…. और मुझे अप्सरा से प्यार हो गया.
राम राम मै शिवांशु
सिद्धी के बाद गुरुवर के जरूरी दिशा निर्देशों के साथ मै दिल्ली से वापस लौट गया. गुरुवर ने जरूरत पड़ने पर सिद्ध अप्सरा को अपने पास बुलाने का तरीका सिखा दिया था.
घर पहुंचते ही मैने उसे अपनाया. अप्सरा आ गई. फिर मै उसे अक्सर बुलाने लगा. उसका आना, बातें करना, हंसना, इठलाना और उपहार में अपने कुछ आभूषण देकर जाना, मुझे बहुत अच्छा लगता था. उसके सामने धरती की सारी सुंदरियां फीकी लगने लगीं, पत्नी भी.
धीरे धीरे मुझ पर अप्सरा की दीवानगी छा गयी. मुझे उससे प्यार हो गया. दिन में जब तक दो तीन बार उसे बुलाकर मिल नहीं लेता जब तक कुछ अच्छा ही नही लगता था. उसका साथ ही दुनिया का सबसे जरूरी काम लगने लगा. मै अपने में ही मस्त रहने लगा. न काम की सुध, न पत्नी से लगाव, न बच्चे की फिक्र.
मै जरूरत से ज्यादा खुश था. मगर मेरे अपने मेरे रवैये से दुखी होने लगे.
एक दिन तो पत्नी ने मजाक में कह ही डाला * लगता है कोई हूर या परी आ गई लाइफ में, तभी मेरी तरफ तो देखना भी बंद कर दिया.
मै उसकी बात को टाल गया. मगर मजाक में ही सही, उसने सच्चाई कह दी थी.
मेरी दीवानगी बढ़ती गई. एक समय एेसा आ गया, जब मै होटल में कमरा लेकर रहने लगा. वहीं सुबह अप्सरा को बुला लेता. दिन भर उससे बातें करता. उसके साथ रहता. देर रात घर लौटता. आते ही सो जाता. मगर मैने गुरुवर का आदेश नहीं तोड़ा.
एक माह गुजर गया.
एक दिन पत्नी ने बताया * गुरुदेव ने कहा है कि मै उनसे बात कर लूं.
गुरुदेव ने कहा है, मै थोड़ा विस्मय से बुदबुदाया था. क्योंकि गुरुवर की आदत है कि वे अपने शिष्यों से सम्पर्क नहीं करते. सबको आजादी देकर रखते हैं. जब जरुरत होती है तो हम लोग ही उनसे सम्पर्क करते हैं. मै समझ गया, कुछ गड़बड़ हो गई.
पत्नी से पूछा तो उसने बताया कि * हां मैने ही गुरु जी को फोन करके बताया था कि आजकल आप किसी और ही दुनिया में रह रहे हैं.
पिटवाने का इंतजाम किया है तुमने, मैने पत्नी से कहा और गुरुवर से बात करने के लिये काल करने लगा. गुरुवर ने कहा वे लखनऊ पहुंच रहे हैं मै तुरंत आकर मिलूं. साथ ही वे सारे आभूषण और रसायन (औषधियां) लेता आऊं जो अप्सरा द्वारा मुझे दिये गए थे. अप्सरा ने मुझे कुछ रसायन भी दिये थे. जिनका सेवन करने से उम्र बढ़ जाती है, यही नहीं चेहरे पर बढ़ती उम्र के लक्षण भी थम जाते हैं.
मै गाड़ी खुद ड्राइव करके लखनऊ पहुंचा. तब शाम के 7 बजे थे. गुरुवर गाड़ी में बैठ गए और बोले चलो.
मैने पूछा कहां. तो बोले लांग ड्राइव पर. फिर उन्होंने कानपुर की तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ इशारा किया. मैने गाड़ी उधर ही मोड़ दी.
वे आंखें बंद करके पीछे की सीट पर बैठ गये. मैने पूछा लगता है आप बहुत थके हैं.
हां, बहुत. उन्होंने छोटा सा जवाब दिया. मै समझ गया अभी बात करने के मूड में नहीं हैं. चुपचाप गाड़ी चलाता रहा. डेढ़ घंटे बाद हम कानपुर के जाजमऊ गंगा पुल पर पहुंचे.
उन्होंने कहा गाड़ी रोकों. मैने पुल पर साइड में गाड़ी रोक दी.
वे गाड़ी से उतरे. गंगा मइया को प्रणाम किया. गाड़ी में लौटे. पिछली सीट पर रखे बैग की तरफ इशारा करके पूछा यही है. उस बैग में अप्सरा द्वारा मुझे उपहार में दिये गए आभूषण थे. जो सोने और हीरे जवाहरात के थे. सामान्य बाजार में उनकी कीमत करोड़ों में होती. लेकिन एन्टीक मार्केट में वे कई सौ करोड़ के होते.
मेरी योजना थी कि उन आभूषणों से मिलने वाली कीमत से गुरुवर का शानदार आश्रम बनवाउंगा. जहां पहुंचकर हजारों, लाखों लोग गुरुवर की सिद्धियों का लाभ उठा सकें.
मैने कहा ये आश्रम का निर्माण करने के लिये हैं.
हूं. उन्होंने गम्भीरता से कहा और बैग उठा लिया. गाड़ी से नीचे उतर गये. फिर जब तक मै कुछ समझ पाता, बैग गंगा में फेंक दिया. फेंकने से पहले एक बार देखा तक नहीं कि उसमें क्या और कितना है.
