राम राम मै अरुण
गुरुदेव की एकांत साधना
शिवांशु जी की बुक से साभार…..
गुरुदेव की साधना का 26 वां दिन.
लगभग 100 घण्टे की अखण्ड साधना के बाद आज दिन में लगभग 11 बजे गुरुदेव गहन साधना से बाहर आये।
बीते शुक्रवार को तड़के लगभग 3 बजे साधना में गए थे। इस बार उन्होंने साधना स्थल पर अपने पास दो अतिरिक्त आसन भी लगवाये थे। पहली बार फूल और माताएं रखवायी थीं। फल, मेवा और मिष्ठान भी वहां रखवाये थे।
इससे पहले उन्होंने सभी सघन साधनाएं बिना सामग्री के कीं.
लगता है इस बार उनके सभी उद्देश्य पूरे हो गये।
क्योंकि साधना से बाहर आते ही उन्होंने साधना स्थल से वे सभी विशेष इंतजाम हटवा दिए जो 15 मई को कराये थे.
इस बीच मै सिर्फ 4 बार ही उनके पास साधना स्थल पर गया।
हर बार वे ध्यानस्थ मिले।
एक बार मुझे लगा जैसे साधना स्थल पर नजर न आने वाले तमाम लोग हैं। क्योंकि वहां कई तरह की उर्जाओं का आभास हो रहा था। कुछ कोमल कुछ सख्त। सभी की छुवन सकारात्मक ही थी। तब साधना स्थल की ऊर्जा अपार मिलीं. जैसे वहां साक्षात् देवगणों का वास हो.
उस समय साधना स्थल कई तरह की सुगंध से भरा था। मगर कोई भी सुगंध दूसरी सुगंध के अस्तित्व को बिगाड़ नहीं रही थी। सबका अस्तित्व बरकरार था।
एेसी सुगंध धरती पर तो नहीं मिलती।
नजर न आने वाले लोग वहां मेहमान थे या मेजबान, नहीं पता। उनमें किसी को मुझसे न कोई एेतराज न था और न ही कोई लगाव। जैसे मेरी उपस्थिति उनके लिए बेअसर हो।
कल तो गुरुवर के गले में माला थी। जो साधना स्थल पर पहले से रखी मालाओं में से एक थी। मुझे ठीक से पता है गुरुवर को माला पहनना पसंद नहीं। यानि वह माला उन्होंने खुद नहीं पहनी होगी। तो किसने पहनायी उन्हें माला, इस सवाल के जवाब का इंतजार मुझे कब तक करना होगा, नहीं पता।
योगिनी से बातें करने के बाद कुछ देर पहले गुरुदेव विश्राम करने चले गये।
योगिनी के बारे में बताना तो मै आपको भूल ही गया।
बड़ी चहेती बन गई है गुरुवर की।
आश्रम में रोज आने वाली एक गौरैया चिड़िया का नाम है योगिनी। गुरुदेव ने ही उसे नाम दिया है। शुक्रवार से बड़ी बेचैन थी. गुरुदेव के दर्शन नहीं कर पा रही थी इसलिये।
रोज आकर गुरुदेव का घंटों इंतजार करती थी।
15 मई को गहन साधना में जाने के बाद जब गुरुवर ध्यान से बाहर आये, उसके बाद ही योगिनी ने आश्रम में आना शुरू किया था।
आश्रम के पश्चिमी छोर पर माल्टा का पेड़, उसके पीछे आवलें का और बगल में अमरूद का बड़ा पेड़ है। तीनों पेड़ों के मिलान से वहां घनी छाया बन जाती है। फुरसत के वक्त गुरुदेव उन्हीं की छाया में कुर्सी डलवाकर बैठते हैं।
वहां छाया में चिड़ियों के पीने का पानी रखा जाता है। उनके चुगने के लिए गुरुदेव वहां आनाज के दाने डलवाते हैं। वहां दाने चुगने, पानी पीने, खेलकूद व आराम करने तमाम चिड़िया आती हैं।
उनमें जंगली कबूतरों का एक जोड़ा काफी दिनों से आकर गुरुदेव के पास बैठता है। मादा कबूतर तो अक्सर उनके खड़ाऊं से खेलती रहती है। जैसे उनकी सफाई करना चाहती हो।
इस बीच 19 मई से एक गौरैया आकर गुरूदेव के पास बैठने लगी। वह निडर होकर गुरुदेव के नजदीक तक पहुंच गई। गुरुदेव ने उसे अपने हाथ से दाने खिलाने चाहे तो उनकी कुर्सी के हत्थे पर बैठने लगी. जब तक गुरुदेव वहां बैठते वह उन्हीं के आस पास रहती.
गुरुदेव उसे शिव सहस्त्रनाम सुनाते हैं. जिसमें लगभग 20 मिनट लगते हैं। इस बीच वह उनके पास एक ही जगह बैठी रहती है।
गुरुदेव ने उसे योगिनी नाम दिया है. वह गुरुवर से बातें करती है. मै आपको बताना भूल गया कि गुरुवर को पशु-पक्षियों और पेड़, पौधों से बातें करनी आती हैं।
जब गुरुदेव गहन साधना में होते हैं तब योगिनी बेचैन हो जाती है।
वहां आती तो रोज है, मगर न दाने चुगती है और न ही पानी पीती है। जैसे उसने भी व्रत रखना सीख लिया हो। दूसरी चिड़यों के साथ फुदकती और चिचियाती भी नहीं है। जैसे वह भी मौन में चली जाती हो।
इस बार भी बेचैन थी।
रोज खाली कुर्सी के पास आकर उसका घंटों बैठना, गम्भीरता के साथ अपने नन्हें पैरों से इधर उधर टहलना, शांत रहना और कुछ न खाना पीना. एेसा लगता था जैसे योगिनी भी तप कर रही है. शायद गुरुदेव की सलामती और कामयाबी के लिये।
मगर उसका भाग्य तो देखिए, आज जब गुरुवर सबसे लम्बी गहन साधना से बाहर निकले तो सबसे पहले उसी से मिले। क्योंकि वह सुबह से ही आकर वहां बैठी थी। साधना स्थल से बाहर आते ही गुरुवर की नजर योगिनी पर ही पड़ी. और वे उसके पास चले गये. उसे पानी पिलाया. दाने चुगाये. कुछ देर बातें कीं।
तब तक मै गुरुवर के पास पहुंच गया।
मैने सुना वे योगिनी से कह रहे थे * अब तुम चली जाना, अपना ध्यान रखना.* कुछ समय पहले तक योगियों सी गम्भीरता धारण किए बैठी योगिनी अब चंचलता से फुदक रही थी। उनकी बात पर बड़ी नजाकत से इतराकर एेसे फुदकने लगी जैसे कह रही हो *आप फिक्र न करिए जी, अपना ध्यान रखना मुझे आता है।* गुरुदेव मुस्कराते हुए मेरी तरफ आ गये।
सत्यम शिवम् सुंदरम
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुदेव को नमन.