरफ लहर खाते रास्ते. खायीं के नीचे बहती धाराएं. सब कुछ हर पल लुभाता है.
सच कहें तो पहाड़ो की छटा धरती का असली श्रृंगार है. उसको देखना दर्जनों विश्व सुंदरियों को निहारने से भी ज्यादा रोमांचकारी होता है.
बशर्ते गाड़ी की स्टेयरिंग सुरक्षित हाथों में हो. मै बिलकुल सुरक्षित हाथों में था. सो रोमांचक यात्रा का पूरा मजा ले रहा रहा था.
हम ऋषीकेश से खाटा की तरफ बढ़ रहे थे. तकरीबन 7 किलोमीटर चले होंगे, कि पुलिस बैरियर पर रोक लिये गए. वहां तैनात पुलिस अफसर ने बताया कि आगे पहाड़ों से उतरकर सड़क की तरफ हाथियों का एक झुण्ड आ गया है. इसलिये रात में किसी को भी उधर नही जाने दिया जायेगा.
हम वहां रुक गए. वो छोटा सा गांव था.
चाय की एक दुकान खुली थी. मैने गाड़ी से उतरकर चाय पी. दुकान वाले से पूछा तो उसने बताया कि हाथियों का खतरा कुछ ही देर का होता है. वे एक ही जगह रात भर नही रुके रहते.
मैंने गुरुदेव को इसकी जानकारी दी. उन्होंने कहा तुम चाय पी लो. फिर हम आगे बढ़ जायेगे. उनका इरादा जानकर मैंने पुलिस अफसर से आगे जाने देने की बात कही. मीडिया का परिचय देने पर उसने कहा आप अपनी रिस्क पर जाना चाहें तो जा सकते हैं. मगर मै इसकी सलाह नही दूंगा.
आप मेरा नं ले लें. जरा भी खतरा दिखे तो रुक जाना. मुझे कॉल करके बता दीजिये. मैंने नं का आदान प्रदान कर लिया.
फिर हम चल पड़े.
पुलिस अफसर का नाम पी. एस. गजरैला था. रास्ते में हाल खबर लेने के लिये उसका दो बार फोन आया. हाथियों वाली जगह पार करके मैंने भी उसे कॉल की. बता दिया कि अब रास्ता साफ है. कोई चाहे तो आ सकता है.
पहाड़ी रास्तों की ड्राइविंग बहुत थकाने वाली होती है. सो मुझे गुरुवर की चिंता हो रही थी.
मैंने एक जगह उनसे कहा मै ड्राइव कर लूँ.
अभी नही, वे बोले दिन में कोशिश करना.
तो कही रुक कर रेस्ट कर लेते हैं. मैंने कहा.
बस रुकना ही तो नही सीखा मित्र मैंने. निहायत ही फिलस्फरी अंदाज में जवाब दिया उन्होंने. जिसे सुनकर उनके साथ बिताये पत्रकारिता के पुराने दिन याद आ गए. तब वे इसी अंदाज में लोगों की चुटकी लिया करते थे. मौका मिलते ही वे अपने पत्रकार साथियों की मीठी चुटकी लेना नही छोड़ते थे. उनकी ये आदत सबको भली लगती थी. तब वे कहा करते थे इन्शान तो हंसने हंसाने का खिलौना है.
पुरानी यादों ने मन खुश कर दिया.
मैंने कहा मै आपका मित्र नही हूँ गुरुवर.
तो शत्रु भी तो नही हो. उनका जवाब था.
मेरा मतलब ये नही था. मै जल्दी जल्दी बोला. मै समझ गया कि मेरी चुटकी ली जा रही है. मैंने कहा मै तो आपके बच्चे जैसा हूँ. आपके चरणों में जगह चाहिये मुझे.
मै तो तुम्हें दिल में जगह देने वाला था. तुमने पैर मांग लिए. शक्ल से अर्जुन तो लगते नही.
मै जान गया कि नींद से बचने के लिये गुरुवर ने बतियाना शुरू कर दिया है. मुझे मौका मिल गया उनसे बातें करने का.
आधी रात पार हो चुकी थी. हम दोनों ऐसे बात कर रहे थे जैसे नींद पूरी करके तरोताजा हों.
बातें चलती रहीं. सफर कटता रहा.
रास्ते में एक जगह पहाड़ी भेड़ियों की वजह से रुकना पड़ा. वे चार थे. एक चीतल का शिकार कर लिया था. उसे खींचकर सड़क पर से दुसरी तरफ ले जा रहे थे. गुरुदेव ने उनके दिखते ही गाड़ी रोक दी. और लाइटें बन्द कर दीं.
भेड़िये जब झुण्ड में होते हैं, तब बहुत खतरनाक हो जाते हैं. उस समय उनमें शिकार करने की तीव्रता जग जाती है. ऐसे में वे इन्शानो का भी शिकार करने से बाज नही आते.
जब लगा कि भेड़ियों का झुण्ड जा चुका है.
तब हम आगे बढ़े.
हम गुप्त काशी की तरफ जा रहे थे.
…. क्रमशः
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.