टेली पैथी साधना का दूसरा चरण….2

राम राम मै शिवांशु

अँधेरे में दो साधुओं के साथ कई किलोमीटर पैदल चलकर मै गंगा किनारे बने साधना क्षेत्र मेँ पहुंच गया. वहां पहुंचकर मोबाइल चेक किये तो पता चला उस क्षेत्र में नेटवर्क नही मिलता. वहां कोई मोबाइल काम नही करता. उस जंगल में फोन लाइन की कल्पना भी बेकार थी.

मोबाइल पर ही टाइम देखा तो रात का 1 बज रहा था. साधुओं ने सोने के लिये मुझे प्लास्टिक का एक टुकड़ा दिया था. जो लगभग 5 फ़ीट था. मै उसपर लेटा तो पैर प्लास्टिक से बाहर निकल गए. गनीमत थी कि वहां गंगा जी की रेत थी. जो सख्त नही होती. इसलिये उसपर लेटने से शरीर को कष्ट नही होता. बल्कि गद्दे जैसा लगता है.

थककर चूर था मै. फिर भी गुरुवर की याद आ रही थी. मन सवालों से भरा था. उन्होंने साधना के दूसरे चरण के लिये ये जगह क्यों चुनी? यह किसका आश्रम है? क्या इनमें कोई सिद्ध संत है? क्या यहां गुरुवर का कोई आध्यात्मिक मित्र होगा? जो साधना में मेरा मार्गदर्शन करेगा? क्या ये लोग इतने सक्षम होंगे जो मुझे टेलीपैथी साधना करा सकें? अघोरी से दिखने वाले साधुओं के साथ मुझे कैसा रिश्ता बनाना होगा? क्या मुझे इनकी अघोरी क्रियाओं में शामिल होना होगा?

मन सैकड़ों सवालों से भरा था.

जवाब सिर्फ एक था.

वह था गुरुवर का विचार. उनकी माया वही जाने. मेरे मन में समर्पण का भाव जागा. तो मस्तिष्क उनकी तरंगो से जुड़ गया. गुरुवर के मानसिक सन्देश मिलने लगे. उन्होंने कहा ‘अब सो जाओ’।

मगर उनसे जुड़ते ही मेरे सवालों का पिटारा फूट पड़ा. ऊपर वाले लगभग सारे सवाल मैंने उनसे पूछ डाले. जवाब किसी का नही मिला. मैंने सोचा था इस बियाबान जंगल में पहुँचने पर गुरुदेव का स्नेह मुझपर उमड़ पड़ेगा. और वे मुझे प्यार से सारी योजना समझायेंगे. मगर ऐसा न हुआ. वे हमेशा की तरह ही मुझसे पेश आये.

मेरे मस्तिष्क ने उनका सन्देश पढ़ा ‘सो जाओ कल तुम्हें बहुत काम करने हैं.’

उनका दो टूक जवाब मिलते ही मेरे ज्ञान चच्छु खुल गए. लगा कि मै बेवजह ही अपने आपको vip समझ रहा था. गुरुवर तो सैकड़ों बार ऐसी स्थितियों में रह चुके हैं. उनके लिये तो ये कठिन परिस्थिति भी सामान्य सी बात है.

कब नींद आ गयी, पता नहीं.

सुबह धूप की तपन से नींद खुली. मोबाइल पर देखा तो 8 बज चुके थे. वहां सभी साधू कभी के जागकर अपने कामों में लग गए थे. किसी ने मुझे नही जगाया. जैसे उनका मुझसे कोई मतलब ही न हो. मोबाइल की बैटरी खत्म हो रही थीं. उन्हें यहां चार्ज भी नहीं किया जा सकता. क्योंकि बिजली कनेक्शन वहां दूर तक नहीं.

मै गंगा नहाने चला गया. नहाकर लौटा तो एक साधू मेरे पास आया और इशारे से साथ चलने को कहा.

मै उसके साथ चला गया. कुछ दूर पेड़ों के झुरमुट में एक धूनी जलती दिखी. पास में एक झोपड़ी थी. उसमें से एक सिद्ध संत बाहर आये. उनके चेहरे का तेज असाधारण था. अलौकिक था. मै देखता ही रह गया. वे मुस्करा रहे थे. उनके इशारे पर मै बैठ गया. पास आकर वे भी बैठ गए. उनके पास आते ही मै खो सा गया. गजब का औरा था उनका. अपरिचित के साथ होकर भी मेरे मन में कोई विचार नही था. मन खुद ही निर्मल स्थिति में पहुँच गया. जैसे अब कुछ भी जानना शेष न बचा हो.

न मै अचंभित था, न सशंकित. न मेरे पास कोई जानकारी थी और न ही कोई सवाल. न कोई जिज्ञासा थी और न ही कोई इच्छा. गुरुवर ने अपने ऐसे आध्यात्मिक मित्र की मुझसे कभी कोई चर्चा नही की थी. बस मै उन्हें देखता ही रह गया.

उनके इशारे पर मैंने आँखे बन्द की. तो एक अचंभित करने वाला नजारा दिखने लगा. मैंने देखा एक कुटी में मै गुरुवर और इन सिद्ध साधू के साथ बैठा हूँ. गुरुवर मेरी साधना के बारे में उन साधू को कुछ तरीके बता रहे हैं. जिन्हें समझकर सिद्ध साधू ने गुरुवर को आश्वस्त किया कि ऐसा ही होगा.

फिर गुरुदेव मुझे साधना के स्टेप समझाने लगे.

…… क्रमशः

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