राम राम मै अरुण.
साधना वृतांत,
शिवांशु जी की बुक से साभार… …
आज गुरूदेव की साधना का आठवां दिन था.
गुरुदेव कल शाम पुनः गहन साधना में चले गये.
तब से अभी तक साधना से नहीं निकले। आज सफाई के उद्देश्य में मै साधना स्थल पर गया. तो वहां दूध और पानी वैसे ही रखा मिला. गुरुवर ने उसमें से कुछ भी ग्रहण नहीं किया. उसे बदल दिया गया.
आप में से कई लोगों ने मेरे लिखने के तरीके को सराहा है।
आप सबका धन्यवाद। लेकिन शायद आप नहीं जानते कि इस रूप में भी आपने गुरूवर को ही सराहा है।
मैने लिखना उन्हीं से सीखा।
बात 18 साल पहले की है। जब मै पहली बार उनसे मिला। तब वे कानपुर में तेज तर्रार रिपोर्टर थे। उनकी जबरदस्त शोहरत थी। पत्रकार जगत में उनकी प्रतिष्ठा और ईमानदारी अलग ही नजर आती थी। प्रभावशाली राजनीतिज्ञ और अधिकारी भी उनसे हाथ मिलाकर गर्व महसूस करते थे।
मेरे पिता भी एक अधिकारी थे। उनके कई मित्र अधिकारी प्रायः घर में आकर महफित जमाते थे। वे अक्सर अखबारों की खबरों पर चर्चा किया करते थे। गुरूदेव उन दिनों देश के प्रमुख अखबार दैनिक जागरण के मुख्यालय में स्टाफ रिपोर्टर थे। उन लोगों की बातचीत में अक्सर गुरू जी के नाम के चर्चे होते थे। वे लोग इनकी तेज तर्रार लेखनी और ईमानदार पत्रकारिता के कायल थे।
कई बार गुरूदेव द्वारा उनके विभाग के खिलाफ खबर छापे जाने पर भी उनकी तारीफ करते थे। अधिकारी उनकी पैनी पत्रकारिता से डरते भी थे।
पिता जी और उनके अधिकारी मित्रों की बातें सुन सुनकर गुरूदेव मेरे दिमाग में हीरो की तरह छा गए। फिर एक दिन पिता जी के साथ मुझे गुरूदेव से मिलने का मौका मिला। मै उन्हें देखता ही रह गया। सोचता रहा इतनी कम उम्र में इतना बुलंद जलवा। अधिकारियों के बीच उनकी बेखौफ स्टाइल और सवाल पूछने के तेज तर्रार तरीके से मेरे दिल दिमाग में उनका ग्लैमर छा गया।
मैने अपने पिता जी से उनसे मिलवाने की जिद की। पिता जी ने उनसे मेरा परिचय दिया तो वे बड़ी बेपरवाही से मुझसे हाथ मिलाकर आगे निकल गए।
तब मुझे बहुत बुरा लगा।
तभी मैने देखा कि प्रेस कांफ्रेस के बाद कई अधिकारी भी उनसे हाथ मिलाना चाह रहे थे. लेकिन वे अपने काम में मगसूल अपनी ही मस्ती में किसी की परवाह किए बिना कमरे से बाहर निकल गए।
अब तो मेरे सिर पर उनसे मिलने का भूत सा सवार हो गया। पिता जी से कहकर उन्हें खाने पर घर बुलाना चाहा। पता चला वे किसी अधिकारी या नेता से न तो गिफ्ट स्वीकारते हैं और न ही किसी अधिकारी या नेता के घर खाने पर जाते हैं।
गजब का सिद्धांत था उनका।
फिर एक दिन मै खुद उनसे मिलने दैनिक जागरण के आफिस जा पहुंचा। काफी देर इंतजार करने के बाद वे मुझसे मिले। उनके काम के ग्लैमर के बाद अब मै उनकी सादगी देख रहा था। मैने उनसे कहा मै भी पत्रकार बनना चाहता हूं। और आपसे सीखना चाहता हूं। उनका जवाब था- बड़े बाप के बेटे हो, तुमसे न होगा। पत्रकारिता तो अतिरिक्त समर्पण और त्याग की दुनिया है।
उन्होंने मुझे अस्वीकार कर दिया।
फिर भी मै पत्रकारिता सीखने के अनुरोध के साथ उनसे अक्सर मिलने जाता रहा। एक साल लगा उन्हें मनाने में मुझे। वे मान गए। अपने साथ रिपोर्टिंग में लेकर जाने लगे। लिखने की जो कला सिखाई वह आपके सामने है।
लिखते समय मै हमेशा उनकी कापी करने की कोशिश करता हूं। बस अच्छा अपने आप लिख जाता है।
साधना का नौवां दिन…
गुरूवार की शाम साधना कक्ष में गए गुरुदेव अभी भी वहीं हैं. लगभग 40 घण्टे से वे अखण्ड ध्यान में हैं.
मैंने कई बार उनसे मानसिक संपर्क की कोशिश की. मगर कामयाब न हो सका.
शायद इस समय उनकी ऊर्जा का स्तर बहुत ज्यादा स्ट्रांग है. जिसके कारण मेरी मानसिक तरंगे उन तक नही पहुंच पाईं।
हम उनके ध्यान से बाहर आने का इंतजार करेंगे.
गुरुवर की एकांत साधना जारी है.
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शिव गुरू को प्रणाम
गुरूदेव को नमन.