मुझे एेसा लगा जैसे मै लुट गया.
गुरुवर आकर गाड़ी में बैठ गये. बोले आनंदेश्वर मंदिर चलो.
मैने गाड़ी आगे बढ़ा दी. गुरुवर के गुस्से का अंदाज हो गया था मुझे. मैने धीरे से कहा वे जेवरात तो मैने आश्रम निर्माण के लिये इकट्ठे किये थे.
समय आने पर आश्रम अपने आप बन जायेगा. गुरुवर ने कहा और आंखें बंद करके सीट से पीठ टिका ली.
मंदिर में शिवार्चन करने के बाद गुरुवर मुझे साथ ले जाकर गंगा किनारे बैठे. बोले मेरी तरफ देखो और वचन दो कि अगली बार जब अप्सरा से मिलोगे तो उससे वही कहोगे जो मै चाहता हूं.
मैने उन्हें वचन दिया. फिर आंखें बंद कर ली. और मन में सोचने लगा जेवरात गए तो गए मगर सही मायने में तो अब मै लुटने वाला हूं. गुरुवर ने मेरे अवचेतन मन की प्रोग्रामिंग कर दी. तब मुझे नहीं पता थी कि उन्होंने मेरे दिमाग में क्या लिखा.
दो दिन बाद मैने अप्सरा को फिर बुलाया. थोड़ी देर बातें कीं. उसी बीच मेरे मुह से अनायास ही निकल पड़ा * मुझे अब आपकी जरुरत नहीं. मैने आपसे जो वचन लिया था. उससे मुक्त करता हूं. अब आप मेरी तरफ से मुक्त हैं.
मै समझ गया, गुरुवर ने उस दिन मेरे दिमाग में यही लिखा था.
अप्सरा मुस्करायी और विलुप्त हो गई. मै जान गया अब वह मेरे बुलाने पर नही आयेगी.
मेरे दिल दिमाग से अप्सरा की दीवानगी तो खत्म हो गई. मगर मन उदास हो गया और बेचैन भी.
शाम को घर पहुंचा. और पत्नी से बोला चलो आज मूवी देखकर आते हैं.
अप्सरा की सिद्धी को शास्त्रों में गंधर्व कन्या या नायिका की सिद्धी कहा जाता है. ये गंधर्व लोक की सुंदरियां हैं. स्वभाव से बहुत ही भोली होती हैं. इनकी सुंदरता पूरे ब्रह्मांड में जानी जाती है. मेनका, उर्वसी, रम्भा, रत्नमाला, शुभगा आदि अप्सरायें सबने सुनी होंगी. इनकी प्रजातियों में कई और भी नाम हैं. ये हजारों साल की उम्र की होकर भी हमेशा युवा और सुंदर ही दिखती हैं. अप्सरायें नाचने, गाने ने दक्ष होती हैं.
धरती पर तमाम एेसे सिद्ध साधक हैं जो इन्हें सिद्ध करके पत्नी या प्रेमिका की तरह अपने साथ रखते हैं. महिलायें भी इन्हें सिद्ध कर सकती हैं. तब ये उनके साथ अच्छी सहेली की तरह रहकर उनका सहयोग करती हैं.
हो सकता है आपमें से भी कुछ लोगों ने अप्सरा साधना की होगी.
कुछ लोग तो जीवन भर अप्सरा को सिद्ध करने की साधना में लगे रहते हैं.
मगर ध्यान रखें जब तक आपके शरीर की उर्जा नाड़ियां स्वच्छ व सीधी नहीं होंगी, तब तक कोई भी साधना सिद्ध नही हो सकती.
साधना के समय बड़ी मात्रा में उर्जायें प्राप्त होती हैं. एेसे में यदि उर्जा नाड़ियों में विकार हो तो वे बढ़ी हुई उर्जा को बर्दास्त नहीं कर पातीं. वक्राकार होकर छाते की तरह आभामंडल के बाहर तक फैल जाती हैं. जिससे आभामंडल और उर्जा चक्र असंतुलित हो जाते हैं.
एेसे में साधना सिद्ध होने के रास्ते लगभग बंद से हो जाते हैं.
सो सभी तरह के साधकों को अपनी उर्जा नाड़ियों को सदैव व्यवस्थित रखना चाहिये.
अप्सरा सिद्धी चाहने वाले अपने अनाहत चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, आज्ञा चक्र को जरूर जाग्रत रखें. तभी ये सिद्धी मिल सकती है.
सबसे महत्वपूर्ण है कि इस तरह की सिद्धियां सक्षम गुरु की देख रेख में ही करें. सिर्फ किताबों में पढ़कर एेसी सिद्धियां कभी भी हासिल नहीं की जा सकतीं.
कई लोगों ने कहा है कि मै उन्हें अप्सरा साधना की विधि ग्रुप में ही बताऊं. ये ठीक नहीं है. आप में से जो लोग इस साधना के प्रति गम्भीर हैं वे गुरुवर से आकर मिलें. अगर आपकी शिष्यता संदेह रहित हुई तो गुरुदेव की कृपा से आप इसे हासिल कर ही लेंगे.
आगे मै आपको एक और गुप्त साधना की जानकारी दूंगा.
क्रमशः
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिवगुरु को प्रणाम.
गुरुवर को नमन