जब मैने अप्सरा के साथ रात बिताई….
राम राम मै शिवांशु
बात 2006 की है. सर्दियों के दिन थे. गुरुवर उन दिनों दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में किराये के एक छोटे से कमरे में अकेले रह रहे थे. परिवार लखनऊ में था. जब मै वहां गया तो मन बहुत दुखी हुआ. मस्तिष्क में सवाल उठा एेसी जगह रहने का फैसला क्यों लिया गुरुवर ने ? वे चाहते तो फाइवस्टार सुविधाओं में रह सकते थे.
कमरा दूसरी मंजिल पर था. सुविधा के नाम पर वहां कुछ भी नहीं था. जमीन पर एक बिस्तर था. किचन था ही नहीं. उसकी तो खैर जरूरत भी नहीं थी. क्योंकि गुरुदेव खाना खाते नही थे. फर्नीचर के नाम पर बेत का बना सिर्फ एक स्टूल था. कमरे में बाथरूम भी नही था. उसके लिये बाहर सीढ़यों के पास जाना पड़ता था. मैने एेसी सुविधाविहीन और अभावग्रस्त जगह चुनने का कारण पूछा तो वे टाल गये.
जब साधना करने बैठा तो जगह की उपयोगिता समझ आयी. कमरे की उर्जा पहाड़ों की उर्जा जैसी थी. मौसम भी वैसा ही. गर्मी में बहुत गरम और सर्दियों में बहुत सर्द. गुरुवर ने बताया कि उस क्षेत्र में जमीन के नीचे अरावली पर्वत श्रंखला है. जो अफगानिस्तान की तरफ जाती है.
जिसके कारण वहां साधना की उर्जा कई हुना बढ़ जाती है. ठीक वैसे ही जैसे ऊंचे पहाड़ों पर साधना करने से होती है. एकांत भी एेसा था कि गुरुवर कई दिनों तक बिना डिस्टरवेंस के रह सकते थे. बिना उनके चाहे उनसे मिलने कोई पहुंच ही नहीं सकता था. वैसे भी उन दिनों में गुरुदेव गिने चुने लोगों से ही मिलते थे. एक तरह के अज्ञातवास में थे.
मेरी साधना शुरू हुई.
साधना थी अप्सरा सिद्धी की.
साधना की अवधि 6 दिन की थी.
पहले और दूसरे दिन कुछ खास अनुभव नहीं हुआ.
तीसरे दिन मंत्र जाप के दौरान आवाजें सुनाई देनी लगीं. जैसे दूर कहीं कोई नर्तकी नृत्य कर रही हो या इठलाकर चल रही हो. और उसके घुंघुरू झनक रहे हों. चौथे दिन अज्ञात सुगंध आने लगी. जो रात भर अपना अहसास कराती रही. साथ ही पहले दिन वाली आवाजें भी सुनाई देती रहीं.
पांचवे दिन बार बार एेसा लगता रहा जैसे कोई मुझे छू रहा हो. साधना के दौरान गुरुवर कमरे में नहीं होते थे. किसी देव शक्ति से साक्षात्कार की ये मेरी पहली साधना थी. सो रोमांच के साथ अज्ञात भय भी लग रहा था.
छठे दिन तो जैसे कयामत ही आ गयी. मौसम सर्दी का था. मंत्र जाप करते एक घंटा बीता होगा. तभी कमरे की उर्जाओं का स्तर बहुत बढ़ गया. वहां किसी और के आभामंडल का अहसास हुआ. जबरदस्त गर्मी लगने लगी. कड़ाके की ठण्ढ में पसीना बह निकला. शायद उर्जाओं का स्तर बढ़ने से मेरा ब्लडप्रेसर बढ़ता जा रहा था. मैने खुद पर से कम्बल हटा दिया. कुछ देर बाद स्वेटर भी हटाना पड़ा. फिर शर्ट निकाल दी, जो पसीने से गीली हो चुकी थी. गर्मी फिर भी लगती रही. मै घबराने लगा.
हलांकि गुरुदेव ने इसके संकेत पहले ही दे रखे थे.
साधना का आधा वक्त गुजरा होगा कि भयानक तूफान आ गया. गुरुवर को इसका अहसास रहा होगा. तभी उन्होंने आज मुझसे खिड़की दरवाजे अच्छी तरह से बंद करने को कहा था. मगर तूफान इतना तेज था, मानो खिड़की दरवाजे टूटकर बिखर जाएंगे. मन में भय बढ़ गया.
