मृत्यु शैय्या से वापसी
टीम मृत्युंजय योग का आप सभी को राम राम…
जून की गर्मी थी. गुरुदेव दो दिन के लिये लखनऊ पहुंच रहे थे. मै उन्हें लेने एयरपोर्ट पहुंच गया. वहां से घर जाने की बजाय उन्होंने अलीगंज के एक हास्पिटल चलने को कहा. मैने गाड़ी उधर ही मोड़ दी. हास्पिटल पहुंचे तो वहां गुरुवर के एक डाक्टर मित्र ए.के. मिश्रा इंतजार करते मिले. डा. मिश्रा के साथ हम प्राइवेट वार्ड में गये. जहां उनके एक रिश्तेदार एडमिट थे. वे भी पेशे से डाक्टर ही थे. डा. मिश्रा ने बताया उनके रिश्तेदार का नाम डा. प्रदीप तिवारी है. कुछ दिनों पहले उन्हें ब्रेन हैम्ब्रेज हुआ. 6 दिन से बी.पी. बेकाबू है. बड़े से बड़े डाक्टरों का परामर्श और अच्छी से अच्छी दवाईयां बेअसर हो रही हैं. अब बढ़ा हुआ बी.पी. किडनियों और लीवर को भी डैमेज कर रहा है. पैरलाइज हो जाने का खतरा हर क्षण बना है. हम डॉक्टर लोग उम्मीद छोड़ चुके हैं. अब आप कुछ मिरैकिल कर सकें तो डॉ तिवारी का परिवार बर्बाद होने से बच जायेगा। उनके बच्चे अभी बहुत छोटे हैं।
उस समय उनका बी.पी. ऊपर का 167 और नीचे का 119 था. पल्स रेट 103 थी. डा. मिश्रा ने कहा किसी तरह बी.पी. कंट्रोल हो जाये तो शायद डा. तिवारी की जान बचाई जा सकती है.
गुरुवर ने मुझसे मरीज का चेहरा ठीक से देखकर याद कर लेने को कहा. उसके बाद डा. मिश्रा से बोले हमें आधे घंटे का एकांत चाहिये. डा. मिश्रा हमें हास्पिटल के एक सीनियर डा. के कमरे में ले गये. डा. तिवारी का इलाज उन्हीं के अंडर में चल रहा था.
सीनियर डॉक्टर को हमारे वहां आने का मकसद पता चला तो बुरा सा मुंह बनाकर गुरुवर के मित्र से बोला डॉ मिश्रा कहां आप इन सब चक्करों में पड़ गए। मै नही मानता इस तरह की चीजों को। वह बेझिझक कहता जा रहा था, मुझे तो ये सब पाखण्ड लगता है और मुझे ऐसी बातों से चिढ़ होती है।
मुझे उस डाक्टर का रियेक्शन बहुत बुरा लगा. मगर गुरुदेव मुस्कराये और कहा हमें 30 मिनट की शांती चाहिये. डॉ मिश्रा के अनुरोध पर वह डॉक्टर शांत तो हो गया, मगर हावभाव से ऐसा प्रकट कर रहा था जैसे हम अपराधी हों और वह हमें सजा देने वाला हो।
गुरुवर उसकी हरकतों को तबज्जो दिए बिना मुझे संजीवनी उपचार के निर्देश देने लगे.
बी.पी. का विश्लेषण-
सबसे पहले गुरुवर ने मुझे बी.पी. गड़बड़ाने के सम्भावित कारण बताये. इसका मुख्य कारण भावनात्मक होता है. चिंता, तनाव, भय, बदले की भावना और लम्बा दुख बी.पी. बिगाड़ता है. मिलावटी व स्पाइसी खान पान और सामाजिक संस्कार बिगड़ने के कारण ये बीमारी आम हो चली है. इसके कारण लोगों को बात बर्दास्त नहीं होती, गुस्सा बेकाबू होता है. किडनी, लीवर, हृदय रोग और पक्षाघात होने का खतरा रहता है.
वायवीय रुप से नाभी के पीछे पीठ पर मौजूद मेंगमेन चक्र के बड़ा हो जाने से बी.पी. बढ़ता है और छोटा होने से कम होता है.
नकारात्मक भावनायें मणिपुर चक्र को दूषित लाल उर्जा से जाम कर देती हैं. ये दूषित उर्जा किडनी के रास्ते रिसती हुई मेंगमेन चक्र पर इकट्ठी हो जाती है. जिससे मेंगमेन का आकार बढ़ जाता है. वायवीय रूप से मेंगमेन का बड़ा हो जाना ही बी.पी. बढ़ने का एक मात्र कारण होता है.
