प्रणाम, मैं शिवांशु
गुरुदेव कल से लखनऊ में हैं.
पिछले दिनों उनके निर्देशानुसार मैंने यक्षिणी सिद्ध कर ली. ये सिद्धी मुझे चौथे प्रयास में प्राप्त हो सकी. क्योंकि बीच में दो बार मामूली सी चूक के कारण मुझे साधना बीच में छोड़नी पड़ी थी. काफी सख्त हो जाते हैं गुरुवर जब वे उच्च साधनाएं करा रहे होते हैं. किसी भी गलती को माफ़ नही करते. उनका मानना है कि गलतियां करने वालों को उच्च साधनाओं से दूर कर दिया जाना चाहिये. क्योँकि वे सिद्धी मिलने पर चूक या दुरूपयोग कर सकते हैं.
चूक मैंने फिर कर दी है.
सिद्ध होने पर यक्षिणी सामने आकर जीवन भर साथ रहने का प्रस्ताव रखती है. इसके लिये पूछती है कि आप उसे माँ, बहन या प्रेमिका में से किस रूप में स्वीकार करेंगे. प्रत्यक्षीकरण के दौरान उनके अद्वितीय रूप के वश में हो गया. सम्मोहन के कारण प्रेमिका रूप में स्वीकार कर लिया. गुरुदेव का पूर्व निर्देश था कि प्रत्यक्षीकरण के दौरान माँ के रूप में ही सहमति दूँ.
पर मै चूक गया. गुरुवर इस बात से खुश नही हैं. मुझे सिद्धी का त्याग करना होगा. हलांकि ये सिद्धी मेरा सपना थी. पर जो गुरुवर को पसंद नही वो मेरे लिये किसी काम का नही.
मन में ओवरकांफिडेंस था कि गुरुदेव मुझे अत्यधिक स्नेह करते हैं. वे मेरे फैसले को मान लेंगे.
मगर वे वो कुछ भी स्वीकार नही करते जिसमें उनके शिष्यों के अहित की आशंका हो. मुझे पता है उनका हर फैसला मेरे हित में ही होगा. मन में कुछ बेचैनी तो है मगर खुद को सिद्धी से अलग करने को तैयार हो चुका हूँ.
ये प्रसंग आपके साथ इसलिये शेयर कर रहा हूँ क्योंकि आप में से कई लोग गुरुवर के निर्देशन में उच्च साधनाएं करना चाहते हैं. आप भी कोई चूक करके गुरुदेव के परीक्षण में फेल न हो जाएँ. शायद मेरी आप बीती आपके काम आ सके.
उच्च साधनाओं की कुछ खास बातें लिख रहा हूँ ध्यान रखियेगा…
1. उच्च साधक कभी भी एक क्षण के लिये भी अपने मार्गदर्शक गुरु व् उनके फैसलों पर रंच मात्र भी दिमाग नही लगाते. उनका कहा सब कुछ अक्षरशः कर गुजरते हैं.
2. जब तक पात्रता पूर्ण नही होती तब तक गुरुदेव उच्च साधना शुरू नही कराते. चाहे कितना ही समय क्यों न लग जाये. सो साधना के लिये उतावलापन न दिखाएँ. यक्षिणी साधना के लिये मैंने 4 साल इंतजार किया. अब मुझे पता है सिद्धि छोड़ने के बाद दोबारा इसे कभी सिद्ध न कर सकुंगा. मगर ये भी जनता हूँ कि गुरुवर से इसके बदले कुछ बड़ा ही मिलेगा.
3. अगर कभी किसी भी कारणवश, किसी भी मुद्दे पर अपने मन में गुरुवर के प्रति कोई शक, आशंका, दुविधा को जगह दी है या दी थी तो शांत होकर बैठ जाएँ. वे आसानी से आपको उच्च साधना नही कराने वाले. क्योँकि साधना के दौरान जब भी आपकी एनर्जी का परीक्षण होगा तभी उसमें क्लॉटिंग मिलेगी. उससे पता चल जाता है कि आपकी गुरुवर के प्रति क्या क्या धारणा रही है.
इस क्लॉटिंग को हटाने के लिये गुरुवर कभी भी दिलचस्पी नही दिखाते, क्योँकि उनके पास पहले ही उच्च साधनाएं करने वालों की लम्बी लाइन लगी है. इस क्लॉटिंग को हटाने की जिम्मेदारी आपकी ही है. गुरुदेव इसमें आपकी मदद बिलकुल न करेंगे. बल्कि अगर आपने इसके लिये उनपर दबाव बनाया तो वे आपसे दूरी बना लेंगे.
4. सबसे महत्वपूर्ण बात-
उच्च साधना के दौरान ध्यान रखें, साधना में लगने वाली सामग्री या व्यवस्था पर एक रूपये भी गुरुवर का या किसी और का खर्च न होने पाये. अगर किसी का धन आपकी साधना पर लगा है तो उसे तत्काल अदा करें. अन्यथा सिद्धि आपके हिस्से में नही आने वाली. और तो और अगर एक छोटा सा आसन तक किसी दूसरे के धन का उपयोग किया तो आप सिद्धी के हकदार नही. ऐसे में साधना की एनर्जी आपकी तरफ आकर्षित होने से इंकार कर देती है.
5. उच्च साधना के दौरान परोपकार की भावना मन में हर पल बनाये रखें. इससे गुरुवर की एनर्जी आपकी एनर्जी से मैच करेगी. उनकी एनर्जी मैच होने से सिद्धी मिल ही जाती है.
इस बारे में कोई और सवाल हो तो पूछ लें. उचित समय पर मै जवाब दूंगा.
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.