राम राम मै शिवांशु
शिवगुरु को प्रणाम
गुरुवर को नमन….
मै शंकर शरण दास, उमा शरण दास और गिरिजा शरण दास की उर्जाओं को उपचारित कर रहा था. मन ही मन सोच रहा था कि गुरुदेव ने मुझे कितना ऊपर ला दिया. ये साधु जो परम त्यागी और इंद्रियों को बस में करने में सक्षम हैं, उनके जन्मों से बिगड़े काम मै बनाने में सक्षम हुआ.
शिवगुरु और गुरुवर को ध्यान करते हुए तीनों साधकों की उर्जायें मैने उपचारित कर ही डाली. 6 घंटे लगे. संजीवनी उपचार में इससे पहले एेसी अनुभूतियां कभी नहीं हुई थीं. जैसी इनकी हीलिंग में हो रही थीं. मै उनकी एनर्जी की शानदार छुअन को पाकर मन ही मन बार बार उनकी तारीफ करता जा रहा था.
अगर उनकी उर्जाओं के विकार ग्रस्त हिस्सों को नजरअंदाज कर दिया जाये तो नवजात बच्चों की तरह निर्दोष उर्जाओं के मालिक थे वे लोग. गुरुदेव बताते हैं कि छोटे बच्चों की उर्जाएं देव उर्जाओं की तरह निर्दोष होती हैं.
संजीवनी उपचार के जरिए तीनों की हीलिंग के बाद मै सो गया. तब तक सुबह हो गई थी. सो दो घंटे ही सो पाया. मुझे एक साधु ने आकर उठा दिया था, गंगा नहाने के बाद मै स्वामी जी के पास गया.
उन्होंने टेलीपैथी के उच्च आयामों की जानकारी देनी शुरू की. उसी बीच शंकर शरण दास, उमा शरण दास और गिरिजा शरण दास मुझे स्वामी जी की कुटिया में धन्यवाद देने आये. तभी मैने दोबारा उनकी उर्जायें स्कैन कीं. शंकर शरण दास की कुंडली को मूवमेंट मिल चुका था. बाकी दोनों की भी रुकावटें हट चुकी थीं.
ये जानकर स्वामी जी बहुत खुश हुए. सफलता शिष्य को मिली और गदगद हो गए गुरु जी. मेरा मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया. साथ ही गुरुवर की याद आ गई. वे भी हमारी सफलताओं पर एेसे ही खुश हो उठते हैें. जैसे मेरे माता पिता वही हों.
सच, अपनेपन में मेरे गुरुदेव जैसा कोई नहीं.
उन तीनों के जाने के बाद स्वामी जी फिर मुझे टेलीपैथी के उच्च आयाम सिखाने लगे. मै उनसे सवाल पूछता जा रहा था वे जवाब देकर सिखाते जा रहे थे.
कुछ विषय मेरे लिए अविश्वसनीय लगे तो स्वामी जी ने उनको साक्षात मेरे सामने प्रमाणित कर दिखा दिया. इसी क्रम में उन्होंने कुछ देव शक्तियों के साथ मेरा सम्पर्क कराया. कुछ गुजर चुके आध्यात्मिक गुरुओं से भी सम्पर्क स्थापित कराया. मगर मै उनमें से किसी से बात न कर सका. जब भी इसकी कोशिश करता मेरे सिर में भयानक पीड़ा शुरू हो जाती और सम्पर्क टूट जाता.
स्वामी जी से मैने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी उर्जाओं में भी शंकर शरण, गिरिजा शरण और उमा शरण की तरह कोई विकार है. जिसे ठीक कर पाना उर्जा नायक के ही बस की बात है. मै आपको इस साधना की विधियां ही सिखा सकता हूं. उन्हें करा सकता हूं. मगर उनका फलित होना तुम्हारे गुरु के हाथ में है.
स्वामी जी दोबारा मुझे टेलीपैथी की उच्च तकनीक समझाने लगे. मै हैरान था कि वे बीच बीच में वेद, पुराण और उपनिषद में इस संदर्भ में वर्णित जानकारी का रिफरेंस भी देते जा रहे थे. उन्हें सब बाद था. बहुत मजा आ रहा था सीखने में.
दिन गुजर गया. मै बिना कुछ खाये पिये सीखता रहा. वे सिखाते रहे. रात हो गई. आधी रात के बाद मुझे नींद आने लगी. मै सो गया. अगले दिन मेरी साधना शुरू होनी थी. उस दिन गुरुवर ने मुझसे सम्पर्क नहीं किया.
अगले दिन मेरा मौन शुरू हुआ. रात से साधना शुरू होनी थी. दो दिन कुछ भी नहीं खाना था. पानी भी नहीं पीना था. मै मानसिक रूप से तैयार था. गर्मी तो प्रचंड थी, मगर मन में यकीन था कि कुछ ऊंच नीच हुआ तो गुरुदेव संभाल लेंगे.
सुबह देर तक सोया. लगभग 8 बजे एक साधु ने मुझे आकर जगाया. उसने मुझे याद दिलाया कि मेरी यहां ड्यूटी बर्तन धोने में लगी है.