शारीरिक रूप से किडनी की अक्षमता, लीवर की अक्षमता, हृदय की गड़बड़ी, केलेस्ट्रान का बढ़ना, रक्त धमनियों में जमाव इस रोग का कारण हो सकता है. उर्जा के विश्लेषण के दौरान कई बार थायराइड का बढ़ाना भी इसका कारण मिलता है.
बढ़ा हुआ बी.पी. हर क्षण हमारे शरीर के अंदरूनी सिस्टम को क्षतिग्रस्त कर रहा होता है.
ये कब मृत्यु का कारण बन जाये कुछ पता नहीं.
मेडिकल साइंस इसे कंट्रोल तो कर सकता है, मगर खत्म नही कर पाता. इसकी दवाएं जीवन पर्यन्त खानी पड़ती है। क्योंकि बी.पी. दिखने वाले शरीर का नहीं बल्कि न दिखने वाले परमार्थिक शरीर का रोग है.
दवाइयां स्थुल शरीर पर काम करती हैं. सूक्ष्म शरीर पर नहीं. इसी कारण दवाओं से ये रोग खत्म नहीं होता।
संजीवनी उपचार की तकनीक से बी.पी. को हमेशा के लिये खत्म किया जा सकता है. हमारे वेद पुराणों में परमार्थिक शरीर के उपचार की विधियां करोड़ों साल पहले लिखी गईं. जो आज भी पूरी तरह कारगर हैं.
गुरुदेव निर्देश देते रहे और मै उनका पालन करता रहा. इस बीच गुरुवर मरीज की उर्जा को लगातार स्कैन करते जा रहे थे. लगभग 25 मिनट बाद गुरुदेव ने टेबल पर रखा कागज पेन उठाया और उस पर लिखा 130, 85 और 97. ये डा. तिवारी के बी.पी. की संजीवनी उपचार के बाद की रीडिंग थी. जिसे गुरुवर ने ब्लड प्रेसर मशीन का उपयोग किये बिना मेंगमेंन चक्र और हृदय के पेसमेकर को स्कैन करके लिखा था.
ऊपर का बी.पी. 130, नीचे का बी.पी. 85 और पल्स रेट 97. गुरुदेव ने कागज पर प्लस, माइनस के चिन्ह लगाकर 3 लिखा. जिसका मतलब था इस रीडिंग में 3 अंक कम या ज्यादा हो सकते हैं. जिस ब्लड प्रेसर को डॉ 6 दिनों से कंट्रोल नही कर पा रहे थे। जिसके कारण डॉ तिवारी मृत्यु शैय्या पर थे। संजीवनी उपचार से वह अब कंट्रोल हो चुका था।
गुरुदेव ने कागज सीनियर डाक्टर के सामने रख दिया और डा. मिश्रा से कहा मरीज के बी.पी. की ताजी रिपोर्ट मंगवाइये. नर्स को भेजा गया. उसने जो रिपोर्ट लाकर दी उस पर सीनियर डाक्टर को यकीन नहीं हुआ. वह अपनी सीट से उठा और लगभग भागता हुआ वार्ड में गया. अपनी आंखों से बी.पी. की रीडिंग चेक की. जब कमरे में लौटा तो हैरान.
नर्स बी.पी. की जो करेंट रिपोर्ट लायी थी वह 132, 85 और 99 थी. जो कि सही थी।
अब डा. तिवारी खतरे से बाहर हैं. गुरुदेव ने कहा और सीट से उठकर चल दिये.
आश्चर्य में डूबे सीनियर डाक्टर ने नतमस्तक होकर गुरुदेव से माफी मांगी और कहा एेसा कैसे कर लिया आपने. ये कैसी साइंस है? न मरीज को छुआ न कुछ खिलाया, न इंजेक्ट किया। फिर भी जो हम न कर सके वो आपने यहां मरीज से दूर बैठे बैठे कर लिया, कैसे ? हम तो उम्मीद ही छोड़ चुके थे. बस फारमेलिटी के लिये डा. तिवारी को भर्ती कर रखा था. बी.पी. कंट्रोल हो गया अब हम उन्हें बचा लेंगे. मै आपसे बहुत सी बातें करना और जानना चाहता हूं. आप प्लीज बैठिये.
आज नही गुरुदेव ने कहा और कमरे से बाहर निकल गये. डा. मिश्रा भी उनके साथ बाहर आ गये. सीनियर डाक्टर लगभग गिड़गिड़ाते हुए गुरुवर से रुक जाने का आग्रह कर रहा था. मगर वे नही रुके.
दूसरे दिन वह डा. मिश्रा के साथ गुरुदेव से मिलने उनके घर आया.
आगे मै आपको बताऊंगा कि डॉ तिवारी का बी पी कंट्रोल करने के लिये मैंने किन चक्रों को और कैसे ठीक किया?
ये भी बताऊंगा कि आप ऐसे रोगी को कैसे ठीक करें।
क्रमशः
( शिवांशु जी की ई बुक से साभार….)