राम राम मै शिवांशु
ग्रुप में संतोष जी ने मेरी एकांत साधना के अनुभव जानने चाहे हैं.
साधना के अनुभव तो शानदार रहे. जो मैने सोचा था उससे सैकड़ों गुना अधिक शानदार. ये मेरी टेलीपैथी साधना का दूसरा चरण था.
एक दिन गुरुवर ने कहा मुझे दूसरे चरण की साधना शुरू करनी है. मै खुश हो गया. इतना ज्यादा कि शब्दों में बता नहीं सकता. मेरी खुशी का ठिकाना तब और नहीं रहा जब गुरुवर ने एकांत साधना पर जाते समय मुझे स्मार्टफोन और टैबलेट ले जाने की अनुमित दे दी.
मैने उनसे पूछा था* गुरुवर क्या मै साधना के वक्त भी स्मार्ट फोन साथ रख सकुंगा.*
उन्होंने सरल भाव से कहा था * हां रख लेना.*
तब मै थोड़ा चकित तो था. क्योंकि गुरुवर किसी भी साधना के समय किसी को भी स्मार्टफोन तो दूर सामान्य फोन भी नहीं रखने देते. जर मैने सोचा शायद गुरुदेव ने टेलीपैथी साधना को और अधिक सरल कर दिया होगा. मै एकांत के समय भी अपनों से वीडियो चैट करके जुड़ा रहुंगा. मेरे नादान मन ने खुशी में खुद ही गुरुवर की इस दयालुता का उत्तर ढ़ूंढ़ लिया था कि शायद गुरुदेव वीडियो चैट के जरिए मुझे दिशा निर्देश देना चाहते हैं. इस सुविधा के चलते मै सोच रहा था कि साधना में और भी तमाम सुविधायें होंगी, इस बार तो बस मजा आ जाएगा.
निर्धारित समय पर मै घर से निकला. तब तक मुझे साधना स्थल की जानकारी नहीं थी. मै लखनऊ से रायबरेली के एक गांव पहुंचा. वहां अपना वाहन छोड़ देना था. सो ड्राइवर को गाड़ी लेकर लौट जाने को कह दिया. वह चला गया.
रात होने लगी थी. गुरुदेव द्वारा तय कार्यक्रम के मुताबिक वहां एक व्यक्ति ने मुझसे सम्पर्क किया. वह किसी गांव का रहने वाला व्यक्ति था. वो मुझे गांव से दूर सूनसान जगह पर बने एक मंदिर पर ले गया. मंदिर छोटा था. वहां सिर्फ एक पुराना शिवलिंग और पत्थर की बटियों के रूप में कुछ देवी प्रतीत ही थे. जिनपर सिंदूर लगा था. वहां लाइट नहीं थी. मिट्टी के दिये जल रहे थे.
मंदिर पर कम कपड़ों वाले दो साधु मिले. जो अधोरी से लग रहे थे. उनमें एक बीड़ी पी रहा था. मुझे भी बीड़ी आफर की. मैने मना कर दिया. मैने उनसे राम राम की. तो वे जवाब देकर बोले चलो. मै उनके साथ चल दिया. वे मुझे लेकर पगडंडियों पर चल पड़े. अंधेरे में मुझे सकरी पगडंडियों पर चलने में दिक्कत हो रही थी. जबकि वे दोनो एेसे चल रहे थे जैसे उन्हें सब कुछ साफ दिख रहा हो.
एक जगह मै लड़खड़ाकर गिर गया. एक साधू ने मुझे उठाया और मेरा हाथ पकड़कर चलने लगा. दूसरे ने मेरा बैग लेकर अपने कंधे पर टांग लिया. ताकि मुझे चलने में आसानी हो.
मै मन ही मन सोच रहा था कि गुरुवर का साधना क्षेत्र कितनी दूर तक फैला है. हम घंटों के हिसाब से यूं ही चलते रहे. बीच बीच में कुछ जगहों पर टिमटिमाती हुई सी रोशनी दिखती तो लगता था कि शायद वहां कोई गांव है. राह लम्बी थी और कठिन भी। मै थक गया।
लगभग 2 घंटे चलने के बाद हम रेतीली जमीन पर पहुंच गए. गुरुदेव के साथ उनके गांव कई बार गया हूं, इसलिए मै एेसी जगहों को पहचानता हूं. ये गंगा जी के किनारे का क्षेत्र था. गंगा की रेत पर जूते पहनकर चलना बहुत कठिन होता है. रेत जूतों में भर जाती है और कदम आगे नहीं बढ़ते. सो मैने जूते उतारकर अपने हाथ में पकड़ लिये.
सोचा कि शायद साधना स्थल पर पहुंचने ही वाले हैं. मगर रेत पर लगभग 2 घंटे और चलना पड़ा. अब मुझमें एक कदम भी चलने की शक्ति न बची थी. मै वहीं बालू पर लेट बैठ गया. दोनो साधु मेरी हालत समझ गए. वे भी पास बैठ गए. आधे घंटे बाद हम फिर चल पड़े. लगभग एक घंटा और चले.
आखिरकार पहुंच ही गए. वो गंगा जी के किनारे बनी एक कुटी थी. धूनी जल रही थी. उसके आस पास कई साधु थे. सबको जैसे हमारा ही इंतजार था. एक ने मुझे एक पुराने और गंधे से बर्तन में पानी दिया. मै एक ही सांस में पानी पी गया. वहां मौजूद लोग मुझे देख तो रहे थे मगर मुझसे बातें नहीं कर रहे थे. मुझे पानी सी पतली दाल और हाथ से बनी मोटी मोटी रोटियां दी गईं. जिन्हें खाकर फाइवस्टार होटल के खाने से भी कई गुना तृप्ति मिली. क्योंकि मै बहुत भूखा था.
मैने अपने सामान में से स्मार्ट फोन निकाला. सोचा गुरुदेव से बात करके पूछूं आपने किस बीहड़ में भेज दिया मुझे. मगर वहां नेटवर्क न था. दूसरा मोबाइल चेक किया उसका भी वहीं हाल था. दोनों फोन यहां सिर्फ टार्च की तरह ही यूज हो पा सकते थे. अब समझ में आया गुरुदेव ने मोबाइल रखने के मामले में इतनी सरलता क्यों दिखायी थी.
…….क्रमशः