मन में विचार आया हे गुरुदेव इतनी कठिन परीक्षा क्यों. दो दिन बिना खाये पिये रहुंगा, फिर भी बर्तन धोने होंगे.
एक विद्रोही विचार मेरे मन को दूषित करने लगा. इन लोगों का मैने इतना बड़ा काम किया, फिर भी मुझे महत्व ही नहीं दे रहे. अहसान मानने की बजाय बर्तन धुलाये चले जा रहे हैं. ये कैसी परम्परा है. दो दिन तो मै खाना भी नहीं खाउंगा, फिर भी मुझसे बर्तन क्यों धुलवाये जा रहे हैं.
अनमना सा उठा और गंगा तट पर चला गया. जहां ढ़ेर सारे जूढ़े बर्तन मेरा इंतजार कर रहे थे. धोने लगा. 2 घंटे धोता रहा. मै थक गया.
एक पेड़ की छाया में पड़कर सो गया. कुछ घंटे सोया. जागा तो देखा गिरिजा शरण दास जी मेरे पास बैठे मेरा सिर सहला रहे थे. मेरे मौन के कारण वे बोले कुछ नहीं, लेकिन उनकी छुअन से शरीर में एनर्जी भर गई.
तब मुझे याद आया कि हीलिंग करके मुझे अपनी भूख रोकनी चाहिये. संजीवनी उपचार के जरिये मै खुद को हील करने बैठ गया.
शाम से पहले एक साधु ने मेरे हाथ में झाडु पकड़ाई और सफाई में साथ देने का इशारा किया. मन फिर विद्रोही भावों से भर गया. दूषित विचार मेरे मस्तिष्क पर हमलावर हो गए. बड़ी मुश्किल से खुद को संम्भालते हुए सफाई कार्य में उसका साथ दिया.
शाम को स्वामी जी के पास गया. वे मुस्करा रहे थे. जैसे कहना चाह रहे हों कि जरा सम्भलना. ये संयम की परीक्षा है, डगमगा मत जाना. उनकी सम्मोहक मुस्कान ने मुझे सम्भाला. मन शांत हुआ. रात में उन्होंने मेरी साधना शुरू करा दी. उससे पहले मुझे जानकारी दी गई कि वहां जितने साधु हैं, वे सब सालों से साधनायें कर रहे हैं. साथ ही सभी को अपने हिस्से का काम भी करना होता है.
रात तीन बजे तक साधना करके मै सो गया.
सुबह 5 बजे मुझे उठा दिया गया. एक साधु ने कहा कि जंगल से लकड़ी लाने में उसकी मदद करूं. मैने इशारे से उससे कहा कि तुम चलो मै आ रहा हूं. मै नींद में था. उसके जाने के बाद वहीं रेत पर लेटकर दोबारा सो गया.
जब नींद खुली तब तक जंगल से लकड़ियां आ चुकी थीं.
यूं तो देखने में सब कुछ सामान्य था. लेकिन मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी. अनजाने में मैने आश्रम का नियम तोड़ दिया था. नियम यह था कि वहां कोई किसी को किसी काम के लिए मना नहीं करता. अगर करता है तो उसे आश्रम छोड़कर जाना पड़ता है.
इसकी जानकारी होते ही मेरे होश उड़ गए. मुझे पता था कि गुरुदेव इसके लिए मुझे माफ करने वाले नहीं.
उस दिन किसी ने भी मुझसे बर्तन साफ करने को नहीं कहा. किसी ने सफाई के लिए मेरे हाथ में झाड़ू नहीं पकड़ाई. मै दिन भर इंतजार करता रहा कि कोई तो मुझे कुछ काम करने को कहे. मगर किसी ने नहीं कहा.
मन बेचैन था. हर क्षण गुरुवर याद आ रहे थे. मगर उन्होंने मुझसे कोई सम्पर्क नहीं किया.
शाम को एक साधु ने आकर कहा आपकी दादी बीमार हैं, आपको अभी घर वापस जाना है.
इतनी बड़ी सजा. मेरे मन में सवाल घूम गया.
मै जानता था मेरी दादी को गुरुवर ठीक कर ही देंगे. पहले भी कई बार वे उन्हें मृत्यु के नजदीक से वापस लाये हैं.
मगर इस बार मुझे साधना से वापस बुला लिया.
मै अपना सामान लेकर स्वामी जी के पास गया. उनको प्रणाम करके गंगा किनारे बंधी नाव पर बैठ गया. जो मुझे इलाहाबाद के पास सड़क मार्ग तक पहुंचाने वाली थी.
गिरिजा शरण दास, शंकर शरण दास, उमाशरण दास और दो अन्य साधु मुझे नाव तक छोड़ने आये. छोटे से साथ के बावजूद हममें एक रिश्ता सा बन गया था.
गिरिजा शरण दास ने मुझे गले से लगा लिया.
मै रो पड़ा.
नाव चल पड़ी.
मै जानता था अब मुझे यहां आने का अवसर कभी नहीं मिलेगा.
… बस इतनी सी थी मेरी दूसरे चरण की टेलीपैथी साधना यात्रा.
सत्यम् शिवम् सुंदरम्.
मेरे प्यारे गुरुवर को नमन.
शिव गुरु को प्रणाम……