राम राम मै शिवांशु
पिछले दिनों गुरुवर ने मुझे टेलीपैथी साधना का दूसरा चरण पूरा करने के लिए स्वामी जी के आश्रम में भेजा. गंगा किनारे बना स्वामी जी के आश्रम की आभा इस युग में होते हुए भी किसी और युग का अहसास कराती है . वहां रहने के दौरान मेरे साथ क्या क्या हुआ ये मै आपको बता चुका हूं.
जो लोग ग्रुप में नए जुड़े हैं वे *टेलीपैथी साधना का दूसरा चरण* नाम की पहले पोस्ट की गई सीरीज को पढ़ लें.
अब मै आपको वहां साधनायें कर रहे साधकों और उनकी अलौकिक साधनाओं की सिलसिलेवार जानकारी देने जा रहा हूं. जो आपके भीतर के साधक को उच्च साधनाओं के लिए प्रेरित करेगी.
बात पिछले दिनों की है. शाम का समय था. मै आफिस से आकर घर के लान में बैठा था. कुछ पेंडिंग फाइलें घर पर मंगवा ली थीं. सोचा था उनकी विवेचना घर पर तसल्ली से पूरी कर लूंगा. फाइलें सामने बेंत की टेबल पर पड़ी थीं. टेबल पर रखे काफी के कप को उठाने के लिये आगे झुका तो चौंक पड़ा.
कोई मेरे कान में कुछ कह रहा था. * मुझे आपसे कुछ बात करनी है* . एेसा मुझे सुनाई दिया. उधर मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था. लगा कि मेरा भ्रम है.
मगर भ्रम नहीं था. दोबारा किसी ने मेरे कान में अपने शब्द दोहराये.
मै विस्मित हो गया.
तभी मुझसे कहा गया * आप विस्मित न हों. मै हूं गिरिजाशरण.*
आप ? मैने आश्चर्य के मारे लगभग चीखते हुए पूछा. कहां हैं आप?
मेरे बांयें कंधे को छुआ गया. और जवाब मिला मै यहां हूं.
तो क्या आपको अदृश्य होने की साधना सिद्धी प्राप्त हो गई?
हां, गुरु भगवान और उर्जा नायक महराज की कृपा से मै सफल हुआ. आप मुझे बैठने को नहीं कहेंगे क्या ?
इन शब्दों से मै परिचित था. स्वामी जी के शिष्य अपने गुरु को गुरु भगवान और हमारे गुरुदेव को उर्जा नायक महाराज कहकर सम्बोधित करते हैं.
मै निश्चिंत हुआ और एक कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए उनसे बैठने का आग्रह किया.
फिर कुर्सी की तरफ देखने लगा. देखना चाहता था कि किसी अदृश्य के बैठने पर कुर्सी क्या लक्षण प्रकट करेंगी. कुर्सी थोड़ी सी खिसकी और उस पर पड़ी कुसन की गद्दी थोड़ी दब गई. वे उस पर बैठ चुके थे.
उस समय लान में कोई दूसरा नहीं था. लेकिन कभी भी कोई आ सकता था. तब स्थिति क्या होगी. मै मन में सोच रहा था. तभी गिरिजाशरण जी ने कहा बहुत अच्छा होगा यदि हम कहीं और चल कर बातें करें.
जी बिल्कुल सही कहा आपने. मैने जबाव दिया और टेबल पर पड़ी गाड़ी की चाबी उठा ली.
चलिये सैर करके आते हैं.
कहते हुए मै पोर्टिको में खड़ी गाड़ियों में से एक की तरफ बढ़ गया. मुझे गाड़ी की तरफ जाता देख उस गाड़ी का ड्राइवर भागता हुआ पास आ गया. मैने इशारे से उससे कहा कि तुम जाओ मै ड्राइव कर लूंगा. वह लौट गया.
मैने चेक करने के बहाने गाड़ी का दायां दरवाजा खोल दिया. जब सुनिश्चित हो गया कि गिरिजाशरण जी आगे की सीट पर बैठ गए हैं तब दूसरी तरफ जाकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. फिर अदृश्य मित्र के साथ सैर पर निकल पड़ा.
आगे मै आपको बताउंगा कि गिरिजाशरण दास जी मुझसे मिलने क्यों आये और मुझे साधनाओं के कौन कौन से रहस्यों की जानकारी दी. तब तक की राम राम.
क्रमशः
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन.