मृतात्मा से मेरा पहला सम्पर्क..2
राम राम मै शिवांशु
सुभाष के शरीर छोड़ चुके गुरु से सम्पर्क के लिये एक शांत कमरे को तैयार किया गया.
मै भी तैयार हुआ. कमरे में सुभाष, गुरुदेव, उनके मित्र और मै था. गुरुवर ने फूलों का एक खाली आसन भी तैयार कराया था.
सुभाष के गुरु को बुलाने से पहले गुरुवर ने मुझसे कहा मै सुभाष के आज्ञा चक्र में टाइम मशीन का निर्माण करूं. और पता लगाउं कि वास्तव में उसने अपने गुरु के साथ क्या गड़बड़ियां कर रखी हैं. ताकि समाधान का स्तर तय किया जा सके.
मैने कुछ देर लम्बी और गहरी सांस ली. फिर अपने आज्ञा चक्र से सुभाष के आज्ञा चक्र में प्रवेश करके उसे अपने नियंत्रण में लेनेे का आग्रह किया. कुछ मिनटों बाद सुभाष का आज्ञा चक्र में नियंत्रण में था. मैने उसे निर्देश दिया कि पुरानी जानकारी के लिये टाइम मशीन का निर्माण करे. जिसकी न्यूनतम रफ्तार एक माह हो.
उसके आज्ञा चक्र ने वैसा ही किया. मुझे उसके गुजरे समय के संदेश मिलने लगे. मगर उन्हें डिकोड करने में असुविधा हो रही थी. शायद सुभाष अपने विचारों को नियंत्रित कर रहा था. मैने आंखें खोल लीं और गुरुदेव की तरफ देखा.
वे समझ गये. और कहा उसके सब कांसियस माइंड़ को भी इन्वाल्व करो.
मैने लम्बी और गहरी सांस लेकर आंखें बंद कर लीं. गुरुदेव के निर्देश का पालन किया. संदेश सपष्ट होने लगे. एक अस्पताल का दृश्य दिखा. जहां डाक्टर 6 लाख रुपये की मांग कर रहा था. मगर सुभाष ने उसे देने से इंकार कर दिया. फिर एक मृत शरीर दिखा. जिसके पास रोने वालों में सुभाष भी था. ये शव सुभाष के गुरु का था.
मैने टाइम मशीन का अंतराल बढ़ाया. पहले महीने की अवधि में कुछ नहीं दिखा. दूसरे और तीसरे महीने के अंतराल में कई दृश्य दिखे. जिनमें सुभाष का चार लोगों से बार बार विवाद हो रहा था. उनमें दो महिलाएं और दो पुरुष थे. एक पुरुष अधिक उम्र का था. वह सुभाष पर 23 लाख की बेइमानी का आरोप लगा रहा था. वह उसके गुरु के बहनोई थे. दूसरा युवा था जो सुभाष पर प्लैट हड़पने का आरोप लगा रहा था. वह उसके गुरु का बेटा था. महिलाओं में एक गुरु की पत्नी और दूसरी बहु थी.
मैने आंखें खोल लीं और बताया कि सुभाष उनके इलाज के समय पीछे हट गया. जिसके सदमे से उनकी मृत्यु हुई. साथ ही उसने अपने गुरु के बहनोई से 23 लाख की बेइमानी की है. उनके बेटे का फ्लैट हड़प लिया है.
गुरुदेव ने सुभाष से कहा अब बाकी बातें आप बताएंगे या हम ही पता करें.
वह रो पड़ा और बताना शुरू किया। उसके गुरु का नाम पालकी दास था. सब उन्हें भगत जी के नाम से जानते थे. वे देवी के साधक थे. गद्दी लागाते थे. लोगों के दुख दूर करने की सामर्थ्य उनमें थी. उनके बहनोई का नाम सुरेंद्र और बेटे का नाम बिट्टू भगत है. वे दोनों भी देवी के साधक हैं. भगत जी के कहने पर उसने सुरेंन्द्र को अपने कुछ ठेकों में 6 परसेंट का हिस्सेदार बनाया था.
भगत जी देवी को शराब की भेट चढ़वाते थे. प्रसाद के रूप में उसका सेवन भी करते थे. कुछ साल पहले उनकी किडनी खराब हो गईं. डेढ़ साल वे डायलिसिस पर रहे. मुम्बई के डाक्टरों ने किडनी बदलकर उन्हें बचाने का भरोसा दिलाया। 16 लाख का खर्च था. सुभाष ने इलाज का खर्च उठाने का वादा किया था. मगर अस्पताल में एेन वक्त पर उसने एडवांस के 6 लाख रुपये जमा करने से इंकार कर दिया. जिससे इलाज शुरू ही नहीं हो सका. मुम्बई से वापस लाते समय भगत जी ने शरीर छोड़ दिया.
सुभाष ने कहा कि उसकी मति मारी गई थी. उसे लगा कि जब भगत जी खुद को नहीं बचा सकते तो अब मेरा क्या भला करेंगे. मै तो खुद ही देवी जी को सिद्ध कर चुका हूं. इसीलिये इलाज का खर्च देने से पीछे हट गया. जबकि चाहता तो उन पर दो चार करोड़ रुपए खर्च कर सकता था. भगत जी ने अपने तंत्र का उपयोग करके उसके कई दुश्मनों को रास्ते से हटाया था. वरना या तो वह मार दिया गया होता या भारी नुकसान का शिकार होता.
भगत जी की बीमारी के दौरान सुरेंद्र काम पर नहीं आये. सुभाष ने बताया कि जो 23 लाख रुपए वे मांग रहे हैं वो उसी दौरान का हिस्सा है. उसने स्वीकारा कि हिस्सेदारी खत्म होने की घोषणा कभी नहीं हुई.
भगत जी को खुश करने के लिये उसने बिट्टू भगत के लिये नोएडा में एक फ्लैट बुक कराया. जिसमें 20 लाख बिट्टू ने दिये और 20 लाख की मदद सुभाष ने की. भगत जी को सुभाष पर पूरा भरोसा था, सो भागदौड़ से बचने के लिये फ्लैट की लिखापढ़ी उसी के नाम करा दी. अब उस फ्लैट की कीमत डेढ़ करोड़ से अधिक है. भगत जी के मरने के बाद वह पलट गया. बिट्टू भगत को फ्लैट देने से मना कर दिया. उससे कहा कि बैंक के ब्याज सहित अपना पैसा वापस ले लों.
सुभाष ने स्वीकारा कि उसने अपने गुरु और गुरु परिवार को धोखा दिया.
अब वह प्रायश्चित को तैयार था.
गुरुदेव ने मुझसे कहा अब बुलाओ भगत जी को. मगर पहले अपना सुरक्षा कवच हटा दो. मैने अपना सुरक्षा कवच हटाकर ब्रह्मांड में फेंका और भगत जी को बुलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी.
आगे मै आपको बताउंगा संजीवनी उपचार के दौरान शरीर छोड़ चुके लोगों को कैसे बुलाया जाता है.
और क्या हुआ जब भगत जी आये.
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिवगुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.