साधना की दुनिया में पहला कदम-1

प्रणाम मै शिवांशु,

अब इस ग्रुप में बने रहना आपके लिये गर्व की बात होगी।

क्योंकि ग्रुप में सिद्धिया अर्जित करने योग्य साधक ही बचेंगे। कुछ लोगों का उर्जा क्षेत्र साधनाओं के अनुकूल नही मिल रहा है। उन्हें ग्रुप से रिमूव किया जा रहा है। उन लोगों को भी अलग किया जा रहा है, जिनकी ग्रुप में सक्रियता कम रहती है। ये माना जा रहा है कि शायद उन्हें साधनाओं में दिलचस्पी नही है। उनके हटने से नये साधकों को स्थान मिल सकेगा।    

मै उन साथियों से क्षमा चाहता हूं। जिन्हें शिव साधक ग्रुप से हटाया जा रहा है। वे महासाधना, सुपर सलूशन व शिव चर्चा ग्रुप में रहकर अपनी उर्जाओं का विस्तार करते रह सकते हैं।

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अब मै आपको बताउंगा कि साधना की दुनिया में पहले कदम पर मुझे क्या क्या फेस करना पड़ा। क्या क्या असुविधायें सामने आयीं और कि किन दुविधाओं ने राह से भटकाने की कोशिश की। शायद मेरे अनुभव आपकी साधनाओं में काम आ सकें।

बात तब की है जब मैने गुरुदेव को पहली बार एक अखंड साधना करते देखा। उनके संयम, उनके तेज ने मुझे बहुत लुभाया। उनसे अखंड साधना के मायने पूछे। जो जवाब मिला वो और भी सम्मोहक था। बस मैने तय कर लिया कि मै भी साधनायें करुंगा।

गुरदेव से कह दिया *मै आपके साथ ही रहकर तपस्वी बनूंगा*। ने मुस्करा दिये। जैसे मैने कोई बचपना कर दिया हो।

कुछ दिनों बाद गुरुवर ने केदारनाथ जाकर एक साधना करने की तैयारी की। बातों बातों में मुझे बता दिया। तो मैने भी साथ जाने की जिद कर ली। वे ना ना करते रहे मै उन्हें मनाता रह।

एक दिन हम लखनऊ के अमीनाबाद में टहल रहे थे। गुरुवर को वहां से कुछ बुक्स लेनी थीं। अचानक ही उन्होंने मुझसे कहा अपने घर काल करो।

उन दिनों परिवार के सभी लोग मारीसस में थे।

मैन मोबाइल से वहीं काल लगा दी। रिंग जाने लगी तो मोबाइल गुरुवर को पकड़ा दिया। दूसरी तरफ से मां ने काल पिक की। गुरुदेव ने उनसे कहा ये कुछ दिन मेरे साथ हैं, फोन बंद मिले तो परेशान न होना।

फिर बाजार से बाहर आकर गाड़ी में बैठ गये। मुझसे कहा मार्केट से अपने लिये कुछ कपड़े खरीद लो।

कितने, मैने पूछा?

10 दिन के। उन्होंने कहा और आंखें बंद करके सीट से पीठ टिका ली।

मै समझ गया, लांग ड्राइव का प्रोग्राम है। मगर अचानक? अभी आधे घंटे पहले तक तो एेसी कोई योजना न थी। सुबह से मै साथ था तब तो इसके कोई संकेत दिये नहीं।

इस सवाल का जवाब मै खुद से ही पूछता रहा। क्योंकि मै जानता था कि कार की सीट पर आराम के लिये मुंदी उनकी आंखे मेरे सवाल का जवाब देने के लिये नही खुलेंगी। सवाल का जवाब तो न मिला, मगर मै कपड़े खरीद लाया। पीछे की सीट पर रख दिये।

उन्होंने पूछा डी.एल. और गाड़ी के पेपर हैं?

मैने कहा हां।

वे बोले चलो।  

कहां? मैने पूछा।

उनका जवाब सुनकर भौचक्का रह गया। वे केदारनाथ जाने की बात कर रहे थे। वह भी कार से। वह भी अचानक बिना किसी तैयारी के।

मैने गाड़ी सीतापुर रोड की तरफ मोड़ दी। तय हुआ कि बरेली होते हुए जाएंगे।

सड़क पर कार जिस रफतार से दौड़ रही थी। मेरे दिमाग में सवालों की रफतार उससे भी कहीं तेज थी। ….. क्रमशः

सत्यम् शिवम् सुंदरम्

शिव गुरु को प्रणाम

गुरुवर को नमन.

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