राम राम मै अरुण
गुरुदेव की एकांत साधना
शिवांशु जी की बुक से साभार.
वो साधना का 10 वां दिन था.
लगभग 64 घंटे पूर्व गुरुवार से दोबारा शुरू हुआ था उनका ये सघन ध्यान.
उनकी ऊर्जाओं का स्तर बहुत विशाल हो चला है.
कल लखनऊ का तापमान 44 को पार कर गया. ए.सी. व् कूलर के बिना गुरुदेव की गहन साधना को लेकर थोड़ी चिंता हो रही थी.
सो आज व्यवस्थागत कार्यों के बहाने मै साधना स्थल में दोबारा चला गया.
गुरुदेव ध्यानस्थ थे।
वहां गीली मिट्टी की सी सोंधी सुगन्ध थी।
साधना स्थल का तापमान चकित कर देने वाला मिला.
बिलकुल सामान्य।
जैसे प्रचण्ड गर्मी ने तप क्षेत्र को अपने ताप से मुक्त रखा हो।
मुझे याद आया जरूरत पड़ने पर गुरुदेव नीली ऊर्जा का उपयोग करके अपने आस पास का तापमान कंट्रोल कर लेते हैं.
बड़ी तसल्ली हुई.
दोबारा शुरू हुई अखण्ड साधना के चौथे दिन भी पानी व् दूसरे पेय पदार्थों को यूज नहीं किया गया था. उन्हें बदल दिया गया था.
आज साधना स्थल का वातावरण बहुत रहस्यमयी सा था। मै कुछ देर वहां रुकना चाहता था, मगर रुक न सका।
मुझे भारी दबाव का अहसास हुआ. इतना अधिक कि मै 5 मिनट में 4 बार बाहर भागा। जैसे वहां कुछ अदृश्य शक्तियां हों। और उन्हें मेरी उपस्थिति से एतराज हो।
मै जानना चाहता था, कि वहां न दिखने वाले कौन लोग हैं ? लेकिन मुझे रुकने न दिया गया।
अज्ञातरूप से मै वहां से भगा दिया गया। एक बार तो ऐसा लगा जैसे मुझे बाहर की तरफ ढ़केल दिया गया हो।
मै विश्मित था. भयभीत भी.
कौन है जो मुझे वहां रुकने नहीं देना चाहता ?
गुरुदेव ने मुझे साधनाओं के तमाम रहस्य बता रखे हैं, लेकिन ऐसी किसी स्थिति के बारे में कभी कोई जिक्र नहीं किया।
विवश हो मै बाहर आ गया। और अनुमान लगाता रहा कि वहां क्या हो सकता है ?
अभी मेरे पास इस बारे में सिर्फ सवाल ही हैं. वे भी ढेरों!
जवाब किसी का नहीं।
आज की इस स्थिति ने मुझे इतना अधिक चकित या सही कहें तो भयभीत सा कर रखा था कि संजीवनी उपचार का अगला चैप्टर भी तैयार न कर सका.
दिन भर ब्याकुल सा रहा. रात में सो न सका. सवालों के बवंडर ने मन को बेचैन कर रखा था. जवाब सिर्फ गुरुवर ही दे सकते थे.
वे साधना में लीन थे.
गुरूवर की साधना का 11 वां दिन।
अभी कुछ देर पहले ही लगभग 91 घंटे बाद गुरूवर सघन साधना से बाहर आये।
उनके चेहरे पर अविरल शांति है। तपस्वी की दमक है। लोकहितकारी संतुष्टि है। सिद्धों वाली सरलता है। आज उनके साथ पहले वाली सुगंध नहीं है।
उसकी जगह तपती भूमि पर पहली बारिश की बूंदें गिरने से उत्पन्न होने वाली सोंधी सुगंध है।
मैने गुरूदेव से कल अपने साथ हुए वाकये के बारे में जानने की इच्छा जताई।
मै अब तक डरा हुआ था.
वे मुस्कराये। कुछ देर बाद रहस्य खोला।
उनके मुताबिक इस तरह की अखंड साधना का ये एक पड़ाव है। जहां साधक के सम्पर्क में कुछ उच्च स्तरीय उर्जाएं आ जाती हैं। जिन्होंने कभी उत्तरोत्तर साधनाएं कीं । मगर साधना की सफलता से पहले किसी वजह से उनका शरीर छूट गया।
अखंड साधनाओं में इन्हें अध्यात्मिक मित्र कहा जाता है। जो अपनी साधनाओं में जहां तक पहुंचे थे वहां तक की राह सुझाते हैं। साथ ही साधक के जरिए अपना आगे का अध्यात्मिक सफर तय करते हैं।
जिसको पा लेने के बाद वे लोक कल्याणकारी देवदूतों की श्रेणी में आ जाते हैं।
यानी जिन्होंने मुझे आपके पास रुकने से रोका वे अतृप्त आत्माएं थीं? मैने सशंकित सा प्रश्न किया था।
नहीं उन्हें इस श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिये. वे अपने उद्देश्य पूरे कर रहे हैं. जिनमें विश्वकल्याण निहित है. जवाब मिला।
तो मेरे साथ इतनी बुरी तरह क्यों पेश आये थे वे, मैने पूछा।
क्योंकि तुम्हारी उपस्थिति से उन्हें असुविधा हो रही थी।
उनमें से कुछ को बहुत लम्बे इंतजार के बाद मै माध्यम के रूप में मिला था। वे यह मौका खोना नहीं चाहते थे। सो थोड़ा उतावले से हो रहे थे।
तो क्या इसके लिए उन्हें किसी के साथ हिंसा करने की छुट मिली होती है। मेरा प्रश्न था।
नहीं एेसा नहीं है. जवाब मिला. उनमें से कुछ को बहुत लम्बे समय से माध्यम का इंतजार था। और जब मै उन्हें माध्यम के रूप में मिला तो वे बीच में किसी को आने नही देना चाहते थे। उनका उद्देश्य तुम्हारे उद्देश्य से बड़ा था। गुरुवर के स्पष्ट किया.
और यदि मै जिद करके वहां रुकना चाहता तो ! मेरे मुंह से अनायास सवाल निकला.
तो हम तुम्हें देखने अस्पताल आते। डराने वाला रहस्य खुला।
वे कितने थे और कितनी देर रहे आपके साथ? मैंने पूछा।
तुम्हारी सोच से भी ज्यादा। जवाब मिला। बीती रात तक साथ रहे। अब वे एक नए ग्रह की खोज करेंगे, वहां नई दुनिया बसाएंगे। भविष्य में वैज्ञानिकों को एक नए ग्रह का पता चलेगा। यह वही ग्रह होगा।
इससे आपका और आपको चाहने वालों का क्या फायदा हुआ? भावावेश में मै एक गैरजरूरी सा सवाल पूछ बैठा।
गुरुदेव ने स्थिर दृष्टि से मुझे देखा। जैसे कह रहे हों हर लम्हा नफा नुकसान से नहीं आँका जाना चाहिये।
लेकिन मुझे विश्वास है ये शक्तियां जब जब जरूरत होगी तब तब गुरुवर और उनमें श्रद्धा रखने वालों के काम जरूर आती रहेंगी.
आज मुझे गुरूदेव का ज्ञान तिलिस्म सा लगा।
जो मेरे मन मस्तिष्क में लगातार घूम रहा है।
सवालों की लम्बी फेहरिस्त अभी भी दिमाग में बची है, लेकिन अब नही पूछ सकता. क्योंकि मानसिक सम्पर्क भंग करके वे विश्राम के लिये चले गए.
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शिवगुरू को प्रणाम
गुरुदेव को नमन.