राम राम मै अरुण.
साधना वृतांत,
शिवांशु जी की बुक से साभार…
वह गुरुवर की साधना का सातवां दिन था.
गुरु को समझने की कोशिश करना न सिर्फ गैरजरूरी होता है बल्कि खुद को उलझन में डालने की नादनी भी है।
ये कल मेरे साथ प्रमाणित हो गया। गुरूदेव के तेज दृष्टिपात से हुए शक्तिपात से उत्पन्न शन्निपात को कल मैने सजा मान ली थी। मैने सोचा कि मेरा बार बार सवाल पूछना उन्हें खराब लगा और उन्होंने मुझे तपस्वी दृष्टि डाल कर 1 घंटे के लिए जड़ बना दिया। उस दौरान मै चाहकर भी अपनी जगह से हिल न सका। जबकि गर्मी के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा था। मै चाह रहा था कि खिसककर छाया में चला जाऊं। पर हिल भी न सका।
इसी कारण लगा कि गुरूदेव ने मुझे सजा दी है।
जबकि एेसा नहीं था। यह तो मेरा टेस्ट था।
ये परख थी कि मै टैलीपैथी को सीखने लायक हूं या नहीं.
टेलीपैथी सीखने के लिए कल रात जब मै उनके पास बैठा तो गुरूदेव ने पुनः सुबह की तरह मुझपर तेज दृष्टि डाली। कुछ पलों बाद मै फिर जड़वत हो गया। एकदम सुन्न।
सुन सब रहा था। मगर बोल कुछ नहीं पा रहा था।
बिल्कुल सुबह वाली स्थिति लग रही थी। फर्क यह था कि इस बार गुरूदेव मेरे मस्तिष्क पर अपना कंट्रोल कर रहे थे। मुझे अपने मस्तिष्क में उनकी तरंगों का अहसास साफ साफ हो रहा था।
कुछ देर बाद गुरूदेव वहां से चले गए। बिना कोई दिशा निर्देश दिए।
मै बैठा रह गया. यूं ही.
समझ सब रहा था, पर मेरी दशा उठने लायक नहीं थी। धीरे धीरे आस पास की आवाजें सुनाई देनी बंद हो गईं। लगा जैसे मै गहरे ध्यान में चला गया।
लगभग आधे घंटे बाद मेरे मस्तिष्क ने गुरूदेव को सुनना शुरू कर दिया। वे सामने नहीं थे। आस पास कोई नहीं था। गुरुवर मंत्र जाप कर रहे थे। उनके द्वारा मन में जपा जा रहा मंत्र मै साफ सुन रहा था। लगभग 25 मिनट मै उनका मंत्र जाप सुनता रहा। उनके मंत्र जाप के प्रभाव से मेरा सारा शरीर कंपकपाने लगा।
लगा जैसे मै किसी और दुनिया में प्रवेश कर गया हूं। उर्जा का प्रचंड प्रवाह हो रहा था मुझ पर. जैसे अंतरीक्ष में दिव्य उर्जाओं के तमाम स्रोत मेरे लिए खुल गए हों. उनकी उर्जाएं मेरे सिर से पैर तक प्रवाहित हो रही थीं. रीढ़ से कुंडली क्षेत्र तक जबरदस्त कंपकपी के अहसास ने मुझे चकित कर दिया था. मै दंग था. एक तपस्वी द्वारा मंत्र जाप से उत्पन्न उर्जाओं को मेरे लिए सह पाना मुश्किल सा होता जा रहा था.
सच कहूं भय लगने लगा। क्योंकि इससे पहले इतनी उर्जा का सामना मैने कभी नहीं किया था। कुछ देर बाद गुरूदेव वहां आये. मंत्र मुग्ध कर देने वाली मुस्कान के साथ मुझे देखा। अब उनकी आवाज मुझे नही सुनाई दे रही थी।
इशारे से पूछा क्या सुना। मैने उन्हें मंत्र सुना दिया। तो उन्होंने सहमति में सिर हिलाया। फिर मेरे कंधे पर हाथ रखा।
उनके हाथ रखते ही मै शन्निपात से रिलीज हो गया।
फिर उन्होंने मुझे भारी शक्तिपात से उत्पन्न होने वाली शन्निपात की स्थिति से बचने के लिए कुछ अभ्यास सिखाये। जिन्हें लगातार करना है। उसके बाद टेलीपैथी के स्टेप सिखाएंगे।
टेलीफैथी का पहला अनुभव ही बहुत दिव्य रहा। ऐसा दिव्य दिन भी जीवन में आएगा, कभी सोचा न था.
कल दिन में कानपुर से गुरूवर के एक डाक्टर मित्र आये थे।
उन्होंने गुरूदेव का पूरा चेकअप किया। उन्हें नियमित पानी और दूध, दही, फल ग्रहण करने की सलाह दी।
जैसे कि गुरूदेव बड़ी ही सहजता से सभी विद्वानों की सलाह पर सहमित प्रकट करके उन्हें संतुष्ट कर देते हैं. वैसे ही अपने मित्र डाक्टर की सलाह पर भी सहमित प्रकट करके उन्हें खुश कर दिया। उनसे वादा किया कि वे ये चीजें जरूर ग्रहण करेंगे। मित्र के आग्रह पर एक गिलास पानी भी पिया।
मगर उसके बाद रात तक कुछ नहीं लिया। आज भी सुबह से कुछ नहीं लिया। आज दोपहर मै उनसे दूध पीने का विशेष आग्रह करुंगा। ऐसा करने के लिए उनके डॉ. मित्र ने मुझसे कहा है.
सत्यम शिवम् सुन्दरम्
शिव गुरु को प्रणाम
गुरुदेव को नमन.