तभी बरसात शुरू हो गई. पानी इतनी तेज बरसा कि कमरे के भीतर घुस आया. कमरे में दो दरवाजे थे. पानी एक तरफ से आ रहा था. दूसरी तरफ से निकल जा रहा था. फिर भी मेरा आसान भीग गया. इतना कि उसे बदलना पड़ा.
गुरुवर ने कहा था आज दीपक का विशेष ध्यान रखना. आंधी-तूफान और बरसात के कारण लाइट चली गई. दीपक की ही रोशनी बची.
एक ही दिन में एक ही जगह सारे मौसम गुजर गये. साधना के अंतिम चरण तक सब शांत हो गया. जैसे कुछ हुआ ही न था. मुझे फिर से सर्दी लगने लगी. कम्बल ओढ़कर मंत्र जाप जारी रखा.
कुछ देर बाद कमरे में किसी के होने की आहट सुनाई दी. गुरुवर ने मेरी बांयी तरफ एक खाली आसन बिछवाया था. लगा कि उस पर आकर कोई बैठ गया. इस अहसास से मेरे शरीर में कंपकपी छूट गई. मै सिहर उठा. रीढ़ की हड्डी के सहारे पूरे शरीर में सर्द लहर उतरती जा रही थी.
अभी एक माला मंत्र जाप बाकी था.
मैने आंखें बंद रखीं. मंत्र जाप चलता रहा.
कमरें में कोई आ चुका था. जो सुगंध 2 दिन से दूर से आती महसूस हो रही थी, वह अब मेरे चारो तरफ थी. घुंघुरुओं की जो आवाजें दूर से आती सुनाई देती थी अब वो मेरे करीब थी.
अचानक मेरे हाथ को छुआ गया. छुअन नाजुक हाथों की थी. मेरे शरीर में करंट सा दौड़ने लगा. खुद पर से नियंत्रण टूटने की स्थिति बन पड़ी. समय थम सा गया. जपने को कुछ ही मंत्र शेष थे. मगर एक एक मंत्र का जाप घंटों में गुजरता सा लगा.
मन में रोमांच भी था और भय भी.
जैसे तैसे मंत्र जप पूरा किया. तब तक मेरे कंधे पर हाथ रख दिया गया.
गुरुवर ने एेसी स्थितियों से पहले ही आगाह करा दिया था. वर्ना शायद मै होश खो देता.
मैने आंखें खोल दीं. बगल के आसन पर अप्सरा विराजमान थी. वह प्यार और अपनेपन से मेरी तरफ देख रही थी. उसकी बेहद खूबसूरत आखों की चितवन ने मुझे सम्मोहित कर लिया.
मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था. तभी गुरुवर द्वारा बताया साधना का अंतिम स्टेप याद आया. मैने पास रखी माला उठाकर उनके गले में डाल दी. वो मुझसे लिपट सी गईं.
ब्रह्मांड की सुंदरतम् स्त्री मुझे प्यार कर रही थी. मै खुद पर बिल्कुल भी कंट्रोल नहीं कर पा रहा था. लेकिन मुझे कंट्रोल करना था. गुरुवर ने सख्त आदेश दिया था कि मुझे अप्सरा से शारीरिक सम्बंध स्थापित नहीं करने है.
मै खुद को रोक नही पा रहा था. मगर गुरु आज्ञा की अवहेलना न हो, इस हेतु खुद पर काबू के लिये संघर्ष कर रहा था. इस संघर्ष में मेरी दशा बहुत कमजोर सिपाही जैसी थी.
अप्सरा को मेरी मनोदशा का आभास हो गया. तब उसने गुरु आज्ञा का पालन करने में मुझे सहयोग किया. हम रात भर बातें करते रहे. सुबह दोबारा आने का वादा करके वह चली गई.
इस साधना को मै पहले भी 8 बार कर चुका था. मगर तब सफलता नहीं मिली. क्योंकि तब मेरे कुछ उर्जा चक्र विकार ग्रस्त थे.
आगे मै आपको बताउंगा कि अप्सरा सिद्धी के लिये किन चक्रों का जाग्रत होना जरूरी होता है. इस सिद्धी के फायदे क्या हैं? क्या इसे महिलायें भी कर सकती हैं?
क्रमशः
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम.
गुरुवर को नमन.